For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

लाल आतंक का खूनी खेल

छत्तीसगढ़ में लाल आतंक का खेल थमने का नाम नहीं ले रहा। राज्य की धरती…

10:16 AM Jan 07, 2025 IST | Aditya Chopra

छत्तीसगढ़ में लाल आतंक का खेल थमने का नाम नहीं ले रहा। राज्य की धरती…

लाल आतंक का खूनी खेल

छत्तीसगढ़ में लाल आतंक का खेल थमने का नाम नहीं ले रहा। राज्य की धरती लगातार सुरक्षा बलों के जवानों और नक्सलियों के खून से लाल होती रहती है। नक्सलियों से खूनी जंग कब थमेगी और कब तक हमारे जवान शहीद होते रहेंगे। यह सवाल सबके सामने बना हुआ है। सुरक्षा बलों की लगातार सफलता के बाद यह उम्मीद जाग जाती है कि लाल आतंक जल्द खत्म हो जाएगा लेकिन माओवाद के गढ़ में न गोलियों की आवाज थमती है और न ही बम धमाके रुकते हैं। बीजापुर में सोमवार को नक्सलियों ने आईईडी ब्लास्ट कर सुरक्षा बलों के वाहन को उड़ा दिया। जिससे आठ जवानों और एक ड्राइवर की शहादत हुई। इससे एक दिन पहले सुरक्षा बलों ने पांच नक्सलियों को मार गिराया था। महाराष्ट्र, ओडीशा, झारखंड और पश्चिम बंगाल में लाल आतंक का दायरा काफी सिमट चुका है। मगर छत्तीसगढ़ में नक्सलियों का पूरी तरह से सफाया किया जाना बड़ी चुनौती बना हुआ है।

भारत में नक्सली हिंसा की शुरूआत 1967 में पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग जिले के नक्सलबाड़ी गांव से हुई थी। गांव के नाम पर ही उग्रपंथी आंदोलन को नक्सलवाद कहा गया। जमीदारों द्वारा छोटे किसानों पर किए जा रहे उत्पीड़न पर अंकुश लगाने के लिए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के कुछ नेता सामने आए। इन नेताओं में चारू मजूमदार, कानू सान्याल और कन्हाई चैटर्जी के नाम प्रमुख रहे। नक्सलवाद की शुरूआत होते ही यह सवाल वैचारणीय रहा कि नक्सलवाद मूल रूप से कानूनी समस्या है या सामाजिक​ विषमता से उत्पन्न लावा। एक वर्ग इसे सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक विषमताओं एवं दमन शोषण की पीड़ा से ऊपजा एक विद्रोह मानता है तो दूसरा वर्ग इसे आतंकवाद मानकर देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी चुनौती मानता है। नक्सलवाद का उभार आदिवासी इलाकों में जल, जंगल और जमीन को बचाने के लिए हुआ था लेकिन बाद में नक्सलवाद अपने रास्ते से भटक गया और उसने आतंकवाद का स्वरूप धारण कर लिया। नक्सलवादी गिरोहों का मकसद अब लूट-खसोट, हत्याएं और आतंकी हिंसा ही रह गया है। नक्सलियों के पास अब अत्याधुनिक हथियार और विस्फोटक पहुंच रहे हैं, जिससे वे लगातार साजिशें रचने में कामयाब हो रहे हैं। बीजापुर का हमला वर्ष 2025 की शुरूआत में ही ऐसे वक्त में हुआ है जब केन्द्र सरकार और राज्य सरकारें नक्सलवाद के खिलाफ संयुक्त अभियान चला रही हैं।

नक्सलियों के इस हमले को बौखलाहट में किया गया हमला बताया जा रहा है और यह भी माना जा रहा है कि नक्सली अब अंतिम दौर की लड़ाई लड़ रहे हैं। 2010 में देश के 126 जिले नक्सल प्रभावित थे। 2018 में यह संख्या घटकर 90 रह गई। 2021 में 70 आैर 2024 में यह संख्या 38 रह गई। वर्तमान में इन 38 जिलों में छत्तीसगढ़ के 15 जिले नक्सल प्रभावित हैं। इनमें बीजापुर, बस्तर, दंतेवाड़ा, धमतरी, कांकेर, महासमुंद, सुकमा, नारायणपुर आैर राजनांदगांव आदि जिले शामिल हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि राज्य सरकारें नक्सलवाद की कमर तोड़ने में सफल हो चुकी हैं। गृहमंत्री अमित शाह स्वयं नक्सलवाद विरोधी अभियान की बागडोर सम्भाले हुए हैं। केन्द्र सरकार ने मार्च 2026 तक भारत को नक्सलवाद से मुक्त करने का लक्ष्य रखा हुआ है।

साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल के मुताबिक 2014-19 के मुकाबले 2019-24 में नक्सल वारदातों की संख्या में कमी आई है। 2014 से 2019 के बीच 1028 नक्सली घटनाएं हुई थीं, जो 2019-24 में 643 है। साल 2022 और 2023 में सबसे कम 107 और 113 नक्सल वारदात की घटनाएं हुई थीं। यानी नक्सल मूवमेंट अब धीरे-धीरे कमजोर पड़ रहा है। नक्सल अटैक में शहीद होने वाले जवान और आम नागरिकों की संख्या में भी कमी आई है। साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल के मुताबिक भारत में 2019 से 2024 के बीच 165 जवान शहीद हुए हैं। वहीं यह आंकड़ा 2014-19 में 316 था। बात सिविलयन की करें तो पिछले 5 साल में 313 आम नागरिक नक्सल अटैक में मारे गए हैं। 2014-19 में यह आंकड़ा 526 था। इसके मुकाबले मरने वाले नक्सलियों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।

पिछले 10 साल में 866 से ज्यादा नक्सली मारे गए हैं। केंद्र के मुताबिक पिछले साल ही 231 नक्सली मारे गए हैं। ऑपरेशन में एक तरफ नक्सली जहां ज्यादा से ज्यादा मारे जा रहे हैं। वहीं पकड़े जाने वाले नक्सलियों की संख्या में भी बढ़ोतरी देखी गई है। 2024 के अक्तूबर तक 736 नक्सलियों ने सरेंडर किया था, जबकि 800 से ज्यादा नक्सली पकड़े गए थे। केंद्रीय गृह मंत्रालय के मुताबिक देश के टॉप-14 नक्सली नेता अब खत्म हो चुके हैं। वहीं नक्सलियों का 85 प्रतिशत काडर या तो खत्म हो चुका है या आत्मसमर्पण कर चुका है। नक्सल प्रभावित इलाकों में पिछले 5 वर्षों में 14 हजार 529 किलोमीटर सड़कों का निर्माण किया जा चुका है जो एक रिकॉर्ड है। इन क्षेत्रों में राज्य सरकारें विकास की बयार बहा रही हैं और लोग राष्ट्र की मुख्यधारा से जुड़ रहे हैं। भारी संख्या में नक्सलवादी हथियार छोड़ चुके हैं। उम्मीद है कि देश नक्सलवाद की समस्या से एक दिन मुक्त हो जाएगा।

Advertisement
Advertisement
Author Image

Aditya Chopra

View all posts

Aditya Chopra is well known for his phenomenal viral articles.

Advertisement
×