For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

दलाई लामा हुए 90 साल के: उत्तराधिकारी पर तिब्बती परंपरा से होगा फैसला, चीन ने जताई आपत्ति, भारत का क्या रुख?

06:37 PM Jul 06, 2025 IST | Aishwarya Raj
दलाई लामा हुए 90 साल के  उत्तराधिकारी पर तिब्बती परंपरा से होगा फैसला  चीन ने जताई आपत्ति  भारत का क्या रुख
दलाई लामा हुए 90 साल के: उत्तराधिकारी पर तिब्बती परंपरा से होगा फैसला, चीन ने जताई आपत्ति, भारत का क्या रुख?

तिब्बती बौद्ध धर्मगुरुदलाई लामा रविवार को 90 वर्ष के हो गए। अपने जन्मदिन से कुछ दिन पहले उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि उनके उत्तराधिकारी का चयन तिब्बती धार्मिक परंपरा के अनुसार ही किया जाएगा। उन्होंने कहा कि यह जिम्मेदारी गादेन फोडरंग ट्रस्ट की होगी, जो भारत में उनके प्रशासन और धार्मिक कार्यों की देखरेख करता है। इस घोषणा के बाद चीन ने तीखी प्रतिक्रिया दी और कहा कि बिना उसकी मंजूरी के कोई नया दलाई लामा मान्य नहीं होगा।

तिब्बती परंपरा और भारत की भूमिका

दलाई लामा का पद तिब्बती बौद्ध धर्म में सर्वोच्च धार्मिक पद माना जाता है। वर्तमान दलाई लामा, जिनका असली नाम तेन्जिन ग्यात्सो है, इस परंपरा की 14वीं कड़ी हैं। तिब्बती मान्यताओं के अनुसार, दलाई लामा की आत्मा मृत्यु के बाद पुनर्जन्म लेती है, और विशेष धार्मिक प्रक्रियाओं के माध्यम से नए दलाई लामा की पहचान की जाती है।

दलाई लामा पहले ही संकेत दे चुके हैं कि उनका अगला जन्म किसी आजाद देश में होगा। यह भी संभावना जताई गई है कि अगला दलाई लामा बच्चा नहीं, वयस्क हो सकता है, और इस बार यह कोई महिला भी हो सकती है। ऐसे में भारत में बसे करीब 1.4 लाख तिब्बती शरणार्थियों के बीच उत्तराधिकारी की खोज की जा सकती है।

चीन का ऐतराज और इतिहास

चीन ने दलाई लामा की हालिया घोषणा का विरोध करते हुए कहा है कि लामा परंपरा के अनुसार, 1792 में तय की गई "स्वर्ण कलश प्रक्रिया" के तहत ही उत्तराधिकारी का चयन होना चाहिए, और इसके लिए चीनी सरकार की मंजूरी जरूरी है। चीनी विदेश मंत्रालय ने साफ कहा कि तिब्बती धार्मिक परंपराओं पर अंतिम अधिकार बीजिंग का होना चाहिए।

गौरतलब है कि चीन ने 2007 में एक कानून भी पारित किया था, जिसके तहत किसी भी बौद्ध धर्मगुरु की नियुक्ति सरकार की अनुमति के बिना मान्य नहीं होगी। विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम चीन के तिब्बत पर नियंत्रण बनाए रखने की रणनीति का हिस्सा है।

भारत का रुख संतुलित

इस मुद्दे पर भारत सरकार ने सधी हुई प्रतिक्रिया दी है। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने 3 जुलाई को दलाई लामा की घोषणा का समर्थन करते हुए कहा कि उत्तराधिकारी चुनने का अधिकार पूरी तरह से दलाई लामा का है। इसके बाद चीन की आपत्ति पर भारत के विदेश मंत्रालय ने 5 जुलाई को बयान जारी कर कहा कि भारत धार्मिक परंपराओं या आस्था से जुड़े मामलों में कोई आधिकारिक रुख नहीं अपनाता, और आगे भी यही नीति जारी रहेगी।

इतिहास: भारत कैसे बना शरणस्थली

1950 में जब चीन ने तिब्बत में सैन्य कार्रवाई की थी, तब कुछ वर्षों तक तिब्बत की स्वायत्तता को लेकर दोनों पक्षों के बीच समझौते चलते रहे। लेकिन 1959 में जब चीनी सेना ल्हासा में दलाई लामा के महल तक पहुंच गई, तो वे सिपाही के भेष में वहां से अरुणाचल प्रदेश के रास्ते भारत आ गए। भारत ने उन्हें 2 अप्रैल को आधिकारिक तौर पर शरण दी और बाद में वे धर्मशाला में बस गए, जो आज भी तिब्बती निर्वासित सरकार का केंद्र है।

भविष्य की चुनौती

अब जबकि दलाई लामा उम्र के 90वें पड़ाव पर हैं, दुनिया भर की नजर उनके उत्तराधिकारी की प्रक्रिया पर है। तिब्बती समुदाय चाहता है कि यह परंपरा राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त रहकर जारी रहे, जबकि चीन इस पर पूरी तरह नियंत्रण चाहता है। भारत की भूमिका इस विवाद में कूटनीतिक संतुलन बनाए रखने की है—जहां वह धार्मिक स्वतंत्रता को महत्व देता है, वहीं अपने विदेशी रिश्तों में भी संतुलन साध रहा है।

Advertisement
Advertisement
Author Image

Aishwarya Raj

View all posts

Advertisement
×