For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर केंद्र सरकार दाखिल करेगी समीक्षा याचिका

सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले पर केंद्र सरकार का रुख

03:59 AM Apr 14, 2025 IST | Himanshu Negi

सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले पर केंद्र सरकार का रुख

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर केंद्र सरकार दाखिल करेगी समीक्षा याचिका

सुप्रीम कोर्ट के 8 अप्रैल के फैसले के बाद केंद्र सरकार समीक्षा याचिका दाखिल करने की तैयारी में है। कोर्ट ने राज्यपालों को विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समय सीमा तय की है, जिससे संवैधानिक बहस छिड़ गई है। सरकार का मानना है कि यह न्यायपालिका की सीमा से बाहर हो सकता है।

सुप्रीम कोर्ट के 8 अप्रैल के फैसले के बाद न्यायापालिका और विधायिका के अधिकार को लेकर एक बार फिर बहस शुरू हो गयी है। इस बीच सूत्रों की माने तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर केंद्र सरकार समीक्षा याचिका दाखिल करने की तैयारी में है। सरकार का मानना है कि राष्ट्रपति और राज्यपाल जैसे संवैधानिक पदों के लिए समय सीमा निर्धारित करना न्यायपालिका की सीमा से बाहर जा सकता है। इस ऐतिहासिक फैसले में कोर्टने यह स्पष्ट किया कि राज्यपाल विधानसभा से पारित विधेयकों को अनिश्चितकाल तक लंबित नहीं रख सकते। साथ ही, उसने राष्ट्रपति के समक्ष भेजे गए विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए तीन महीने की समय सीमा भी तय की है। सर्वोच्च अदालत के इस फैसले पर कानून के जानकारों के बीच भी बहस छिड़ गई है और वह भविष्य के संवैधानिक संकट को लेकर आशंकित हैं।

कोलकाता में TMC का विरोध मार्च, शिक्षक भर्ती रद्द पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध

कोर्ट का हस्तक्षेप

कुछ विधि विशेषज्ञों को मानना है कि जब राज्यपालों के निणर्यों में राष्ट्रपति की कोई भूमिका नहं है तो फिर उनको पार्टी क्यों बनाया गया। संवैधानिक और विधिक ना विशेषज्ञों के बीच यह बहस छिड़ गई है कि ने क्या सुप्रीम कोर्ट वास्तव में भारत के राष्ट्रपति ने को निर्देश दे सकता है? यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण हो गया है, क्योंकि यह शायद पहली बार है जब न्यायालय ने सीधे तौर पर राष्ट्रपति को कोई समयसीमा तय करने संबंधी निर्देश दिया है। कोर्ट को यह हस्तक्षेप इसलिए करना पड़ा ताकि राज्यपाल अपनी व सवैधानिक सीमाओं का उल्लंघन न करें। उनका मानना है कि यह फैसला एक तरह से अनुशासनात्मक कदम है, जिससे अन्य राज्यपालों को भी एक स्पष्ट संदेश मिलेगा कि वे संविधान के दायरे में रहकर ही काम करें। यह तर्क दिया जा रहा है कि राष्ट्रपति कोई सामान्य सरकारी पदाधिकारी नहीं है, बल्कि वह देश का प्रमुख, संविधान का संरक्षक और सशस्त्र बलों का सर्वोच्च कमांडर है।

वह प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद की सलाह और सहायता से काम करता है। यदि न्यायालय राष्ट्रपति को कोई आदेश देता है, इससे उस संवैधानिक व्यवस्था पर सवाल उठ सकता जिसमें राष्ट्रपति केवल कायपालिका की सलाह पर काम करता है। इससे यह शंका भी उत्पन्न होती है कि क्या कोर्ट, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच की लक्ष्मण रेखा को पार कर रहा है? क्या सुप्रीम कोर्ट इस फैसले के जरिए राष्ट्रपाति के लिए एक नई संवैधानिक स्थिति गढ़ रहा है? अगर राष्ट्रपति इस निर्देश को मानने से इनकार करता है तो क्या उसे अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया जा सकता है? यह एक कठिन संवैधानिक सवाल है।

Advertisement
Advertisement
Author Image

Himanshu Negi

View all posts

Advertisement
×