For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

गाजा पट्टी से भी अधिक दम घोटू हवा...

03:20 AM Nov 05, 2023 IST
गाजा पट्टी से भी अधिक दम घोटू हवा

कल जब टीवी को रिमोट से स्करोल कर रही थी तो एक लाइन नीचे पढ़ी कि दिल्ली की हवा गाजा पट्टी की हवा से भी भयंकर। बहुत ही दिल दहल गया। कितना इस खबर में दम है, कितना सच। क्योंकि घर में भी दो बेटे-बहू गले से, जुकाम से, बुखार से पीड़ित हैं। यही नहीं घर में काम करने वाला स्टाफ भी आधे से ज्यादा इसी चपेट में है। किसी से फोन पर बात करो तो पहले खांसी की दावाज, फिर जुकाम की आवाज तब जाकर हैलो सुनाई देता है। मेरी अपनी तबियत खराब हो रही थी। डाक्टर ने कहा वॉक करो, शूज पहनकर बाहर निकली तो सोचा अपना कमरा ही इससे बेहतर है। ग्रेंड चिल्ड्रन के स्कूल में 17 तक पॉल्यूशन के कारण छुट्टियां हो गई हैं। मेरे पास आकर कहते हैं चलो दादी बाहर घूमने चलते हैं, उन्हें भी कहना पड़ा कि घर ही अच्छा है।
ऊपर से त्यौहारों की लड़ी लगी हुई है। कार्तिक का महीना है। नवरात्रे, दशहरा, करवाचौथ, दीवाली, भैया दूज, धनतेरस क्या नहीं है। इस समय बाजारों में बहुत ही भीड़ है। 10 मिनट के सफर को 1 घंटे में तय किया जाता है। कार में पानी और कुछ हल्का-फुल्का खाने का सामान लेकर चलते हैं, न जाने कहां किस ट्रैफिक में फंस जाएं।
हालांकि इन दिनों व्यापार भी खूब चमकता है। ज्यादा भीड़भाड़ से, ज्यादा वाहन चलने से और हवा का दवाब कम रहने से जब उत्तर भारत में पराली जलाई जाने की घटनाएं बढ़ने लगती हैं तो प्रदूषण भी बढ़ने लगता है। वायु गुणवत्ता बहुत खराब स्तर तक पहुंच जाती है। उत्तर भारत विशेष रूप से दिल्ली और हरियाणा और खासतौर पर पंजाब प्रदूषण के बिगड़ने से दम घोटू हवा में सांस लेने को मजबूर हो जाते हैं। दीवाली सिर पर है, प्रदूषण का लेवल बढ़ने से इस बार भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर और दिल्ली सरकार के आदेश से पटाखे प्रतिबंधित रहेंगे और हमें इसका स्वागत करना चाहिए। सांसें सुरक्षित हैं तो हम जीवित हैं। याद करो वह कोरोना के दिनाें में जब हमारा इम्यूनिटी सिस्टम बिगड़ा तो सांसें उखड़ रही थी। अगर वायु शुद्ध होगी तो हम सुरक्षित रहेंगे, इस तथ्य को मानकर हमें प्रदूषण बढ़ाने वाली कोई गतिविधि नहीं करनी चाहिए।
मुझे याद है पिछले 15-20 साल से पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश में पराली जलाने से आसमान पर धुएं की ऐसी जहरीली चादर बिछ जाती थी कि शुद्ध हवा मिलती ही नहीं थी। सरकारों की आलोचना भी की गयी लेकिन सच यह है कि हमें खुद जागरूक होना होगा। स्थायी हल ढूंढने की मांग की गयी और अब ये उपाय किए भी जाने लगे हैं। दिल्ली सरकार ने आज से कुछ वर्ष पहले ओल्ड और इवन नंबर के तहत प्रतिदिन के हिसाब से सड़कों पर व्हीकल चलने की व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए नई नीति लागू की थी। उसका प्रभाव भी पड़ा लेकिन अगर पराली बहुत