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अश्रुपूर्ण नेत्रों से पंजाब के कलाकारों और चाहनेवालों ने सफल गायक साबरकोटी को दी अंतिम विदाई

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01:38 PM Jan 27, 2018 IST | Desk Team

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लुधियाना : ‘ओह-मौसम वागूं बदल गए जी, असीं रूक्खां वागूं खड़े रहे.. ’ पंजाबी के इस बेहद मकबूल हुए गीत को रिलीज हुए 20 साल गुजर चुके है परंतु यह आज भी पंजाबी भाषा को शिददत से चाहने वाले भूले नहीं। सुफियाना गायकी को आम इंसानों के दिलों तक पहुंचाने वाले मशहूर पंजाबी गायक 48 वर्षीय साबरकोटी शुक्रवार की दोपहर जिला कपूरथला के पैतृक गांव कोटकरार खां में सजल नेत्रों से सुपुर्दे खाक करके दफना दिए गए। उनके अंतिम दर्शनों हेतु भारी मात्रा में भीड़ उमड़ी हुई थी।

इस अवसर पर उन्हें श्रद्धांजलि देने हुत पंजाब की इंडस्ट्री की महान हस्तियां पहुंची हुई थी। जबकि उसके पारिवारिक सदस्यों और चाहने वालों का रो-रोकर बुरा हाल था। पंजाब की संगीत इंडस्ट्री को एक सफल मुकाम तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाने वाले सूफी गायक सुच्चा सिंह साबरकोटी का वीरवार को जालंधर के एक निजी अस्पताल में लंबी बीमारी के दौरान देहांत हो गया।

जानकारी के मुताबिक बुलंद आवाज के मालिक और उदास गानों के लिए जाने वाले साबरकोटी ने 1996 में संगीत का सफर शुरू किया था। और साबरकोटी ने कुछ दिन पहले ही 20 जनवरी को अपना 48वां जन्मदिन मनाया था, वह जालंधर कैंट के दीप नगर में अपनी पत्नी रीटा और 4 बच्चों के संग रह रहे थे। साबरकोटी के देहांत की खबर सुनते ही उनके चाहने वाले, रिश्तेदार उनके अंतिम संस्कार के लिए आज गांव कोटकरार खां में पहुंचे हुए थे। इस अवसर पर उस्ताद पूर्ण शाह कोटी, उनके साहिबजादे मास्टर सलीम, दलविंद्र दयाल पुरी, बूटा मोहम्मद और युवराज हंस के अलावा बड़ी संख्या में लोग शोक प्रकट करने हेतु उनके घर पहुंचे।

पंजाब की गायकी को अहम अंजाम तक पहुंचाने वाले लोगों का कहना था कि साबरकोटी बेइंतहा गरीबी में कड़े मेहनत करके लाखों संगीत प्रेमियों के दिलों में जगह बनाई थी। साबरकोटी ने गायकी के उच्च मानदंडों से कभी समझौता नहीं किया। उधर पंजाब के राजगायक हंसराज हंस ने भी साबरकोटी को याद करते हुए बताया कि साबरकोटी उनकी संगीत टोली का कभी हिस्सा था। उनके मुताबिक वह उन्हें उस्ताद पूर्णशाह कोटी के पास ले गए थे और इसके बाद वह उसके गुरू भाई बन गए।

हंसराज हंस के मुताबिक ऐसा सुरीला फनकार बहुत कम पैदा होता है। उन्होंने अफसोस प्रकट करते हुए कहा कि बीमारी पता होने के बावजूद हम उसे नहीं बचा पाएं। जबकि मास्टर सलीम ने अश्रुपूर्ण नेत्रों को पोछते हुए कहा कि मेरा वडा वीर इसी उम्र में सानु छड जावेंगा, सोचा नहीं था। पंजाबी इंडस्ट्री को ना पूर्ण होने वाली कमी है और उनका कोई तोड़ नहीं था।

– सुनीलराय कामरेड

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