W3Schools
For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

डिजिटल युग और महिलाएं

04:45 AM Oct 13, 2025 IST | Aditya Chopra
डिजिटल युग और महिलाएं
पंजाब केसरी के डायरेक्टर आदित्य नारायण चोपड़ा
Advertisement

डिजिटल की दुनिया में अब ऐसा कोई सुरक्षित ठिकाना नहीं बचा है जहां महिलाएं अपने सम्मान पर डाका डालने वाले साइबर खतरों से बचकर रह सकें। आज के दौर में दुनिया भर में 60 प्रतिशत से अधिक युवतियां और महिलाएं सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर उत्पीड़न का सामना कर रही हैं। भारत इस समय युवाओं का देश है। यहां की युवा आबादी ऑनलाइन दुनिया में सबसे ज्यादा सक्रिय है। इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाली महिलाओं की बढ़ती संख्या एक सकारात्मक बदलाव है लेकिन इसने महिलाओं को वर्चुअल दुनिया में खतरों के जोखिम में डाल दिया है। भारत के प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई ने डिजिटल युग में महिलाओं की सुरक्षा के खतरे को रेखांकित करते हुए कहा है कि डिजिटल दौर में बालिकाओं की सुरक्षा मुख्य प्राथमिकता होनी चाहिए। यह सुनिश्चित होना चाहिए कि तकनीकी प्रगति के साथ-साथ नैतिक सुरक्षा भी हो। उन्होंने कहा कि डिजिटल युग में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। लड़कियों को होने वाले खतरे सिर्फ भौतिक स्थानों तक सीमित नहीं हैं। अब यह डिजिटल दुनिया में विस्तार पा चुके हैं। ऑनलाइन उत्पीड़न, साइबर बुलिंग, डिजिटल स्टाकिंग, व्यक्तिगत डेटा के दुरुपयोग और डीप फेक इमेजनरी तक चुनौतियां बढ़ी हैं।
हाल ही में बॉलीवुड अभिनेता अक्षय कुमार ने मुंबई में आयोजित 'साइबर सुरक्षा जागरूकता माह' के उद्घाटन समारोह में उनकी बेटी के साथ ऑनलाइन गेमिंग के दौरान हुई एक घटना का जिक्र किया। अभिनेता ने बताया कि ऑनलाइन गेम खेलते वक्त उनकी 13 साल की बेटी से न्यूड तस्वीरें मांगी गईं। उन्होंने आने वाली पीढ़ी को साइबर अपराध के बढ़ते खतरों से सुरक्षित रखने के लिए महाराष्ट्र सरकार से स्कूलों में साप्ताहिक साइबर पीरियड शुरू करने का आग्रह भी किया। यह घटना न केवल साइबर अपराध की गंभीरता को रेखांकित करती है, बल्कि हर माता-पिता के लिए सबक बन गई है। इसके अलावा अभिनेत्री रश्मिका मंदाना, एेश्यर्वा राय और कई अभिनेता भी सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर डीप फेक तस्वीरों को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटा चुके हैं। आए दिन साइबर अपराधों से जुड़े मामले अदालतों में पहुंच रहे हैं।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार वर्ष 2024 में महिलाओं द्वारा दर्ज कराए गए साइबर अपराधों की संख्या लगभग 48500 थी, जो वर्ष 2020 में दर्ज लगभग 22000 मामलों से दोगुनी है। अप्रैल 2025 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, 50 प्रतिशत से अधिक महिला इंटरनेट उपयोगकर्ताओं ने किसी न किसी रूप में ऑनलाइन उत्पीड़न का अनुभव किया है। इनमें बदनाम करने के उद्देश्य से मॉर्फ की गई तस्वीरें वायरल करना, धमकी भरे संदेश भेजना और निजी जानकारी के आधार पर ब्लैकमेल