ज्यादा जलेगी तो कोई क्या कर सकता है। यद्यपि केंद्र सरकार भी प्रदूषण से बचने के लिए बहुत कुछ कर रही है परंतु उपाय तो तभी सार्थक हो पाएंगे जब लोग खुद सतर्क रहें और ऐसे हालात न बनाएं कि भीड़भाड़ हो। पैट्रोल की तुलना में डीजल ज्यादा प्रदूषण फैलाता है लेकिन अगर लाखों वाहन दिल्ली जैसे शहर में हर रोज सड़कों पर रहते हों तो वहां की हवा शुद्ध नहीं रह सकती। अब यह हमारे पर निर्भर है कि हम ट्रांसपोर्ट का कौन-सा साधन सिस्टम में लाते हैं। यद्यपि दिल्ली में स्मॉग टावर लगे हैं जो प्रदूषण से बचाने में अपनी भूमिका सिद्ध कर रहे हैं। पिछले दिनों पंजाब ने भी प्रदूषण के बढ़ते स्तर पर नियंत्रण पा लिया है। यह तभी संभव हो सकता है अगर पराली कम जले लेकिन यह भी सच है कि अलग-अलग राज्यों से अब पराली जलाए जाने की घटनाओं में वृद्धि की खबरें भी आ रही हैं।
हमें याद रखना होगा कि कोरोना इसमें कोई शक नहींं कि एक अजीबोगरीब वायरस ने हमारे शरीर में जगह बनाकर हमारे इम्यूनिटी सिस्टम को खराब किया था लेकिन हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि अब हम शुद्ध वायु में सांस जरूर लें तभी सुरक्षित रह सकते हैं। प्रदूषण रोकने के प्रति हर किसी को जागरूक रहना होगा। यद्यपि पटाखे न चलाए जाने की अपील सरकारें करती हैं और सुप्रिम कोर्ट ने भी यही किया है लेकिन उसके बावजूद जब प्रदूषण नापा जाता है तो इसका स्तर फिर खतरनाक हो जाता है। क्योंकि लोग चोरी-छिपे पटाखे चलाते हैं। छतों पर या कॉलोनियों में लोग पटाखे छोड़ते हैं। उन्हें रोकने के लिए यद्यपि कानून प्रावधान है लेकिन फिर भी लोग नहीं हटते, हालांकि दिल्ली के लोग काफी हद तक विशेष रूप से बच्चे पटाखों से अब दूर हैं लेकिन आज भी पटाखे चोरी-छिपे बेचे और खरीदे जाने की घटनाएं सामने आ रही हैं। प्रशासन पुलिस के साथ मिलकर कड़ी कार्यवाही भी कर रहा है लेकिन फिर भी सब कुछ जनता की नियत पर निर्भर करता है तभी सरकार की नीति सफल हो सकेगी। अनेक राज्यों से आजकल पटाखा फैक्ट्रियों में धमाकों से मौत की खबरें भी सुनते हैं। कुल मिलाकर अगर हम खुद ही सतर्क रहें, खुद ही प्रदूषण के प्रति जागरूक रहें तो बहुत कुछ किया जा सकता है। एक अमरीकी स्ट्डी के मुताबिक वैश्विक स्तर पर वायु का स्तर घटने से और प्रदूषण का स्तर बढ़ने से अंटार्टिका के हिमखंड पिंघल रहे हैं और समुंद्र का जलस्तर बढ़ रहा है। यह कोई अच्छा संकेत नहीं। पर्वतों पर बर्फ कम जम रही है यह भी अच्छा संकेत नहीं। भारतीय क्षेत्र में हिमालय की ऊंची पहाडि़यों पर बर्फ कम गिर रही है यह भी अच्छा संकेत नहीं। जितना वायुमंडल शुद्ध रहेगा मानव जीवन के लिए सब कुछ अच्छा रहेगा। हमें हर सूरत में प्रदूषण के प्रति सावधान होकर जीवन के प्रति चिंतित होना चाहिए यह सबके लिए वरदान ही सिद्ध होगा। शुद्ध हवा हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।

Advertisement
Author Image

Kiran Chopra

View all posts

Advertisement
×