कुत्तों का बढ़ता आतंक
दिल्ली में आवारा कुत्तों का आतंक बढ़ता ही जा रहा है तथा कुत्तों के काटने से लोगों के दिलों में खौफ बढ़ रहा है। दिल्ली के अलावा देश के अनेक राज्यों के बड़े शहरों में कुत्तों के नागरिकों पर हमले से हुई मौतों के प्रित प्रशासन क्या भूमिका निभा रहा है, इस बात को लेकर लोग चिन्तित हैं। नोएडा की सोसायटी में स्कूली बच्चों पर कुत्तों का हमला हो या िदल्ली के पूठकलां में एक 6 साल की बच्ची की कुत्ते के काटने से मौत का मामला हो या फिर बुजुर्गों पर कुत्तों के हमलों की वारदातें हों, हालात अच्छे नहीं हैं जो प्रशासन को सवालों के घेरे में खड़ा कर रहे हैं। दिल्ली में बच्ची की कुत्ते से काटने से हुई मौत की घटना का सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया है।
पिछले दिनों आवारा कुत्तों के हमलों और रेबीज के बढ़ रहे मामलों पर एक अखबार की मीडिया रिपोर्ट सामने आई, जिस पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने स्वतः संज्ञान ले लिया है। पीठ ने बताया कि इस रिपोर्ट में कई चिंताजनक और परेशान करने वाले आंकड़े और तथ्य हैं। इसमें यह भी जानकारी दी गई है कि शहरों और ग्रामीण इलाकों में हर रोज कुत्तों के काटने की सैकड़ों घटनाएं सामने आ रही हैं, जिसमें बुजुर्ग और बच्चे रेबीज से होने वाली बीमारियों का शिकार बन रहे हैं। पीठ ने कहा है कि इस रिपोर्ट को प्रधान न्यायाधीश के सामने पेश किया जाएगा। सड़कों के दोनों ओर कुत्तों के झुंड वाहनों के पीछे भागते हैं तो दुर्घटनाएं भी हो रही हैं। कुत्तों के हमले से कोई बचे तो कैसे? इसका समाधान भी खोजना बहुत जरूरी है।
इस रिपोर्ट में आवारा कुत्तों के हमलों का शिकार हुए दो बच्चों के बारे में विस्तार से बताया गया है। दिल्ली के पूठकलां इलाके में पागल कुत्ते के काटने की वजह से एक छह साल की बच्ची की मौत हो गई थी। कुत्ते के काटने के बाद वह रेबीज का शिकार हो गई, जिसके बाद इलाज शुरू होने के बावजूद भी उसे नहीं बचाया जा सका और 26 जुलाई को उसकी मौत हो गई। इस बच्ची के अलावा एक चार साल के छोटे बच्चे पर भी कुत्तों के झुंड ने हमला कर दिया था, जिससे बच्चा बुरी तरह घायल हो गया था। रिपोर्ट में यह बताया गया कि बच्चों के परिवार वालों के बार-बार शिकायत करने पर कथित तौर पर स्थानीय अधिकारी ने कोई कदम नहीं उठाया। जो लोग घरों में कुत्ते पालते हैं वे काफी हद तक उनसे आत्मीयता का भाव रखते हुए निभाते भी हैं लेकिन यदाकदा अंजान मेहनान या आगंतुक पर पालतू कुत्ते हमला भी कर देते हैं।
पिछले दिनों भी 22 जुलाई को सरकार ने लोकसभा में एनसीडीसी की एक रिपोर्ट को सामने रखा था। रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2024 में कुत्तों के काटने के 37 लाख मामले सामने आए हैं। केंद्रीय मंत्री एस.पी. सिंह बघेल ने लिखित तौर पर जानकारी दी कि 2024 में कुत्तों के काटने के कुल 37,17,336 मामले सामने आए और रेबीज के कारण हुई संदिग्ध 54 मौतें दर्ज की गईं। सचमुच यह चौंकाने वाला है।
आवारा कुत्तों को खाना िखलाने तथा इसका विरोध करने वालों के मामले में भी दर्जनों केस हाईकोर्ट में व सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचे हैं। दिल्ली के अनेक इलाकों में आरडब्ल्यूए तथा कुत्तों के लवर ग्रुप के बीच झगड़ों की खबरें भी विवादों के रूप में कोर्ट तक सुनवाई के दौर से गुजर रही हैं। लोग घरों के पास कुत्तों के जमा होकर बसेरे बना लेने के िखलाफ जब शिकायत करते हैं तो एमसीडी डागदस्ता उन्हें पकड़ने आता है तो डाॅग लवर्स ग्रुप और अन्य संरक्षक संस्थानों के बीच जंग छिड़ जाती है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो नागरिक आवारा कुत्तों को खाना खिलाना चाहते हैं, उन्हें अपने घरों के भीतर ऐसा करने पर विचार करना चाहिए। हालत यह है कि न्यायालय कि यह टिप्पणी आवारा कुत्तों को लेकर समाज में मौजूद नैतिक मतभेद को उजागर करती है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि कानून के अनुसार आवारा कुत्तों की रक्षा की जानी चाहिए, लेकिन प्रशासन को आम लोगों की चिंता को भी ध्यान में रखना होगा, ताकि सड़क पर चलने-फिरने में कुत्तों के हमलों से बाधा न आए।
संविधान की बात करें तो अनुच्छेद 243(डब्ल्यू) नगर पालिकाओं को आवारा कुत्तों की आबादी को नियंत्रित करने का आदेश देता है। वहीं, अनुच्छेद 51ए (जी) के तहत नागरिकों का मौलिक कर्त्तव्य है कि वे "जीवित प्राणियों के प्रति करुणा का भाव" रखें।
इसी कड़ी में पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत बनाए गए पशु जन्म नियंत्रण नियम, 2023 का उद्देश्य बंध्याकरण के माध्यम से आवारा कुत्तों की संख्या को नियंत्रित करना और टीकाकरण द्वारा रेबीज के प्रसार को रोकना है। इतना ही नहीं इन नियमों में सामुदायिक जानवरों को भोजन देने की व्यवस्था भी की गई है, जिसमें रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशंस या स्थानीय निकायों को इसकी जिम्मेदारी दी गई है। कुल मिलाकर कुत्तों के आतंक पर िचन्ता नहीं उपाय किए जाने चाहिए तभी दिल्ली व अन्य शहरों या गांवों के बच्चे -बुजुर्ग-महिलाएं सुरक्षित रह सकेंगे।