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न्यूनतम समर्थन मूल्य में जुलाई में की गई वृद्धि 2008-09, 2012-13 की वृद्धि से कम : आरबीआई 

मुंबई : नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से जुलाई में खरीफ फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में की गई वृद्धि 2008-09 और 2012-13 में पूर्ववर्ती सप्रंग सरकार

08:33 PM Oct 07, 2018 IST | Desk Team

मुंबई : नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से जुलाई में खरीफ फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में की गई वृद्धि 2008-09 और 2012-13 में पूर्ववर्ती सप्रंग सरकार

मुंबई : नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से जुलाई में खरीफ फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में की गई वृद्धि 2008-09 और 2012-13 में पूर्ववर्ती सप्रंग सरकार द्वारा की गई वृद्धि से ‘काफी कम’ रही। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने यह बात कही। सरकार ने जुलाई में गर्मी यानी खरिफ फसल के लिए एमएसपी बढ़ाने की घोषणा की थी। सरकार ने विभिन्न किस्म के धान के मूल्य में 200 रुपये तक वृद्धि की। इसके साथ ही कपास तथा तुअर एवं उड़द जैसी दलहन की एमएसपी में भी वृद्धि की गई। सरकार ने इस साल के बजट में किसानों को उनकी फसल पर आने वाली लागत के ऊपर 50 प्रतिशत वृद्धि के साथ न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की घोषणा की थी। सरकार ने पिछले सप्ताह ही रबी की फसलों के लिए भी एमएसपी वृ्द्धि की घोषणा की है। गेहूं का एमएसपी 105 रुपये प्रति क्विंटल और मसूर का 225 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाया गया।

आरबीआई ने मौद्रिक नीति समीक्षा रिपोर्ट में कहा, ‘ऐतिहासिक परिपेक्ष्य में, जुलाई में घोषित एमएसपी वृद्धि पिछले पांच वर्ष के औसत से उल्लेखनीय रूप से अधिक है लेकिन यह 2008-09 और 2012-13 में किये गये एमएसपी संशोधन के मुकाबले कम है। मौद्रिक नीति रिपोर्ट में कहा गया है कि 2018-19 के खरीफ मौसम में 14 फसलों के लिए की गई वृद्धि का अर्थ सामान्य न्यूनतम समर्थन मूल्य में पिछले वर्ष के स्तर की तुलना में 3.7 प्रतिशत से 52.5 प्रतिशत वृद्धि होना है। हालांकि, इसमें कहा गया है कि एमएसपी की वर्तमान वृद्धि प्रमुख मुद्रास्फीति में 0.29 से 0.35 प्रतिशत की वृद्धि कर सकती है। रिजर्व बैंक के लिये मुद्रास्फीति को काबू रखना उसकी शीर्ष प्राथमिकता है।

मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने कहा कि सितंबर तिमाही के अंत तक मुख्य मुद्रास्फीति के चालू वित्त वर्ष के अंत तक 3.8 से 4.5 प्रतिशत तक और अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही तक 4.8 प्रतिशत हो जाने का अनुमान है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कच्चे तेल की कीमतों में पिछले 15 महीनों में 67 प्रतिशत का उछाल आया है। सितंबर में यह बढ़कर 78 डॉलर प्रति बैरल पर था। इसके चलते जीडीपी की वृद्धि दर और मुद्रास्फीति के लक्ष्य से ऊपर चले जाने के भी आसार बने हुए हैं। इसमें कहा गया है कि कच्चे तेल में एक डॉलर प्रति बैरल की वृद्धि से चालू खाते का घाटा 0.8 अरब डॉलर बढ़ सकता है।

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