भाजपा चुनावी मुद्दा तलाशने पर मजबूर
राहुल गांधी की बिहार में मतदाता अधिकार यात्रा ने भाजपा को राज्य में आगामी विधानसभा चुनाव के लिए चुनावी मुद्दा तलाशने पर मजबूर कर दिया है। राहुल गांधी द्वारा जुटाई गई भारी भीड़ और मतदाताओं, खासकर दलितों और मुसलमानों के बीच उनके ‘वोट चोरी’ नारे की गूंज से पार्टी कार्यकर्ता परेशान हैं। उनकी चिंता रणनीति में बदलाव से स्पष्ट है। वे अब घुसपैठ और अवैध प्रवास के ध्रुवीकरण के मुद्दों को कम करके आंक रहे हैं, जिन्हें ‘एसआईआर’ के ज़रिए उजागर करने की कोशिश की थी। इसके बजाय, वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां के ‘अपमान’ को उजागर करके और इसके लिए गांधी को दोषी ठहराकर मतदाताओं को भड़काने की कोशिश कर रहे हैं। दरअसल, यह अपमानजनक टिप्पणी गांधी की एक रैली में एक अज्ञात व्यक्ति ने की थी। उसने यह टिप्पणी गांधी के कार्यक्रम स्थल से जाने के बाद ही की थी, लेकिन भाजपा गांधी को ज़िम्मेदार ठहराने की कोशिश कर रही है।
भाजपा के अभियान का एक और पहलू, तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद के चेहरे पर चुप्पी पर सवाल उठाकर गांधी और राजद नेता तेजस्वी यादव के बीच दरार पैदा करने की कोशिश करना है। जब राजद नेता ने खुद को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया, तब गांधी ने यादव के साथ अपनी संयुक्त रैली में कुछ नहीं कहा। हालांकि, बिहार में भाजपा कार्यकर्ता इस दोहरी रणनीति के कारगर होने को लेकर अनिश्चित हैं। वे निजी तौर पर स्वीकार करते हैं कि पार्टी को उम्मीद नहीं थी कि गांधी का वोट चोरी का नारा इस तरह लोकप्रिय होगा।
वे मानते हैं कि दलितों और मुसलमानों के बीच एक महत्वपूर्ण चुनाव से ठीक पहले एसआईआर का विचार एक बुरा विचार था, क्योंकि उन्हें डर है कि कहीं उन्हें मताधिकार से वंचित न कर दिया जाए। वोट चोरी उसी तरह से सामने आ रही है जैसे 2024 के लोकसभा चुनावों में आरक्षण के मुद्दे ने भाजपा के खिलाफ काम किया था, जब विपक्ष कोटा लाभार्थियों के बीच यह चिंता फैलाने में कामयाब रहा कि अगर मोदी सरकार 400 सीटों के साथ सत्ता में आई तो उनके अधिकार छीन लिए जाएंगे।
मोदी क्यों रहे चीन सैन्य परेड से दूर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास चीन में शंघाई सहयोग संगठन के दो दिवसीय शिखर सम्मेलन के बाद हुई भव्य सैन्य परेड से दूर रहने के दो अच्छे कारण थे। पहला, यह परेड उस दिन के साथ मेल खाती है जिस दिन द्वितीय विश्व युद्ध में अपनी हार के बाद जापानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया था। मोदी द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने के लिए शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में जाते हुए जापान गए थे। अगर वे उस परेड में शामिल होते जो उनके देश के लिए अपमान का दिन था, तो जापानियों को गलत संदेश जाता।
इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इस परेड का उद्देश्य उन्नत लड़ाकू विमानों और गैर-परमाणु हथियारों के प्रदर्शन के साथ चीन की सैन्य शक्ति का प्रदर्शन करना था। इनमें से कुछ का इस्तेमाल पाकिस्तान ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान किया था। अन्य हथियार निकट भविष्य में पाकिस्तान पहुंच सकते हैं, जो चीन की मदद से अपनी सैन्य शक्ति बढ़ा रहा है। यह दृश्य भारतीय प्रधानमंत्री के लिए असहज होता, इसलिए उन्होंने समझदारी दिखाते हुए परेड से एक दिन पहले ही स्वदेश वापस लौट आए।
मोदी शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के किसी सदस्य देश के एकमात्र नेता थे जिन्होंने परेड में भाग नहीं लिया। हालांकि उनके चीनी मेज़बान शायद कारणों को समझते होंगे, लेकिन सोशल मीडिया उपयोगकर्ता इतने क्षमाशील नहीं थे। कुछ लोगों ने टिप्पणी की कि इस घटनाक्रम के मद्देनज़र चीन भारत से ‘सच्चा दोस्त’ होने की उम्मीद नहीं कर सकता। चीनी विदेश मामलों के विश्लेषकों ने भी ऐसी ही राय व्यक्त की। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप मनमाने टैरिफ लगाकर स्थापित वैश्विक ढांचे को ध्वस्त करने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे उभरती नई विश्व व्यवस्था में भारत को संतुलन बनाने की चुनौती का सामना करना पड़ेगा।
मोदी के शिष्टमंडल में जयशंकर क्यों नहीं
एससीओ शिखर सम्मेलन में मोदी के प्रतिनिधिमंडल से एक उल्लेखनीय अनुपस्थिति विदेश मंत्री एस. जयशंकर की रही। उनकी अनुपस्थिति का आधिकारिक कारण खराब स्वास्थ्य बताया गया। लेकिन भाजपा में कम ही लोग इस बात से सहमत हैं। विदेश मंत्री हमेशा प्रधानमंत्री के साथ विदेश यात्रा पर जाते हैं, यहां तक कि एससीओ शिखर सम्मेलन जैसी सुरक्षा बैठक के लिए भी। भाजपा के सूत्रों का कहना है कि उनकी अनुपस्थिति के दो संभावित कारण हैं। पहला यह कि जयशंकर अपने अमेरिका समर्थक विचारों के लिए व्यापक रूप से जाने जाते हैं। हो सकता है कि वह उस सम्मेलन में अनुपयुक्त रहे हों जिसका उद्देश्य अमेरिका को यह कड़ा संदेश देना था कि एक वैकल्पिक शक्ति समूह आकार ले रहा है।
जयशंकर हाल ही में अपने बेटे के रिलायंस द्वारा वित्त पोषित ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन से संबंधों को लेकर सोशल मीडिया पर उठे विवाद के केंद्र में रहे हैं, जिसे एक अमेरिका समर्थक थिंक टैंक माना जाता है। जयशंकर के बेटे ध्रुव वाशिंगटन डीसी में ओआरएफ के कार्यालय के प्रमुख हैं। शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में डोभाल बेशक बेहद अहम रहे। याद रहे कि हाल ही में जब एनएसए बीजिंग गए थे, तो उन्हें चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाक़ात का मौक़ा मिला था। किसी विदेशी मेहमान के लिए यह दुर्लभ है और यह दर्शाता है कि उन्होंने चीनियों के साथ कितना अच्छा तालमेल बिठाया है।