आतंक के साये से मुक्ति चाहता है आमजन
पाकिस्तान के आतंकी अड्डों पर भारत का प्रहार…
पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से भारत दशकों से पीड़ित है। पहलगाम आतंकी घटना के बाद ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के जरिए भारत ने न केवल पाकिस्तान बल्कि पाकिस्तान का समर्थन करने वाले देशों को भी सख्त और सशक्त संदेश भेजा है। पाकिस्तान कब्जे वाले कश्मीर और पाकिस्तानी पंजाब में कई ठिकानों पर हमला कर दहशतगर्दियों और उनके संरक्षकों को दो टूक बताया गया है कि भारतीयों के खून बहाने की महंगी कीमत उनको चुकानी पड़ेगी। भारतीय सैन्य बलों की कार्रवाई से पाकिस्तान के सैन्य बलों और सैन्य ठिकानों का बड़ा नुकसान पहुंचा है। ऑपरेशन सिंदूर हमारी तीनों सेनाओं के तालमेल, सूझबूझ और सटीक निशाने का कमाल है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों के लिए सिरदर्द बन चुका है।
भारत में पुलवामा, उरी, संसद हमला, मुंबई अटैक, कंधार हाईजैक जैसी कई आतंकी वारदातों में सीधे तौर पर पाकिस्तान का हाथ होने की बात सामने आई है। भले ही दोनों देशों के बीच संघर्ष विराम हो गया है लेकिन इतिहास और पाकिस्तान के चरित्र के मद्देनजर पाकिस्तान पर भरोसा करना मूर्खता के सिवाय कुछ और नहीं कहा जाएगा। अब तक भारत पाक पोषित आतंकवादी हमलों के बाद सिर्फ कूटनीतिक स्तर पर कार्यवाही की कोशिश करता रहा है। ऐसी स्थिति मुंबई हमले, संसद पर हुए हमले तथा पठानकोट एयर बेस पर हुए हमलों के बाद सामने आई। भारत सबूतों के आधार पर वैश्विक संगठनों से कार्रवाई की मांग करता रहा है।
ऑपरेशन सिंदूर से पहले भारत ने जो कदम उठाए, खासकर सिंधु जल संधि को निलंबित करने का फैसला, जो पाकिस्तान की कृषि और खाद्य सुरक्षा पर लंबे समय के लिए असर पड़ेगा। इसके अलावा मुरीदके और बहावलपुर में आतंकी अड्डों पर स्ट्राइक पाकिस्तानी सेना, आईएसआई और आतंकी गठजोड़ के लिए एक तगड़ा झटका है। भारत के इन हमलों से उसकी हिचक दूर हुई, जिसमें वह सीधे एक्शन से बचता था। पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों को तबाह करने से साजिशों को अंजाम देने की उसकी क्षमता भी कमजोर हुई है। यह आतंक के खिलाफ भारत की रणनीति का एक बड़ा बदलाव है। अब भारत किसी भी ऑपरेशन को अंजाम देने में हिचकता नहीं है। पहले पाक के परमाणु हथियार का डर दिखाकर भारत को कार्रवाई करने से रोका जाता रहा है।
कालांतर में 2016 में उरी में 19 सैनिकों के मारे जाने पर नियंत्रण रेखा के पार व 2019 में पुलवामा विस्फोट के बाद बालाकोट में एयर स्ट्राइक की गई। इसी तरह पहलगाम हमले के बाद सीधी कार्रवाई करके साफ संदेश दिया कि किसी भी आतंकी हमले का जवाब आतंकवाद को सींचने वाले पाक पर भारत सीधी कार्रवाई करेगा। भारत ने पहले पूरी दुनिया को पुलवामा हमले की साजिश के सबूत दिए और फिर कार्रवाई की। यही वजह है कि दुनिया के तमाम देश भारत के पक्ष में खड़े नजर आए। अब भारत ने महज अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर गुहार लगाना बंद कर दिया है। निश्चय ही यह रणनीति मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़ाने के बजाय अमेरिका व इस्राइल की तर्ज पर घर में घुसकर मारने की रणनीति है।
बहरहाल, भारत ने दुनिया को बता दिया कि पाक अपनी जमीन पर आतंकियों को प्रशिक्षण व समर्थन तो देता है लेकिन उनके विरुद्ध कार्रवाई से बचता है। वहीं दूसरी ओर भारत ने परंपरागत युद्ध शैली से हटकर नई तकनीकों का भरपूर उपयोग किया। भारतीय रक्षा कवच एस-400 यानी सुदर्शन चक्र आदि का पाक हमलों को विफल करना नवीनतम तकनीकों का ही प्रतिफल है। पहलगाम में हुए हमले ने भारत के लिए एक नई चुनौती पैदा की है। अब देश को अपनी साइबर संपत्तियों और महत्त्वपूर्ण सूचना ढांचे पर होने वाले नए तरह के हमलों के लिए तैयार रहना होगा। भारत पहले भी ऐसे हमलों का निशाना रहा है, लेकिन मौजूदा हालात में विरोधियों की ऐसी गतिविधियों को अंजाम देने की क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि हो गई है। देश के महत्त्वपूर्ण सूचना ढांचे को निशाना बनाना, राष्ट्र के विकास, प्रगति और समृद्धि को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने की मंशा रखने वाले तत्वों की प्राथमिकता बन सकता है।
