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कच्ची उम्र, जुर्म की डगर

04:30 AM Nov 21, 2025 IST | Aakash Chopra
पंजाब केसरी के डायरेक्टर आकाश चोपड़ा

दिल्ली में चोरी से लेकर हत्या तक ऐसी घटनाएं आम हैं जिसमें आरोपी नाबालिग होते हैं। ऐसी ही एक और घटना सामने आई है। विजय विहार इलाके में पांच नाबालिगों ने एक ऑटो ड्राइवर की हत्या कर दी। पुलिस का दावा है कि लूट का विरोध करने पर आरोपियों ने चाकू से गोदकर हत्या को अंजाम दिया। मृतक की पहचान 52 वर्षीय राकेश कुमार के रूप में हुई है। इस बाबत विजय विहार थाने में हत्या की धाराओं में केस दर्ज किया गया है। पांचों आरोपियों को पुलिस ने पकड़ लिया है। हाल ही में 10 नवंबर को भी एक घटना सामने आई थी, जिसमें भलस्वा डेयरी इलाके में एक युवक को उसी के ई-रिक्शा में डालकर लड़कों का एक ग्रुप ले गया था। इसके बाद उस युवक की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी। पुलिस ने कुछ ही घंटों में सीसीटीवी और लोकल इंटेलिजेंस की मदद से पांच आरोपियों को पकड़ लिया था। इस हमले को अंजाम देने वाले आरोपियों में 3 नाबालिग थे, जिनकी उम्र 16, 14 और 16 थी।
दिल्ली को लेकर आई राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट डराने वाली है। यहां नाबालिग अब नए क्रिमिनल बनकर उभर रहे हैं। आंकड़ों से पता चला है कि जनसंख्या कम होने के बावजूद, नाबालिगों (माइनर्स) की ओर से किए गए अपराधों के मामले में दिल्ली अब देश में पांचवें स्थान पर आ गया है। वहीं मेट्रो शहरों से तुलना करें तो ये टॉप पर हैं। इसने उत्तर प्रदेश, बिहार और हरियाणा जैसे अधिक आबादी वाले राज्यों को भी पीछे छोड़ दिया है। राजधानी के नाबालिग अब तेजी से संगठित अपराधों की ओर मुड़ रहे हैं।
आंकड़ों के अनुसार, चोरी और लूटपाट अभी भी सबसे आम अपराध हैं लेकिन दिल्ली पुलिस के अधिकारियों का कहना है कि अब अपराध का पैटर्न (तरीका) बदल रहा है। एक वरिष्ठ दिल्ली पुलिस अधिकारी ने कहा, "पिछले तीन सालों में शहर में नाबालिगों के अपराध बहुत चिंताजनक हो गए हैं। पहले वे असंगठित तरीके से काम करते थे और ज्यादातर चोरी और लूटपाट तक ही सीमित थे लेकिन अब हम देख रहे हैं कि नाबालिग गिरोह बना रहे हैं और उत्तर-पूर्व तथा दक्षिण दिल्ली में सक्रिय बड़े आपराधिक नेटवर्क के साथ मिलकर अपराध कर रहे हैं।"
साल 2023 में कुल 4,098 किशोरों को पकड़ा गया था। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों से पता चला है कि इन किशोरों की शिक्षा का स्तर कुछ इस प्रकार था:शिक्षा का स्तर किशोरों की संख्या पूरी तरह से अनपढ़ (कभी स्कूल नहीं गए)381प्राइमरी स्तर तक पढ़े (जल्दी स्कूल छोड़ा)995कक्षा 10 तक पढ़े (सबसे बड़ा समूह)1,432कक्षा 12 तक पढ़े,246उच्च माध्यमिक से आगे की पढ़ाई की।
"यह आंकड़ा रोचक है क्योंकि यह इस धारणा को तोड़ता है कि सभी अपराधी अनपढ़ होते हैं। वास्तव में, अधिकांश ने कक्षा 10 तक पढ़ाई की है और उसके बाद स्कूल छोड़ दिया।" इन आंकड़ों से यह भी सामने आया कि पकड़े गए 2,640 किशोर अपने माता-पिता के साथ रहते थे, 334 अभिभावकों के साथ और केवल 124 बेघर थे। जानकारों के मुताबिक नाबालिगों द्वारा बढ़ते अपराध की वजह मौजूदा शहरीकरण और औद्योगिकीकरण की प्रक्रिया से निर्मित संवेदनहीन माहौल है। ऐसे माहौल के कारण ज्यादातर परिवार अपने बच्चों