कबाड़ बेचने वाले की बेटी ने रचा इतिहास, माइक्रोसॉफ्ट में मिला 55 लाख का पैकेज
Success Story: हरियाणा के हिसार जिले के छोटे से गांव बालसमंद से निकलकर सिमरन ने वह कर दिखाया है, जिसकी आज हर तरफ चर्चा हो रही है। कबाड़ बेचकर परिवार पालने वाले पिता की यह बेटी अब देश की बड़ी टेक कंपनियों में से एक माइक्रोसॉफ्ट में सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनने जा रही है। उन्हें सालाना 55 लाख रुपये का पैकेज मिला है। सिमरन की कहानी संघर्ष, मेहनत और सपनों की उड़ान की एक प्रेरणादायक मिसाल है।
पिता की मेहनत, बेटी का सपना
सिमरन के पिता राजेश कुमार गांव में कबाड़ बीनते और बेचते हैं। परिवार में चार बच्चे हैं— तीन बेटियां और एक बेटा। सीमित आमदनी के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी और अपने बच्चों की शिक्षा को प्राथमिकता दी। राजेश कुमार का सपना था कि उनकी बेटियां पढ़-लिखकर कुछ बड़ा करें और सिमरन ने उनके इस सपने को हकीकत में बदलने की ठान ली।
IIT तक का सफर
सिमरन की मेहनत रंग लाई जब महज 17 साल की उम्र में उन्होंने पहले ही प्रयास में IIT प्रवेश परीक्षा पास कर ली। उन्हें IIT मंडी में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में दाखिला मिला और उन्होंने यहां से अपनी पढ़ाई पूरी की। हालांकि उनकी शाखा इलेक्ट्रिकल थी, पर उनका सपना था सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनना।
खुद सीखी कोडिंग, मिला बड़ा मौका
सिमरन जानती थीं कि सॉफ्टवेयर कंपनियां ज़्यादातर कंप्यूटर साइंस बैकग्राउंड से लोगों को प्राथमिकता देती हैं। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और खुद से कोडिंग, प्रोग्रामिंग व टेक्निकल स्किल्स सीखनी शुरू कीं। दिन-रात की मेहनत रंग लाई और उन्हें माइक्रोसॉफ्ट हैदराबाद में इंटर्नशिप का मौका मिला। सिमरन ने अपनी इंटर्नशिप के दौरान खुद को साबित किया और 300 इंटर्न्स में से ‘बेस्ट इंटर्न’का खिताब हासिल किया। माइक्रोसॉफ्ट की अमेरिका हेड ने भारत आकर सिमरन को सम्मानित किया। यह पल न सिर्फ उनके परिवार बल्कि पूरे गांव के लिए गर्व का क्षण था।
गांव में जश्न का माहौल
जैसे ही गांव में यह खबर फैली कि सिमरन को माइक्रोसॉफ्ट में 55 लाख रुपये का पैकेज मिला है, पूरे गांव में खुशी की लहर दौड़ गई। ढोल-नगाड़े बजाए गए, मिठाइयां बांटी गईं और सिमरन का नाम हर किसी की जुबां पर छा गया। एक छोटे से घर से निकली यह बेटी आज पूरे गांव की पहचान बन चुकी है।
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