घाटी में आतंकवादियों द्वारा नागरिकों की हत्याओं का पुराना रिकार्ड है। गृह मंत्रालय (एमएचए) के आंकड़ों के अनुसार पिछले पांच वर्षों के दौरान 2017 से नवंबर 2021 के बीच हर साल नागरिकों की हत्याओं की संख्या 37-40 के बीच रही है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 2017 में 40 और 2018 में 39 नागरिक मारे गए। 2019 में, जिस वर्ष केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 के तहत पूर्व राज्य की स्वायत्तता छीन ली और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया, घाटी में अल्पसंख्यकों और प्रवासी श्रमिकों पर आतंकवादी समूहों के हमले शुरू हो गए। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, उस वर्ष 36 नागरिक मारे गए, जबकि 2020 में यह आंकड़ा 33 था, लेकिन 2021 में यह आंकड़ा बढ़कर 38 हो गया। ज्यादातर हमले पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों द्वारा किए गए।
मोदी सरकार ने 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 में बालाकोट ऑपरेशन के जरिए भारत ने सख्त पैगाम दिए थे, लेकिन उनसे सीमा पार स्थित आतंकवादी ढांचों को खत्म नहीं किया जा सका। बेशक, इस बार की कार्रवाई उनसे बड़ी है और उससे पाकिस्तान में नुकसान भी ज्यादा हुआ है। ऑपरेशन सिंदूर में बेशक भारतीय सेनाओं ने जिस तरह आतंकियों के अड्डे ‘मिट्टी-मलबा’ किए हैं और 100 से अधिक आतंकियों को मौत के घाट उतारा है, वह निश्चित ही विराट सफलता है, लेकिन आतंकियों का आका पाकिस्तान बच गया है। बहुत कुछ मिट्टी में मिलाया नहीं जा सका। पाकिस्तान की वायुसेना का बर्बाद ढांचा फिर से खड़ा किया जा सकता है। चीन और तुर्किये की मदद से एयर डिफेंस, रडार सिस्टम और अन्य सुरक्षा बंदोबस्त दोबारा हासिल किए जा सकते हैं।
इस समय पाकिस्तान घुटनों के बल पर आ चुका था। पाकिस्तान जैसे आतंकी और गैर-जिम्मेदाराना देश से ‘परमाणु शक्ति’ छीनने के प्रयास भी किए जा सकते थे। ‘इस्लामी परमाणु बम’ की अवधारणा के खिलाफ भारत विश्व-मत तैयार कर सकता था। हम युद्धोन्मादी, युद्ध के पक्षधर नहीं हैं, लेकिन ऐसे अवसर को खोया भी नहीं जा सकता। पाकिस्तान आतंकिस्तान है। वह 2003 और 2021 में भी भारत के साथ युद्ध विराम के समझौते कर चुका है, लेकिन उसने लगातार उल्लंघन किया है। भारत इस टकराव में किसी अंतर्राष्ट्रीय संधि या कानून, संयुक्त राष्ट्र के किसी चार्टर का उल्लंघन भी नहीं कर रहा था। फिलहाल भारत के पास सटीक मौका था। लड़ाई का ऐसा मोर्चा निकट भविष्य में बनना असंभव है। इस बार पाकिस्तान की सेना को छिन्न-भिन्न किया जा सकता था। बल्कि उसे सेनाविहीन की स्थिति में लाया जा सकता था।
इन सब के बावजूद पाकिस्तान आतंक का सहारा लेना छोड़ देगा, इस पर कुछ कह नहीं सकते। लेकिन ऐसा करने से वह दुनिया के सामने एक्सपोज जरूर हो जाएगा। वहीं भारत ने भी सीजफायर के ऐलान के बाद कहा था कि वह किसी भी आतंकी हमले को पाकिस्तान की तरफ से एक्ट ऑफ वॉर मानेगा। हालांकि अगर लंबे समय के लिए आतंक से मुक्ति चाहिए तो उसके लिए आतंकी ढांचे को पूरी तरह खत्म करना होगा। नहीं तो यह आशंका हमेशा रहेगी कि आतंकवाद का इस्तेमाल पाकिस्तान स्टेट पॉलिसी के रूप में करेगा। वहीं पूरी दुनिया के सामने पाकिस्तान का सच सामने आ चुका है। आतंक के साये से मुक्ति मिले, यह भारतीय जन मानस की अपेक्षा है।