इतिहास का वो काला दिन, विमान हादसे में बचे लोगों को खाना पड़ा था अपनों का शव!
विमान हादसे में बचे लोगों को खाना पड़ा था अपनों का शव!
इसी तरह का एक विमान हादसा 13 अक्टूबर साल 1972 में भी हुआ था. ये दिन इतिहास के पन्नों में एक भयानक त्रासदी के रूप में दर्ज है. यह वो दिन था जब उरुग्वे की एक रग्बी टीम और उनके परिवार व दोस्तों को लेकर जा रहा विमान हादसे का शिकार हो गया था.
Andes plane crash: अहमदाबाद में गुरुवार दोपहर लंदन के लिए रवाना हुई एयर इंडिया की फ्लाइट एआई-171 उड़ान भरते ही एक बड़ी दुर्घटना का शिकार हो गई. हादसे के वक्त विमान में कुल 242 लोग सवार थे, जिनमें दो पायलट और 10 केबिन क्रू सदस्य शामिल थे. यह हादसा इतना भीषण था कि मौके से उठता काला धुआं दूर-दूर तक देखा गया. वहीं इसी तरह का एक विमान हादसा 13 अक्टूबर साल 1972 में भी हुआ था. ये दिन इतिहास के पन्नों में एक भयानक त्रासदी के रूप में दर्ज है. यह वो दिन था जब उरुग्वे की एक रग्बी टीम और उनके परिवार व दोस्तों को लेकर जा रहा विमान हादसे का शिकार हो गया था. Uruguayan Air Force Flight 571 का ये विमान एंडीज की बर्फीली पहाड़ियों में दुर्घटना का शिकार हो गया था. इस विमान में कुल 45 लोग सवार थे. टीम चिली के सैंटियागो में एक मैच खेलने जा रही थी.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, विमान जब एंडीज पर्वतों से गुजर रहा था, तब मौसम काफी खराब हो गया. चारों ओर बर्फ की चादर फैली थी और सफेद प्लेन को आसमान से देख पाना मुश्किल हो गया. ऐसे में पायलट को अपनी लोकेशन का अंदाज़ा नहीं लग पाया और विमान 14,000 फीट की ऊंचाई पर एक चोटी से टकरा गया और जोरदार धमाके के साथ दो हिस्सों में टूट गया. इस हादसे में 18 लोगों की मौत तत्काल हो गई, जबकि बाकी 27 लोग किसी तरह जिंदा बचे.
जीवन और मौत के बीच संघर्ष
ऐसे में बचे हुए लोगों के लिए अगला हर दिन एक नई चुनौती लेकर आता गया. चारों ओर सिर्फ बर्फ थी, तापमान -30 डिग्री सेल्सियस तक गिर चुका था. भोजन बहुत ही सीमित था, जिसे उन्होंने छोटे-छोटे हिस्सों में बांटकर लंबे समय तक चलाने की कोशिश की. पानी की व्यवस्था के लिए उन्होंने विमान के धातु के हिस्सों का इस्तेमाल किया, जिन्हें सूरज की गर्मी से गर्म कर बर्फ पिघलाई जाती थी.
कुछ ही दिनों में जब भोजन खत्म हो गया, तब ज़िंदा रहने के लिए उन्होंने एक कठोर फैसला लिया और अपने मर चुके साथियों के शवों का मांस खाना शुरू कर दिया. यह फैसला आसान नहीं था, लेकिन जीवन को बचाने की जद्दोजहद में उन्हें यह करना पड़ा.
रेस्क्यू की उम्मीद छोड़ दी गई
इस हादसे के बाद सरकार द्वारा सर्च ऑपरेशन शुरू किया गया था, लेकिन प्लेन का रंग सफेद होने के कारण वह बर्फ में छिप गया. 10 दिन तक चले प्रयासों के बाद 11वें दिन अभियान को बंद कर दिया गया, यह मानते हुए कि इतनी सर्दी में कोई जीवित नहीं रह सकता. 60 दिन बीत चुके थे और अब केवल 16 लोग बचे थे.
ऐसे में दो युवाओं, फर्नांडो पर्राडो और रॉबर्टो केनेसा ने मदद की तलाश में निकलने का फैसला किया. कमजोर शरीर, बर्फ और बिना संसाधनों के बावजूद दोनों ने हिम्मत नहीं हारी. फ्लाइट के सीट कवर से उन्होंने कपड़े तैयार किए और कई दिनों की यात्रा के बाद चिली के एक गांव के पास पहुँच गए.
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काफी कोशिशों के बाद बची जान
नदी के उस पार उन्हें कुछ लोग दिखाई दिए. काफी कोशिशों के बाद वे उनसे संपर्क करने में सफल रहे और पत्थर से लिपटे कागज पर मदद की पुकार लिखकर भेजी. कुछ दिन बाद, 22 दिसंबर को हेलीकॉप्टर्स की मदद से बचे हुए 16 लोगों को एंडीज से सुरक्षित बाहर निकाला गया.
इस हृदयविदारक घटना पर ‘Alive’ नाम की किताब लिखी गई और इसी नाम से फिल्म भी बनी, जो इस सच्ची घटना को दुनिया के सामने लाती है – एक ऐसी दास्तां जहां इंसान की जीने की चाह ने असंभव को संभव बना दिया.