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तांडवी तेज फिर हुंकार उठा है

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10:00 AM Mar 04, 2019 IST | Desk Team

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आज महाशिवरात्रि का पावन पर्व है। समूचा वातावरण ही शिवमय दिखाई दे रहा है। शिवालयों से लगातार उठती घंटों की घनघनाती आवाज हमारी चेतना पर बार-बार चोट करती है और जो पावन झंकरण अनुभव होता है, उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। एक अनबूझ कृपा है, जो बरसती हुई महसूस होती है। शिव अर्थात् कल्याणकारी। शिव शब्द में इ-कार यानी इ की मात्रा ही शक्ति का प्रतीक है। इ-रूपी शक्ति के पृथक हो जाने पर शिव भी शव हो जाता है। वस्तुतः शिव शब्द में अर्द्धनारीश्वर स्वरूप समाहित है, जो इस तथ्य का द्योतक है कि शिव शक्ति के मिलन से ही सृ​ष्टि का निर्माण होता है। महाशिवरात्रि (परम पुरुष) और शिवा (प्रकृति) के महामिलन का उत्सव है। यह मिलन ही कल्याणकारी है और प्रेरणादायक है कि हम कल्याणकारी कार्यों की ओर प्रवृत्त होकर शिवत्व का बोध प्राप्त करें। भगवान शिव सौम्य आकृति एवं रौद्र रूप दोनों के लिए विख्यात हैं।

अन्य देवों से शिव को भिन्न माना गया है। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं। त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने जाते हैं। शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदि स्रोत हैं और यह काल महाकाल ही ज्योतिष शास्त्र के आधार हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है लेकिन वे हमेशा लय और प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इसी दिन मध्यरात्रि ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव हुआ जिसमें शक्तिस्वरूप पार्वती ने मानवी सृष्टि का मार्ग प्रशस्त किया। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को भी महाशिवरात्रि मनाने के पीछे कारण है कि इस दिन क्षीण चन्द्रमा के माध्यम से पृथ्वी पर अलौकिक लयात्मक शक्तियां आती हैं जो जीवन शक्ति में वृद्धि करती हैं।

यद्यपि चन्द्रमा क्षीण रहता है लेकिन शिवस्वरूप महामृत्युंजय दिव्यपुंज महाकाल आसुरी शक्तियों का नाश कर देते हैं। शिव के मस्तक पर एक ओर चन्द्र है तो दूसरी ओर महाविषधर सर्प भी उनके गले का हार है। वे अर्द्धनारीश्वर होते हुए भी कामजित हैं। गृहस्थ होते हुए भी श्मशानवासी हैं। सौम्य आशुतोष होते हुए भी भयंकर रुद्र हैं। ऐसे महाकाल शिव की आराधना का महापर्व है शिवरात्रि। इस बार महाशिवरात्रि पर देश के लोगों के भीतर आतंकवाद को लेकर काफी आक्रोश है। यद्यपि पुलवामा के आतंकी हमले के बाद भारतीय सेना ने पाक अधिकृत कश्मीर में एयर स्ट्राइक कर आतंकी शिविरों को तहस-नहस कर दिया है, उससे देशवासियों को कुछ संतोष जरूर मिला है लेकिन पाकिस्तान के षड्यंत्र अब भी जारी हैं। सीमाओं पर लगातार फायरिंग से हमारे निर्दोष नागरिक मारे जा रहे हैं।

मुठभेड़ों में हमारे जवान लगातार शहादतें दे रहे हैं। सीमाओं पर तनाव के चलते सीमांत क्षेत्रों के लोगों का जीना दूभर हो चुका है। हर कोई सोचने को विवश है कि शहादतों का अंतहीन सिलसिला कब खत्म होगा। हम कब तक आंसू बहाते रहेंगे। अब देशभर में आतंकी हमलों की साजिशों के अलर्ट आ रहे हैं। आखिर कब तक राष्ट्र खौफ में रहेगा। धर्म के समान काल की गति बड़ी सूक्ष्म होती है, यह जल्दी ही समझ में नहीं आती। जब भी हमारे देश की संसद पर, धर्मस्थलों पर, महानगरों पर आतंकवादियों के रूप में राक्षसों ने आक्रमण किया तो राष्ट्र का कण-कण जाग उठा। भोले शंकर तो ब्रह्मांड के चप्पे-चप्पे पर विद्यमान हैं। आप तो तीसरा नेत्र भी खोल सकते हैं।

प्रलय का आह्वान भी कर सकते हैं और तांडव भी रच सकते हैं। शिव की महिमा तो अपरम्पार है, वह जानते हैं कि परिस्थितियां क्या हैं? 1947 में देश विभाजन के समय लाखों भारतीयों का खून बहाया गया। 1965, 1971 और 1999 के युद्धों में भी हमने पाकिस्तान को पराजित किया लेकिन भेड़िया हमारा खून पीना चाहता है। मनुष्य और भेड़ियों में कोई बात नहीं हो सकती है। भेड़िया कभी शाकाहारी नहीं हो सकता इसलिए बार-बार आक्रमण करता है। निदान एक ही है-‘भेड़िये का वध’। महाशिवरात्रि पर हम शिव की उपासना करें और हम शिव के इस रूप का आह्वान करें-
निर्जर पिनाक शिव का टंकार उठा है,
हिमवंत हाथ में ले अंगार उठा है,
तांडवी तेज ​फिर से हुंकार उठा है,
लोहित में था जो गिरा कुठार उठा है,
संसार धर्म की नई आग देखेगा,
मानव का करतब पुनः नाग देखेगा।

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