कश्मीर पर तालिबान का बदला रुख
कश्मीर के मसले पर अफगानिस्तान के तालिबान ने पाकिस्तान को बड़ा झटका दिया है। तालिबान ने दो टूक शब्दों में कह दिया है कि कश्मीर भारत का आंतरिक मसला है और तालिबान किसी दूसरे देश के मसलों में हस्तक्षेप नहीं करता।
01:32 AM May 20, 2020 IST | Aditya Chopra
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कश्मीर के मसले पर अफगानिस्तान के तालिबान ने पाकिस्तान को बड़ा झटका दिया है। तालिबान ने दो टूक शब्दों में कह दिया है कि कश्मीर भारत का आंतरिक मसला है और तालिबान किसी दूसरे देश के मसलों में हस्तक्षेप नहीं करता। तालिबान की राजनीतिक शाखा इस्लामिक अमीरात के प्रवक्ता सुहेल शाहीन ने यह भी साफ कर दिया है कि वह कश्मीर में जारी कथित जिहाद मूवमेंट का हिस्सा नहीं है।
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तालिबान का यह रुख उसके पूर्व के रुख से काफी बदला हुआ है। तालिबान छोटे-छोटे समूहों का एक गुट है। उसके कई गुट कश्मीर पाकिस्तान को दिए जाने या फिर आजाद किए जाने का समर्थन करते रहे। हालांकि इस्लामिक अमीरात के इस बयान से पाकिस्तान के हक्कानी नेटवर्क को काफी बड़ा आघात लगा है। इससे पहले अफगानिस्तान सरकार ने कहा था कि युद्ध से जर्जर देश के पुनर्निर्माण में और शांति प्रक्रिया में मदद करने में भारत महत्वपूर्ण योगदान देने वाले देशों में से है।
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अफगानिस्तान विदेश मंत्रालय ने यह बयान तालिबान के इस आरोप के बाद जारी किया है कि भारत लम्बे समय तक अफगानिस्तान में नकारात्मक भूमिका अदा करता रहा है। अफगानिस्तान सरकार ने यह भी कहा है कि अफगानिस्तान में शांति और सुलह में भारत पक्षकारों में से एक रहा है। भारत ने अफगान नीत और अफगान नियंत्रित राष्ट्रीय शांति एवं सुलह-सफाई प्रक्रिया का समर्थन किया है।
भारत ने अफगानिस्तान में काफी धन दान के तौर पर भी दिया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। सड़कें, रेलवे लाइन तो भारत बना ही रहा है, साथ ही अफगानिस्तान की संसद तक भारत ने बना कर दी है। अन्य कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं पर भी भारत काम कर रहा है।
सुखद बात यह है कि अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी और उनके प्रतिद्वंद्वी अब्दुल्ला अब्दुल्ला के बीच एक बड़ा सियासी करार हो गया है। दोनों ने सत्ता में सांझेदारी को लेकर एक अहम करार किया है। वर्ष 2014 में भी दोनों सत्ता में सांझेदारी कर चुके हैं। नए सियासी समझौते के तहत अशरफ गनी राष्ट्रपति बने रहे जबकि अब्दुल्ला अब्दुल्ला राष्ट्रीय सुलह के लिए गठित परिषद के प्रमुख होंगे और उनके पास मंत्रिमंडल में 50 फीसदी की हिस्सेदारी होगी।
अब्दुल्ला अब्दुल्ला से समझौते के बाद उम्मीद है कि अफगानिस्तान में तालिबान से बातचीत की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाएगा। पिछले वर्ष सितम्बर में अफगानिस्तान में राष्ट्रपति चुनाव हुए थे और चुनावों में राष्ट्रपति अशरफ गनी को विजयी घोषित किया गया था लेकिन अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने मतगणना में धांधली के आरोप लगाते हुए चुनाव परिणामों को मानने से इंकार कर दिया था और समानांतर सरकार बनाने का ऐलान कर खुद को राष्ट्रपति घोषित कर दिया था। दोनों में समझौता हो जाने के बाद सियासी संकट हल हो गया है।
अमेरिका-तालिबान समझौते में पाकिस्तान की भी भूमिका रही है। पाकिस्तान अफगानिस्तान में भारत की मौजूदगी देखना नहीं चाहता। उसने हक्कानी नेटवर्क का सहारा लेकर अफगानिस्तान में भारतीय ठिकानों पर हमले भी करवाए। कौन नहीं जानता कि अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता कायम रखने के अमेरिकी प्रयासों के खिलाफ पाकिस्तान ने अफगान तालिबान को लगभग दो दशकों तक पोषित, समर्थित और सशक्त किया, नतीजतन अफगानिस्तान एक विफल राष्ट्र बन गया। कौन नहीं जानता कि पाकिस्तान ने तालिबान को खुले तौर पर शरण दी। पाकिस्तान ने अफगान लोगों के बीच अमेरिका विरोधी भावनाएं पैदा करने के लिए धार्मिक संगठनों के माध्यम से अभियान चलाया।
पाकिस्तान की मदद से तालिबान का जिहाद एक व्यापक अमेरिका विरोधी अभियान बन गया था। अमेरिका और मित्र देशों की सेनाओं ने तालिबान पर कई बड़े हमले किए, इसके बावजूद तालिबान लड़ाकों की तुलना में पश्चिमी देशों के जवान ज्यादा मारे गए।
अफगानिस्तान की मौजूदा स्थिति में पाकिस्तान पिछड़ता जा रहा है। आतंकवाद को लेकर अफगानिस्तान पाकिस्तान को कई बार चेतावनियां देता रहा है। दरअसल जिस तालिबान को पाकिस्तान ने खड़ा किया इसमें कोई बात छिपी हुई नहीं है। दरअसल पाकिस्तान तालिबान के जरिये अफगानिस्तान की सत्ता को नियंत्रित करना चाहता था लेकिन अब उसे लगातार झटके मिल रहे हैं।
जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 हटाए जाने और राज्य के पुनर्गठन से बौखलाए पाकिस्तान ने जब अफगानिस्तान और कश्मीर मुद्दे को जोड़ना चाहा तो तालिबान के प्रवक्ता ने यही कहा था कि कश्मीर मसले का अफगानिस्तान से कोई लेना-देना नहीं है। पाकिस्तान ऐसा उद्दंड देश है जिसने हमेशा आतंकी हिंसा को अपना हथियार बनाया।
पाकिस्तान ने अफगानिस्तान को एक रणनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश की लेकिन अफगान का अवाम पाकिस्तान का सच जानती है। पाकिस्तान ने उपद्रवों का हमेशा लाभ उठाया। अफगानिस्तान में आतंकवाद विरोधी अभियान में अमेरिका का मित्र बनकर उससे करोड़ों डालर लिए और अमेरिका को धोखा भी दिया। अमेरिका ने साथ छोड़ा तो पाकिस्तान चीन की झोली में जा गिरा। एक दिन पाकिस्तान की हालत ऐसी होने वाली है कि वह न घर का रहेगा न घाट का।
–आदित्य नारायण चोपड़ा

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