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अपराधी बनते किशोर

03:26 AM Jul 13, 2024 IST | Rahul Kumar Rawat

हाल ही के कुछ वर्षों में हृदय विदारक अपराधों में किशोरों की संलिप्तता देखने को मिल रही है। उसे देखकर समाज बहुत चिंतित है। किशोर अपराध की घटनाएं बार-बार हमसे सवाल करती हैं ​कि क्या इन अपराधों के लिए वास्तव में कच्ची मिट्टी के बने बच्चे जिम्मेदार हैं या कहीं न कहीं हमारे पालन-पोषण, पारिवारिक एवं सामाजिक माहौल में व्याप्त कमियां जिम्मेदार हैं। आखिर किशोर आयु में अपराध करने के लिए कौन-कौन से हालात उकसा रहे हैं, जिसके चलते बच्चे अपराधी बनते जा रहे हैं। बड़े मैट्रो शहरों की बात करें या फिर छोटे शहरों या ग्रामीण इलाकों के नाबालिग बलात्कार, हत्या का प्रयास, लूट, झपटमारी और छेड़छाड़ की घटनाओं में पकड़े जा रहे हैं। नाबालिगों के अपराधों का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है, जो पुलिस के​ लिए भी चिंता का विषय है। आंध्र प्रदेश के नंदियाल में आठ साल की लड़की के साथ 13 से 17 साल की उम्र के तीन नाबलिग लड़कों द्वारा सामूहिक बलात्कार के बाद उसकी हत्या कर शव नहर में फैंक देने का मामला सामने आया है।
उत्तर प्रदेश के बलिया में भी 13 वर्षीय लड़के द्वारा आठ साल की बच्ची से रेप का मामला भी सामने आया है। सुबह-सवेरे अखबारों के पन्ने पलटते ही ऐसे समाचार पढ़ने को ​मिल जाते हैं और हर कोई यह मंथन करने लगता है कि हमारा समाज किधर जा रहा है। अगर कारणों को ढूंढा जाए तो सबसे बड़ा संकट संस्कारों और नैतिक मूल्यों के खत्म होने का ​दिखाई देता है।

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बच्चे माटी की काया होते हैं और अभिभावक कुम्हार। जिस तरह से कुम्हार माटी को तराशता है और जो स्वरूप माटी को वह देता है माटी उसी में ढल जाती है। समय के साथ-साथ समाज में बहुत तेजी से परिवर्तन आया है। ऐसा वातावरण सृजित हो चुका है कि संयुक्त परिवार अब रहे नहीं। दादा-दादी, चाचा-चाची और अन्य रिश्तों का कोई महत्व नहीं बचा है। जिसमें अधिकतर परिवार अपने ही बच्चों पर नियंत्रण रखने और उन्हें संस्कारवान बनाने में विफल सिद्ध हो रहे हैं। सभी पैसे कमाने की दौड़ में इतने व्यस्त हो गए हैं कि भोले-भाले बचपन को ठीक से समय नहीं दे पा रहे हैं। इसके चलते आज बच्चों की वैयक्तिक स्वतंत्रता में अत्यधिक वृद्धि होने के कारण कुछ बच्चों में नैतिक मूल्यों का बहुत तेजी से क्षरण होने लगा है। इसके साथ ही अत्यधिक प्रतिस्पर्धा ने किशोरों में तनाव को पैदा किया है। आज जिस आसानी से बच्चों को मोबाइल फोन, कम्प्यूटर और इंटरनेट उपलब्ध है, उसने इन्हें परिवार और समाज से अलग कर अकेलेपन में जीना सिखा दिया है। इसके चलते आज देश में बहुत तेजी से बच्चे तनाव और अवसाद के शिकार होकर अपराध में लिप्त हो रहे हैं।

बच्चा स्कूल से आकर इंटरनेट, सोशल मीडिया प्लेटफार्मों और ओटीटी पर क्या देखता है और क्या सीखता है। इसे देखने की किसी को फुर्सत नहीं है। जिस तरह का वॉयलेट कंटेंट आज इंटरनेट और ओटीटी पर परोसा जा रहा है, उसका बच्चों के दिमाग पर मनो​वैज्ञा​निक प्रभाव पड़ने का खतरा पैदा हो चुका है। कोई भी बच्चा जन्म-जात अपराधी नहीं होता, बल्कि परिस्थितियां उसे ऐसा बना देती हैं। कभी-कभी माता-पिता के आपसी झगड़ों, तनावपूर्ण रिश्तों, एकल परिवार, कमजोर आर्थिक स्थिति, नशीले पदार्थों का सेवन आदि कई कारण बच्चों को अपराध करने के लिए उकसातेे हैं। बच्चों के अपराध की तरफ बढ़ने में उसके दोस्त व दोस्तों के समूह का बहुत बड़ा हाथ होता है। बहुत से बच्चे अपने आप में अपराधी नहीं होते वरन् एक अपराधी बच्चों के समुदाय की प्रेरणा अथवा दबाव से बुराइयां करते हैं। प्रत्येक स्थान पर ऐसे बच्चों का एक समूह अवश्य होता है जो अन्य सीधे-सादे, सरल बच्चों को बहला-फुसला कर या धमका कर बुरे कामों के लिए प्रेरित करते हैं। अभिभावकों को इतना ध्यान नहीं रहता कि उनके बच्चे किनके साथ उठते-बैठते हैं, किनके साथ खेलते हैं, कितना भी होनहार बालक क्यों न हो बुरी संगत में पड़कर वह भी बुरा बन ही जाता है। बच्चों में नई-नई चीजें सीखने की इच्छा होती है। उनको यह पता नहीं होता की कौन सी बातें अच्छी हैं और कौन सी बुरी। बच्चे शीघ्र ही बुराइयों की ओर आकर्षित हो जाते हैं। बच्चों में बुराइयों की जड़ अधिकतर बुरे साथियों से ही पनपती है।

मोबाइल फोन, कम्प्यूटर पर सरलता से उपलब्ध पोर्नोग्राफी बच्चों को उम्र से पहले परिपक्व बना रही है। यही कारण है कि नाबालिग यौन अपराध करने के लिए प्रेरित हो रहे हैं। यद्यपि किशोर अपराधियों के लिए कानून भी सख्त बनाए गए हैं लेकिन सामाजिक परिस्थितियां बहुत जटिल हो चुकी हैं। किशोर कई बार इसलिए बच जाते हैं क्योंकि कानून हर बच्चे को जेल में नहीं डाल सकता और वह उन्हें सुधरने का अवसर देना चाहता है। अगर समाज को ऐसे अपराधों से बचाना है तो समाज को खुद जागरूक होना होगा और बच्चों में सामाजिक और पारिवारिक संस्कार पैदा करने होंगे। मां-बाप को बच्चों को समय देना होगा और उनके बदलते स्वभाव का अध्ययन कर उनकी काउंस​लिंग करनी होगी। उसे भले-बुरे की समझ देनी होगी। समाज को खुद भी विश्लेषण करना होगा कि बच्चों को किस तरह से संस्कारवान बनाया जाए।

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