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रूस से संबंधों पर देश को चुकानी होगी भारी कीमत..., यूक्रेन मुद्दे पर अमेरिका की भारत को खुली चेतावनी

रूस और यूक्रेन के बीच लगातार जारी महायुद्ध का आज 44वां दिन है, जिस तरह से दोनों देश एकदूसरे पर वार-पलटवार कर रहे हैं उससे यह जंग इतनी जल्दी खत्म होने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं।

03:39 PM Apr 08, 2022 IST | Desk Team

रूस और यूक्रेन के बीच लगातार जारी महायुद्ध का आज 44वां दिन है, जिस तरह से दोनों देश एकदूसरे पर वार-पलटवार कर रहे हैं उससे यह जंग इतनी जल्दी खत्म होने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं।

रूस और यूक्रेन के बीच लगातार जारी महायुद्ध का आज 44वां दिन है, जिस तरह से दोनों देश एकदूसरे पर वार-पलटवार कर रहे हैं उससे यह जंग इतनी जल्दी खत्म होने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। इस महायुद्ध ने पुरे विश्व को 2 खेमों में बांट दिया है, एक तरफ कई देश यूक्रेन के समर्थन में हैं और दूसरी तरफ कुछ देश रूस का साथ दे रहे हैं। लेकिन इस बीच में कुछ देश ऐसे भी हैं जो इस जंग को लेकर तटस्थ रुख पर बने हुए हैं, उन्ही देशों में से एक भारत भी है जो अमन और शांति का पक्षधर है। वहीं हिंदुस्तान का यह न्यूट्रल बर्ताव अमेरिका को बिलकुल रास नहीं आ रहा है, जिस कारण वह देश पर कई बार अपना रुख स्पष्ट करने का दबाव डाल चुके है।  
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तेल आयत को लेकर अमेरिका ने दी भारत को चेतावनी 
बता दें कि अमेरिका द्वारा कई बार भारत पर अपरोक्ष रूप से दबाव बनाने की कोशिश हुई है, लेकिन अब यूएस द्वारा हिंदुस्तान को खुले तौर पर धमकी दी जा रही है। हालही में राष्ट्रपति जो बाइडन के शीर्ष आर्थिक सलाहकार ब्रायन डीज ने कहा कि कड़े प्रतिबंधों के बाद भी रूस के साथ भारत को व्यापारिक संबंधों और गठबंधन रखने की ‘भारी कीमत’ चुकानी होगी। इसके साथ ही डिज ने यह भी कहा कि रूस को लेकर वह भारत और चीन दोनों के रुख से काफी निराश हुए हैं। दरअसल, भारत की ही तरह महायुद्ध को लेकर चीन ने भी अपना रुख न्यूट्रल ही रखा है।  
रूस से व्यापारी संबंधों के कारण बिगड़ रहे अमेरिका से संबंध?
पत्रकारों से बात करते हुए डिज ने कहा कि यूक्रेन पर आए मानवीय संकट को लेकर भारत और चीन के तटस्थ रहने के फैसले से अमेरिका बेहद निराश हुआ है। मॉस्को के साथ राजनीतिक और व्यापारिक संबंधों के परिणाम दीर्घकालिक होंगे। जहां एक तरफ अमेरिका समेत कई देशों ने रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा रखें हैं, वहीं दूसरी तरफ भारत रूस से तेल निर्यात करने की तैयारी कर रहा है। यही कारण है कि भारत और वाशिंगटन के बीच संबंधों में जटिलता आ रही है। बताते चलें कि डिज का यह बयान उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार दलीप सिंह द्वारा पिछले सप्ताह अधिकारियों के साथ बैठक के लिए भारत आने के बाद आया है। 
अमेरिकी अधिकारीयों की तरफ से आया यह बयान 
व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव जेन साकी ने दलीप सिंह की भारत यात्रा पर कहा था कि ” इस दौरे में दलीप सिंह ने अपने समकक्षों को यह साफ कर दिया है कि रूसी ऊर्जा और अन्य वस्तुओं के आयात में तेजी लाने के फैसले को हम (अमेरिका) भारत के हित में नहीं मानते हैं।” बाद में यह भी कहा गया कि अमेरिका भारत के साथ सहयोग जारी रखेगा। बता दें कि दलीप सिंह ने कहा था कि अमेरिका किसी भी देश को रूसी केंद्रीय बैंक के साथ वित्तीय लेनदेन में लिप्त नहीं देखना चाहेगा। दलीप सिंह ने कहा कि भारत का रूसी ऊर्जा का वर्तमान आयात किसी भी अमेरिकी प्रतिबंध का उल्लंघन नहीं करता है, लेकिन साथ ही साथ यह भी कहा कि वाशिंगटन अपने सहयोगियों और भागीदारों को “अविश्वसनीय आपूर्तिकर्ता” यानी रूस पर अपनी निर्भरता कम करने के तरीके खोजना चाहता है। 
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