W3Schools
For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

जल प्रलय की विभीषिका

06:45 AM Sep 03, 2025 IST | Aditya Chopra
जल प्रलय की विभीषिका
Advertisement

पंजाब, हिमाचल, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और हरियाणा इस समय विनाशकारी बाढ़ की चपेट में हैं। भारी बारिश ने समूचे उत्तर भारत में तबाही का मंजर पैदा कर दिया है। जल प्रलय की स्थिति इतनी भयानक है कि दृश्य देखने से ही रौंगटे खड़े हो जाते हैं। हिमाचल और उत्तराखंड में गांव दबते जा रहे हैं। बादल फटने की लगातार घटनाओं ने हाहाकार मचा रखा है। पंजाब में खेत के खेत और 1200 से अधिक गांव डूब चुके हैं। मरे हुए मवेशियों की लाशें डूबती नज़र आ रही हैं। प्राकृतिक आपदाओं में सैकड़ों लोगों की मौत हो चुकी है। हजारों लोग अपनी जान बचाने के लिए सुरक्षित स्थानों की तलाश में पानी में तैरते नज़र आ रहे हैं। चांद पर और अंतरिक्ष में पहुंचने वाला इंसान प्राकृतिक आपदाओं के आगे असहाय नज़र आ रहा है। बाढ़ की त्रासदी झेल रहे इन राज्यों में जान और माल की व्यापक क्षति तो हुई ही है साथ ही साथ खेतों में खड़ी फसलें भी नष्ट हो चुकी हैं। अगस्त की बारिश घनघोर रूप से बरसी। हिमालय के नाजुक ढलानों को तरबतर करते हुए मैदानी इलाकों में तटबंधों को तोड़कर निचले इलाकों को जलमग्न कर रही है।

सितंबर में भी भारी वर्षा की भविष्यवाणी की जा रही है। मॉनसून की बढ़ती अनियमितता अनिश्चितता का संकेत दे रही है। इस बाढ़ के परिणाम तत्कालीन नुक्सान से कहीं आगे तक दिखाई देंगे। पंजाब के 1300 से अधिक गांव जलमग्न हैं। 3 लाख एकड़ में फसलें डूब गईं। हिमाचल को आपदा प्रभावित राज्य घोषित कर दिया गया है। चंडीगढ़, मनाली फोर लेन सहित 5 नैशनल हाइवे और 800 सड़कें बंद पड़ी हैं। हरियाणा के सात जिलों में भी बाढ़ जैसे हालात हैं। राज्य में अब तक 2.50 लाख एकड़ में फसलों को नुक्सान हुआ है और 40 हजार से अधिक किसान प्रभावित हुए हैं। उत्तराखंड और जम्मू -कश्मीर में भी व्यापक तबाही मची हुई है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली समेत एनसीआर में यमुना उफान पर है। दक्षिण पश्चिम मॉनसून की तीव्रता और मात्रा चरम बिन्दु के आसपास घट-बढ़ रही है।

भारी वर्षा ने पहाड़ों को अस्थिर कर दिया है और नागरिक बस्तियों के लिए जोखिम बढ़ा दिया है। जलवायु परिवर्तन से बुनियादी ढांचे का विकास पिछड़ने का खतरा पैदा हो गया है। पंजाब तो पहले से ही कृषि संकट से जूझ रहा था। बाढ़ की तबाही ने इस बड़े उपजाऊ क्षेत्र के संकट को और भी गंभीर बना दिया है। ​किसानों को अब सामान्य स्थिति बहाल करने में वर्षों लग जाएंगे। हिमाचल और उत्तराखंड में सड़कों का पूरा नेटवर्क ही बिखर गया है। दोनों पहाड़ी राज्य आपदा के पुराने जख्मों से उबर नहीं पाए ​कि नई आपदाओं ने इन्हें पूरी तरह से घेर लिया। ध्वस्त हुए पुलों ने न केवल कनेक्टीविटी को अवरुद्ध किया है बल्कि पर्यटन उद्योग के लिए बहुत बड़ा संकट खड़ा कर दिया है। बाढ़ की विभीषिका ने हजारों लोगों को विस्थापित किया है जिससे इन राज्यों का सामाजिक ताना बाना बिगड़ने की आशंका उत्पन्न हो गई है। पहाड़ी राज्यों में सड़कों और पुलों के निर्माण में काफी समय लग सकता है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर 60 हजार करोड़ रुपए की मांग की है। पहाड़ी राज्य और हरियाणा को भी सहायता की जरूरत होगी।

ऐसी स्थि​ति में राहत मात्र जवाबी उपायों तक सीमित नहीं रह सकती। इस समय बाढ़ की चपेट में आए लोग केन्द्र और राज्य सरकारों से सहायता की उम्मीद कर रहे हैं। इस समय नौकरशाही ओर प्रशासन तंत्र की लापरवाही स्वीकार्य नहीं होनी चाहिए। विनाश को देखते हुए केन्द्र के तत्काल हस्तक्षेप की जरूरत है। इन राज्यों को आपदा राहत निधि और विशेष पैकेज की तुरंत जरूरत है। केन्द्र और राज्यों की दलगत राजनीति से ऊपर उठकर आपस में संवादहीनता को खत्म करना चाहिए। बाढ़ पीड़ितों को इस समय भोजन, दवाइयों और वित्तीय मदद की जरूरत है। इस संकट की घड़ी में सभी को मदद के लिए हाथ बढ़ाने चाहिए। भारत में लगभग हर राज्य किसी न किसी रूप में बाढ़ से प्रभावित होता है। बिहार राज्य बाढ़ से सर्वाधिक प्रभावित है। वर्ष 1954 से चल रहे राष्ट्रीय बाढ़ नियंत्रण कार्यक्रम के तहत अभी तक प्रभावशाली बाढ़ नियंत्रण प्रणाली विकसित नहीं की जा सकी। विडम्बना यह है कि नौकरशाही और प्रशासन का पूरा तंत्र बाढ़ को आपदा उत्सव बना बैठे हैं।

बाढ़ राहत कार्यों में जमकर भ्रष्टाचार होता है। राहत अभियान की खबरें और बजट जोर शोर से प्रचारित किए जाते हैं लेकिन धरातल पर कुछ ज्यादा नहीं किया जाता। जब तक टिकाऊ बुनियादी ढांचे, भूस्खलन को रोकने, नदियों के किनारे शहरी बस्तियां बसाने से रोकने और पूर्व चेतावनी प्रणालियों पर गंभीरता से काम नहीं किया गया तो हम सबको अगले मॉनसून के दौरान कहर का एक और दौर झेलने के लिए तैयार रहना होगा। गैर सरकारी संगठनों को भी बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए ईमानदारी से प्रयास करने होंगे। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि बाढ़ प्रभावित राज्यों की अ​र्थव्यवस्था को पटरी पर कैसे लाया जाए।

Advertisement
Advertisement
Author Image

Aditya Chopra

View all posts

Aditya Chopra is well known for his phenomenal viral articles.

Advertisement
×