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पीओके में दमन चक्र

04:54 AM Oct 27, 2025 IST | Aditya Chopra
पंजाब केसरी के डायरेक्टर आदित्य नारायण चोपड़ा

कश्मीर को लेकर पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर जिस तरह की हरकतें करता रहता है उनसे वह इस इलाके की हकीकत नहीं बदल सकता क्योंकि दुनिया जानती है कि इस रियासत का भारतीय संघ में विलय 26 अक्तूबर 1947 को उसी प्रकार हुआ था जिस प्रकार अन्य भारतीय रजवाड़ोंं का। जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरिसिंह ने अपनी पूरी रियासत का विलय भारतीय संघ में करते वक्त साफ कर दिया था कि 26 अक्तूबर 1947 से पहले इस रियासत के स्वतन्त्र रहते जो भी समझौते अन्य किसी देश से थे उनकी हैसियत भारतीय संघ में विलय होने के बाद बदल चुकी थी और भारत की तत्कालीन संघीय सरकार पिछले किसी समझौते से नहीं बन्धी थी। अगस्त 1947 में महाराजा हरिसिंह ने पाकिस्तान के साथ यथा स्थिति (स्टैंड स्टिल) समझौता किया था जिस पर पाकिस्तान ने दस्तखत कर दिये थे। महाराजा एेसा ही समझौता भारत से भी करना चाहते थे मगर भारत ने इस पर दस्तखत नहीं किये थे। महाराजा को गलतफहमी थी कि पाकिस्तान उनकी रियासत की संप्रभुता का सम्मान करेगा मगर उसने एेसा नहीं किया और सितम्बर महीने से ही कश्मीर में अपने फौजियों को कबायलियों के भेष में कश्मीर भेजना शुरू कर दिया और अक्तूबर महीने में बाकायदा आक्रमण शुरू कर दिया। जिस पर महाराजा ने भारत की मदद मांगी और अपनी रियासत का भारतीय संघ में विलय कर दिया। विलय होने के बाद पूरी रियासत भारतीय संघ का अविभाज्य हिस्सा उसी प्रकार बन चुकी थी जिस प्रकार मैसूर या अन्य कोई भारतीय रियासत। मैसूर रियासत का विलय भी भारतीय संघ में 14 अगस्त 1947 को हुआ था।
विलय की शर्तों के अनुसार मैसूर के महाराजा को राजप्रमुख बना दिया गया था। एेसा ही अन्य बड़ी देशी रियासतों के विलय के बाद भी किया गया था। ठीक यही जम्मू-कश्मीर के विलय के बाद भी हुआ और इस रियासत के राजकुमार कर्ण सिंह को सदर-ए-रियासत बना दिया गया था। अतः यह विलय पूरी तरह स्थायी था और किसी प्रकार की अन्य शर्त से बंधा हुआ नहीं था। बाद में जम्मू-कश्मीर के लिए विशेष धारा या अनुच्छेद संविधान में जोड़ा गया जिसे 370 कहा जाता था। मगर विगत 5 अगस्त 2019 को इसे भी समाप्त कर दिया गया, क्योंकि इसका प्रावधान हमारे संविधान निर्माताओं ने वक्ती अस्थायी तौर पर किया था। पाकिस्तान इस प्रावधान के समाप्त किये जाने के बाद से ही विश्व के मंचों पर कश्मीर का मुद्दा उठाने की कोशिश करता रहता है और अनर्गल प्रलाप में व्यस्त रहता है तथा सीमा पार से आतंकवाद को बढ़ावा देता रहता है, जबकि जम्मू-कश्मीर राज्य का एक तिहाई हिस्सा इसके कब्जे में 1948 से ही पड़ा हुआ है। पाकिस्तान इसे आजाद कश्मीर बताकर दुनिया को धोखे में रखना चाहता है और यहां के लोगों पर जुल्म ढहाता रहता है। पाकिस्तान ने कश्मीर के इस इलाके की जनसांख्यिकी बदलने तक की भरपूर कोशिश की है और पाकिस्तान के अन्य इलाकों से लोग ला-लाकर यहां बसाये हैं और उन्हें विशेषाधिकारों से लैस किया है। इसके खिलाफ मुकामी या स्थानीय लोग आवाज उठाते हैं तो उन पर गोलियां व लाठियां बरसाई जाती हैं।
पिछले दिनों पाक अधिकृत कश्मीर में लोगों ने सरकारी नीतियों के खिलाफ व्यापक आन्दोलन चलाया था जो हिंसक भी हो गया था। इस आन्दोलन में कई कश्मीरियों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी थी। भारत शुरू से ही कहता रहा है कि इस कश्मीर में पाकिस्तान अपनी दमनकारी नीतियों की मार्फत मानवीय अधिकारों का व्यापक हनन करता रहता है और लोगों को मौत के घाट उतारता रहता है। भारत ने इस तरफ विश्व का ध्यान राष्ट्रसंघ की मार्फत भी कई बार खींचा है और पाकिस्तान को ताकीद की है कि वह कश्मीर के इस इलाके से अपना अवैध कब्जा हटाये जिससे इस क्षेत्र के कश्मीरी भी लोकतन्त्र में खुली सांस ले सकें और भारतीय संविधान के अनुसार अपने मानवाधिकारों का प्रयोग कर सकें। मगर पाकिस्तान ने राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद में जम्मू-कश्मीर का विषय पुनः उठाने की गत दिनों फिर हिमाकत की जिसका बहुत कड़ा जवाब राष्ट्रसंघ में भारत के स्थायी प्रतिनि​िध श्री एन. हरीश ने देते हुए साफ कहा कि पाकिस्तान को इस क्षेत्र को खाली करना होगा और यहां के लोगों का दमन बन्द करना होगा। शुक्रवार को सुरक्षा परिषद में भविष्य में विश्व शान्ति कायम रखने में राष्ट्रसंघ की भूमिका विषय पर बहस के दौरान पाकिस्तान की ओर से इसके प्रधानमन्त्री के विशेष सहायक सैयद तारिक फातमी ने यह मसला उठाया तो भारत के श्री एन. हरीश ने इसका करारा जवाब देते हुए कहा कि पाकिस्तान में लोकतन्त्र का विचार ही सपने की बात है। अतः वह अपने कब्जे वाले कश्मीर में कश्मीरियों का दमन बन्द करे और इस पूरे इलाके को खाली करे क्योंकि पूरा जम्मू-कश्मीर भारत का अविभाज्य अंग था और भविष्य में भी रहेगा। श्री हरीश ने कहा कि भारत के जम्मू-कश्मीर के लोग अपने लोकतान्त्रिक अधिकारों का इस्तेमाल करते हैं और अपने जीवन को अपनी इच्छानुसार जीते हैं। पाक के कब्जे वाले कश्मीरियों का जीवन पाकिस्तानी हुक्मरानों की वजह से कई तरह की दुश्वारियों का शिकार है। यहां के लोग पाक के सैन्य कब्जे, दमन, क्रूरता और संसाधनों के अवैध दोहन के खिलाफ खुला विद्रोह कर रहे हैं। मगर उन पर दमनकारी चक्र चलाया जा रहा है।

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