Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

नकली दवाइयों का काला कारोबार

06:02 AM Sep 02, 2025 IST | Rohit Maheshwari

अगर आप डॉक्टर की बताई मात्रा और सही समय पर दवाइयां ले रहे हैं और आपकी तबीयत में सुधार नहीं हो रहा है तो फिर आप जो दवा ले रहे हैं वो नकली हो सकती है। एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में हर चौथी दवा नकली है। बुखार, शुगर, ब्लड प्रेशर, पेन किलर से लेकर कैंसर तक की घटिया या नकली दवाएं मार्केट में हैं। कई नामी देसी-विदेशी कंपनियों के नाम की ये दवाइयां बिक रही हैं। हाल ही में उत्तर प्रदेश की ताज नगरी आगरा में नकली दवाओं के बड़े सिंडिकेट का पर्दाफाश हुआ है। जांच में सामने आया है कि पुडुचेरी-चेन्नई में नकली दवाएं बनाकर आगरा में भंडारण कर चार राज्यों में खपाया जा रहा था। औषधि विभाग की टीम ने ऐसी 8 फर्मों की करीब 71 करोड़ की दवाएं सीज की हैं और तीन दवा कारोबारियों को गिरफ्तार किया है। सिंडिकेट में 40 दवा विक्रेताओं के शामिल होने के सुराग मिले हैं। दवाओं का काला कारोबार करने के लिए 15 डमी फर्म भी चिह्नित की हैं। इनके नाम पर ये कई राज्यों में कारोबार कर रहे थे। दवाओं को मंगवाने और भेजने में ये रेलवे सेवा का उपयोग कर रहे थे। पिछले साल नवंबर में आगरा के शास्त्रीपुरम इलाके में पशुओं की नकली दवाएं बनाने की फैक्ट्री पकड़ी गई थी।

नकली दवाओं के कारोबार का नेटवर्क पूरे देश में फैला है। इंसानों ही नहीं जानवरों की दवाईयां भी नकली बनाई जा रही हैं। इस काले धंधे के तार ऊपर से नीचे तक जुड़े हुए हैं। 1969 से संचालित देश के सबसे बड़े थोक दवा व्यापारिक केंद्रों में शुमार भागीरथी पैलेस पर पिछले तीन वर्षों में दिल्ली औषधि नियंत्रण विभाग और दिल्ली पुलिस ने छापेमारी कर 14 करोड़ से अधिक की नकली दवाएं पकड़ी हैं। खास बात यह है कि इनमें से ज्यादातर नकली दवाएं कैंसर, हृदय, किडनी, डायबिटीज और नसों के रोगों से संबंधित थी, जिन्हें नामी दवा कंपनियों के ब्रांड नाम से पैक कर बेचा जा रहा था। नकली दवाओं की पैकेजिंग, बारकोड-क्यूआर कोड मूल दवाओं जैसे होने से इनके खरीदार झांसे में आ जाते हैं जिससे मरीजों की जान खतरे में पड़ जाती है।

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन यानी डब्ल्यूएचओ का दावा है कि दुनिया में नकली दवाओं का कारोबार 200 बिलियन डॉलर यानी करीब 16,60,000 करोड़ रुपये का है। नकली दवाएं 67 फीसदी जीवन के लिए खतरा होती हैं। बची हुई दवाएं खतरनाक भले ही ना हों लेकिन उनमें बीमारी ठीक करने वाला साल्ट नहीं होता है, जिस वजह से मरीज की तबीयत ठीक नहीं होती है। आखिरकार मर्ज बिगड़ता चला जाता है जिससे वह मौत के मुंह तक चला जाता है। नकली या घटिया दवाओं के एक्सपोर्ट और इंपोर्ट का भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा बाजार है। एसोचैम की एक स्टडी के मुताबिक, भारत में 25 फीसदी दवाएं नकली या घटिया हैं। भारतीय मार्केट में इनका कारोबार 352 करोड़ रुपये का है।

वर्ष 2024 में तेलंगाना में करोड़ों की नकली या घटिया दवाइयां पकड़ी गईं। तेलंगाना ड्रग्स कंट्रोल एडमिनिस्ट्रेशन की जांच में खुलासा हुआ कि नामी कंपनियों के नाम से बनी इन दवाइयों में चाक पाउडर या स्टार्च था। इसी तरह अगर कैप्सूल एमोक्सिलिन का है तो उसमें सस्ती दवा पेरासिटामोल भरी हुई थी। इसी तरह 500 ग्राम एमोक्सिलिन साल्ट की मात्रा सिर्फ 50 ग्राम ही थी। कैंसर तक की नकली दवाएं पकड़ी गईं। ये सभी दवाएं उत्तराखंड के काशीपुर और यूपी के गाजियाबाद से कूरियर के जरिए तेलंगाना पहुंची थी। इन दवाओं की पैकिंग इस तरह की गई थी जो बिल्कुल असली लग रही थीं। इनकी पहचान करना मुश्किल था। उत्तराखंड में पिछले साल कई दवा कंपनियों के सैंपल जांच में खरे नहीं उतरे तो उनका लाइसेंस कैंसल किया गया। यह सभी दवाइयां उत्तराखंड में बन रही थीं। इसी तरह आगरा के मोहम्मदपुर में 2024 में नकली दवा बनाने वाली फैक्ट्री पकड़ी गई। पुलिस ने 80 करोड़ रुपये की नकली दवाएं पकड़ी थीं। इसमें कैंसर, डायबिटीज, एलर्जी, स्लीपिंग पिल्स और एंटीबायोटिक्स दवाएं शामिल थीं। इसी तरह देश के कई राज्यों में छापेमारी कर नकली दवाओं की खेप पकड़ी गई। इससे पहले कोविड-19 के समय भी देशभर में नकली रेमडेसिवीर के इंजेक्शन सप्लाई करने के मामले तक सामने आए थे।

दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने भी कई ऑपरेशन में पिछले सालों में दिल्ली-एनसीआर में चल रहे कई सिंडिकेट का भंडाफोड़ किया। गाजियाबाद के लोनी स्थित ट्रोनिका सिटी में नकली दवाओं का गोदाम पकड़ा, जिसका मास्टरमाइंड एक डॉक्टर निकला। ये सोनीपत के गन्नौर स्थित फैक्ट्री में भारत, अमेरिका, इंग्लैंड, बंगलादेश और श्रीलंका की 7 बड़ी कंपनियों के 20 से ज्यादा ब्रांड की नकली दवा तैयार कर रहे थे। इंडिया मार्ट और भागीरथ प्लेस तक में इनकी सप्लाई थी। भारत के अलावा चीन, बंगलादेश और नेपाल में एक्सपोर्ट करते थे।
विशेषज्ञों के अनुसार नामी ब्रांडेड कंपनियों के नाम से ही नकली या घटिया दवाइयां बनती हैं, क्योंकि इसके जरिए जालसाज मोटा मुनाफा कमाते हैं। दूसरी तरफ, जेनेरिक दवाइयों के नकली होने के मामले अभी तक सामने नहीं आए हैं, क्योंकि इन्हें नकली बनाने पर कोई ज्यादा फायदा नहीं होने वाला है। जेनेरिक दवाइयां सस्ती होती हैं जो उसी तरह का फायदा करती हैं, जिस तरह का लाभ ब्रांडेड दवाइयों से मिलता है। सरकार जेनेरिक दवाइयों को बढ़ावा दे रही है जो काफी सस्ती होती हैं। इन्हें आप मेडिकल स्टोर और जन औषधि केंद्र से खरीद सकते हैं।

कुछ ऐसी दवाएं हैं जिन्हें ज्यादा मात्रा में लेने पर नशा होने लगता है। शराब और ड्रग्स से इन दवाओं का नशा काफी सस्ता होने से नशेड़ी इसका इस्तेमाल करते हैं। इस वजह से कफ सिरप, पेन किलर्स, डिप्रेशन पिल्स और मनोरोगियों को दिए जाने वाले इंजेक्शन की खपत बढ़ रही है। इसका फायदा दवा बनाने वाली कंपनियां भी उठा रही हैं, जो एक लाइसेंस पर कई फैक्ट्रियां चलाकर इन्हें धड़ल्ले से बना रही हैं। डिप्रेशन के इलाज के लिए दी जाने वाली गोली का आजकल रेव पार्टियों में काफी इस्तेमाल हो रहा है। यह सही है कि असली की आड़ में नकली दवा का कारोबार पनप रहा है। देखने में यह नकली दवा ब्रांडेड दवा की तरह ही होती हैं लेकिन यह अलग-अलग मटेरियल से तैयार होती हैं। आगरा में दवा माफियाओं ने ब्रांडेड कंपनी की दवाओं के सुरक्षा फीचर में भी सेंधमारी की। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से नकली क्यूआर कोड बनाया। यहां तक कि कंपनी के एक ही बैच नंबर से 1000 गुना तक दवाएं बनाकर बाजार में खपा दीं। इसमें एक ही बिल को बार-बार दर्शाने पर ये खेल पकड़ में आया। नामी कंपनी को जब निर्माण से ज्यादा दवाएं बाजार में मिलने लगीं तब विभाग से इसकी शिकायत की। 3-4 महीने तक रेकी करने के बाद साक्ष्य जुटाए फिर छापा मारा।

नकली दवाओं की बिक्री बेहद गंभीर मामला है लेकिन अगर आप जागरूक नहीं हैं तो ये आसानी से पकड़ में नहीं आ पातीं। दूसरी सबसे बड़ी वजह है कमजोर निगरानी सिस्टम। कायदे से ड्रग कंट्रोल डिपार्टमेंट की ये जिम्मेदारी है कि वह नकली दवाओं की खरीद- फरोख्त करने वालों को पकड़ें लेकिन अमूमन ऐसा कम ही देखने को मिलता है। अगर नियमित तौर पर ये डिपार्टमेंट जांच पड़ताल करे तो नकली दवाएं बेचने वालों की लगाम कसी जा सकती है। नकली दवाएं मरीजों के लिए जानलेवा साबित होती हैं। ऐसे में जरूरी है निगरानी सिस्टम को दुरुस्त किया जाए।

Advertisement
Advertisement
Next Article