करने जैसे अपराध शामिल हैं। वर्ष 2025 में सामने आए कुछ प्रमुख मामले साइबर अपराधों की गंभीरता को उजागर करते हैं। पुणे में एक 64 वर्षीय महिला वैज्ञानिक को डिजिटल अरेस्ट के नाम पर लगभग पौने दो करोड़ रुपए से अधिक की ठगी का शिकार बनाया गया। गुजरात में एक बड़े साइबर अपराध रैकेट का भंडाफोड़ हुआ, जहां महिलाओं को व्हाट्सएप कॉल्स के जरिए डराया और धमकाया गया। एक अन्य मामला पुणे की महिला का था जिसने ऑनलाइन शेयर ट्रेडिंग घोटाले में लगभग तेरह लाख रुपए गंवा दिए। इन अपराधों का न केवल वित्तीय, बल्कि मानसिक प्रभाव भी गंभीर होता है। ऐसे अनेकों मामले पूरे देश में देखने को मिले हैं, जिसमें विशेष तौर से महिलाओं को साइबर ठगों द्वारा शिकार बनाया गया है। महिलाएं अवसाद, तनाव और सामाजिक अलगाव का शिकार हो जाती हैं। दुर्भाग्यवश, समाज में साइबर पीड़ितों को दोषी ठहराने की प्रवृत्ति के कारण कई महिलाएं शिकायत दर्ज कराने से हिचकती हैं, जिससे अपराधी आसानी से बच निकलते हैं। हालांकि भारत सरकार ने कई योजनाएं शुरू की हैं, लेकिन उनकी प्रभावशीलता पर सवाल उठते हैं।
वैसे तो देश में साइबर अपराध के लिए सूचना प्रौद्यो​िगकी नियम (आईटीएक्ट 2000) में हैकिंग, इंटरनेट पर अश्लील सामग्री का प्रसार, प्राइवेसी का उल्लंघन, धोखाधड़ी के उद्देश्य से प्रकाशन इत्या​िद को दंडनीय अपराध घो​िषत किया गया है लेकिन इसमें महिलाओं की सुरक्षा को लेकर विशिष्ट रूप से कोई उल्लेख नहीं है। लड़कियों के अधिकारों की रक्षा के ​िलए कानूनी ढांचे को मजबूत करना होगा और इसके लिए विशेष कानून बनाने होंगे। सीजेआई बी.आर. गवई ने भी लड़कियों के अधिकारों की रक्षा के ​िलए डिजिटल गवर्नेंस पर बल दिया है आैर साथ ही उन्होंने कहा है कि हमें लड़कियों को शिक्षित करने और उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करने का काम भी करना होगा। लड़कियों की रक्षा करना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। अभिभावकों को भी चाहिए कि अपने बच्चों को पूरी जानकारी दें और उन्हें लगातार सतर्क करते रहें। स्कूलों में भी इस विषय को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए, ताकि बच्चे खुद को बचाएं। आर्टिफिशियल इंटेलीजैंसी ने डिजिटल युग को और भी खतरनाक बना दिया है। हालांकि कई क्षेत्रों में एआई वरदान सिद्ध हो रही है। बेहतर यही होगा कि घर का वातावरण ऐसा बनाएं कि बच्चे अभिभावकों से डरने की बजाय ऑनलाइन खतरों के बारे में उनसे बात कर सकें। ई-मेल और व्हाट्सएप पर आने वाले किसी भी ​िलंक के जरिये गेम्स या अन्य सामग्री डाउनलोड करने से बचें और अनजान लोगों से चैटिंग न करें। अगर कोई उन्हें डराये, धमकाए या ब्लैकमेलिंग का प्रयास करे तो तुरन्त पुलिस के साइबर अपराध सेल में शिकायत करें। ऐसे मामलों को सतर्कता और संवेदनशीलता से ही सम्भाला जा सकता है। केन्द्र सरकार को भी नए कानून बनाकर डिजिटल वातावरण को सुर​िक्षत बनाना होगा।

Advertisement
Advertisement
Author Image

Aditya Chopra

View all posts

Aditya Chopra is well known for his phenomenal viral articles.

Advertisement
Advertisement
×