को काबू में रखने में विफल हो रहे हैं। निजी आजादी में बढ़ोतरी से नैतिक मूल्य बिखरने लगे हैं। अधिक प्रतिस्पर्धा के कारण बच्चों की स्वाभाविकता छिन गई है। वे गुस्सैल और चिड़चिड़े होते जा रहे हैं। कम्प्यूटर और इंटरनेट ने नाबालिगों को समाज और परिवार से अलग-थलग कर दिया है। वे अवसाद के शिकार होने लगे हैं और अपराध की दुनिया में भी छलांग लगा लेते हैं। इन कारणों से नाबालिग अपराध के क्षेत्र में सक्रिय रहने लगे हैं। बच्चा वही सिखता है जो उसके आसपास घटित होता है। कोरोना काल में बच्चों की मनोदशा पर अधिक प्रभाव पड़ा है। इसकी वजह है ऑनलाइन गेमिंग व मेल-जोल का कम होना। बच्चे आजकल मोबाइल पर ऑनलाइन गेमिंग में अधिक व्यस्त हैं। इसमें भी बच्चों को आक्रोश वाले गेम अधिक पसंद हैं जिससे बच्चों की मनोदशा बदलती है। अपराध की कोई श्रेणी नहीं है। एक पढ़े-लिखे बच्चे से लेकर स्लम में रहने वाला कम शिक्षित या अनपढ़ बच्चा संगीन अपराध के लिए तैयार हो जाता है। उन्हें अपराध से मुक्त बनाए रखने के लिए केवल सरकार के भरोसे रहना भारी भूल होगी। समाज और घर परिवार को भी सचेत होने की जरूरत है। नाबालिगों द्वारा किए जा रहे यौन अपराधों की शिकार महिलाएं और युवतियों के साथ बच्चियां भी हो रही हैं। एक अध्ययन के मुताबिक ‘भारतीय दण्ड संहिता’ के तहत दर्ज नाबालिगों द्वारा किए जाने वाले अपराधों में 47 प्रतिशत बढ़ाैतरी हुई है। नाबालिग होते हुए भी वे बालिगों जैसी आपराधिक वारदातों को अंजाम देने लगे हैं और नाबालिगों को दी जाने वाली छूट का लाभ उठाकर और भी खूंखार अपराधी बनने की ओर अग्रसर हो जाते हैं।
आमतौर पर देखा जाता है कि बालिग अपराधियों जैसे गंभीर अपराध करने के बावजूद नाबालिग अपराधी कठोर दंड से बच जाते हैं। वर्ष 2012 के ‘निर्भया बलात्कार कांड’ में पीड़ित लड़की के साथ सबसे अधिक दरिंदगी करने वाला नाबालिग अपराधी मृत्यु दण्ड से बच गया, जबकि इसी बलात्कार कांड में बाकी के सभी बालिग अपराधियों को फांसी दी गई। गंभीर अपराधों में संलिप्त नाबालिगों को लेकर कानून अस्पष्ट और लचर होने का ही परिणाम है कि उनका दुस्साहस लगातार बढ़ता चला गया है। यह देखा गया है कि जघन्य अपराधों को अंजाम देने वाले कई नाबालिगों पर बाल सुधार गृह में भेजने का भी कोई असर नहीं होता। खासतौर पर सुनियोजित तरीके से हत्या और बलात्कार जैसे अपराधों के नाबालिग आरोपियों के प्रति क्या नीति अपनाई जानी चाहिए, अब इस मसले पर सरकार और समाज को एक बार विचार करना होगा। जाहिर है, नाबालिगों में बढ़ती आपराधिक प्रवृत्ति को रोक पाना अकेले कानून के बस में नहीं है। अभी किशोर न्याय बोर्ड केवल 16 से 18 वर्ष के नाबालिग आरोपितों के मामले में बालिग की तरह केस चलाने की प्रार्थना पर विचार कर सकता है लेकिन बदलते समय में कानून के इस प्रविधान में संशोधन की जरूरत महसूस होती है। नाबालिगों द्वारा अपराध बढ़ रहे हैं। इस पर अंकुश लगाना जरूरी है। हत्या, दुष्कर्म जैसे गंभीर अपराध में संलिप्त हर आयु के नाबालिग से सख्ती से निपटना चाहिए। अगर उसकी प्रवत्ति आपराधिक पाई जाती है। इसके लिए समाज और शैक्षणिक सस्थाओं के साथ स्वयं मां-बाप को भी सक्रिय होना होगा, तभी हम अपनी औलादों को अपराध में संलिप्त होने से बचा पाएंगे और उन्हें देश का बेहतर नागरिक बना सकेंगे।

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