नई विश्व व्यवस्था का शंखनाद
अमेरिका और यूरोप की धमकियों, प्रतिबंधों और कूटनीतिक चालों को धत्ता बताते हुए रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने भारत का दौरा किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रोटोकोल तोड़कर जिस ढंग से अपने मित्र का स्वागत किया उससे पूरी दुनिया दंग रह गई। पुतिन और प्रधानमंत्री मोदी की शिखर वार्ता के बाद जो संयुक्त बयान जारी किया गया उसका एक-एक शब्द इस बात का प्रमाण है कि दो सबसे पुराने दोस्त देशों ने अमेरिका और पश्चिम देशों की छाती पर मूंग दलते हुए एक नई विश्व व्यवस्था का शंखनाद कर दिया है। पूरी दुनिया के सामने भारत और रूस बहुध्रुवीय विश्व के सबसे बड़े िशल्पकार बन चुके हैं। यह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की दादागिरी को सीधा चैलेंज है जो दुनिया को अपने इशारों पर नचाना चाहते हैं। पुतिन की भारत यात्रा एक राजनीतिक जीत भी है। पश्चिमी प्रतिबंधों और अन्तर्राष्ट्रीय अलगाव का सामना कर रहे एक राजनीतिज्ञ के लिए यह एक बड़ी सफलता है जो दर्शाता है कि यूक्रेन पर हमला करके और उसे तहस-नहस करने के बावजूद पुतिन को अन्तर्राष्ट्रीय वैधता प्राप्त है। पुतिन की भारत यात्रा भारत की रणनीतिक स्वायत्तता का भी संकेत देती है। दोनों नेताओं ने यह दिखा िदया है कि भारत और रूस की दोस्ती ऐसा अटूट जोड़ है जो किसी भी भू-राजनीतिक तूफान से टूटने वाला नहीं है।
वर्ष 2025 इसलिए भी खास है कि यह दोनों देशों की साझेदारी की 25वीं वर्षगांठ है। राजनीतिक साझेदारी की शुरूआत सन् 2000 में हुई थी जब पुतिन पहली बार राष्ट्रपति के तौर पर भारत आए थे। यह साझेदारी 25 वर्ष में वटवृक्ष का रूप ले चुकी है। इससे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहवाज शरीफ और वहां की सेना के प्रमुख मुनीर के होश उड़ गए हैं। भारत-रूस संयुक्त बयान के 70 बिन्दू हैं। अगर इन बिन्दुओं का विश्लेषण किया जाए तो संयुक्त वक्तव्य ऐसा रोड मैप है जो भारत को आर्थिक महाशक्ति बनाने के लिए तैयार किया गया है। अगर सैन्य शक्ति की बात की जाए तो रूस ने डिफेंस, स्पेस, परमाणु ऊर्जा के मोर्चे पर भारत का हाथ थाम लिया है। अमेरिका द्वारा भारत पर टैरिफ लगाए जाने के बाद भारत के लिए अपने व्यापार और निवेश में संतुलन और स्थिरता लाना बहुत जरूरी है। भारत के सामने अब नए विकल्प खोजने की चुनौती भी है। भारत और रूस ने पहले से चली आ रही आर्थिक और व्यापारिक भागीदारी को मजबूत करने के लिए पांच वर्षीय आर्थिक योजना पर सहमति बनाई है। जबकि भारत ने रूसी नागरिकों को 30 दिन के लिए मुक्त ई टूरिस्ट वीजा देने का ऐलान किया है। अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर जो सहमति बनी है वह डॉलर के वर्चस्व को सीधी चुनौती है। दोनों देशों ने 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार की 100 अरब डालर तक ले जाने का लक्ष्य रखा है और यह व्यापार रूबल और रुपए में होगा। डॉलर की इसमें कोई भूमिका नहीं होगी। दोनों देश अपनी पेमेंट सिस्टम को जोड़ेंगे। भारत का यूपीआई और रूस का एमआईआर या अन्य सिस्टम जुड़कर काम करेंगे। इससे अमेरिका और पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों की कोई कीमत नहीं रहेगी और बिना किसी रोक-टोक के व्यापार होगा। तेल के मुद्दे पर पुतिन का यह ऐलान कि वह भारत को बिना रोक-टोक के तेल की सप्लाई जारी रखेगा। ट्रंप को चिढ़ाने के लिए काफी है। रूस ने भारत को गैस और फर्टिलाइजर की सप्लाई की गारंटी भी दी है। कुडनकुलाम परमाणु ऊर्जा संयंत्र के काम में तेजी लाने के लिए रूस को दूसरी साइट आवंटित करने पर भी सहमति बनी है। रक्षा क्षेत्र हमेशा से भारत-रूस संबंधों की रीढ़ रहा है लेकिन इस बार कहानी बदल गई है। अब भारत सिर्फ खरीदार नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी के 'आत्मनिर्भर भारत' अभियान को रूस ने अपना पूरा समर्थन दे दिया है। संयुक्त बयान के पैराग्राफ 28 से 31 में साफ लिखा है कि अब रिश्ता 'खरीद-फरोख्त' से आगे बढ़कर 'को-डेवलपमेंट और को-प्रोडक्शन' (सह-विकास और सह-उत्पादन) पर आ गया है। रूस ने वादा किया है कि वह भारत में ही अपने हथियारों के स्पेयर पार्ट्स, कंपोनेंट्स और एग्रीगेट्स का निर्माण करेगा।
मोदी और पुतिन ने एक स्वर में आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाने की बात कही है। पहलगाम हमले और मास्को के क्रीकस सिटी हाल हमले की निन्दा करते हुए पाकिस्तान को भी सीधे-सीधे चेतावनी दे दी है। अमेरिका के साथ भारत के रिश्ते इस समय अनिश्चितता के दौरे में हैं और भारत को भी इस बात का ऐहसास है कि ट्रंप की प्राथमिकताएं अब काफी अलग हो चुकी हैं। ट्रंप कवाड शिखर सम्मेलन में भी शामिल नहीं हुए। प्रधानमंत्री मोदी सितम्बर में अमेरिका नहीं गए। फिर आसियान सम्मेलन में भी नहीं गए। ऐसी स्थिति में भारत का पुराने भरोसेमंद साझेदार रूस की ओर रुख करना अप्रत्याशित नहीं है। भारत की विदेश नीति एक परिपक्व और व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाती है। भारत ने हमेशा स्वतंत्र रास्ता ही चुना है। आने वाले समय में ट्रंप नई चुनौतियां खड़ी कर सकते हैं। इतना तय है कि अमेरिका और पश्चिम देश इस घटनाक्रम से काफी असहज हैं। भारत के लिए रूस इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि रूस चीन के विस्तारवाद को संतुलित करने में मदद करता है। बहुध्रुवीय दुनिया में नई चुनौतियों का सामना करने के लिए रूस और भारत का अटूट बंधन बहुत बड़ी भूमिका निभाएगा। दोनों देशों के संबंध का सफर 8 दशक पुराना है और दोनों ने हमेशा ही एक-दूसरे के लिए दरवाजे खुले रखे हैं। पुतिन की यात्रा से संबंधों को नया आयाम मिला है।

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