पाकिस्तान की फितरत और भारत का सबक
भारत के साथ युद्ध विराम कर तीन घंटे के बाद ही पाकिस्तान ने उसका उल्लंघन कर दिया…
भारत के साथ युद्ध विराम कर तीन घंटे के बाद ही पाकिस्तान ने उसका उल्लंघन कर दिया। इस पर शशि थरूर ने यह शे’र दोहराया है, उसकी फितरत है मुकर जाने की, उसके वादे पर यकीन कैसे करूं ? उनकी बात बिल्कुल सही है। असली समस्या पाकिस्तान की भारत विरोधी ‘फितरत’ की है। उनका विशेषतौर पर उनकी सेना का अस्तित्व ही भारत विरोध पर टिका है इसी कारण हर कुछ महीने के बाद वह शरारत करते हैं। आज़ादी के बाद से ही अलग रंग रूप में यह सिलसिला चलता आ रहा है। आप फटेहाल हैं। पाकिस्तान के वरिष्ठ सम्पादक और पंजाब के मुख्यमंत्री रहे नजम सेठी ने माना है कि हम एक कमजोर मुल्क बन चुके हैं। अंदरूनी हालात भी ठीक नहीं, पर इसके बावजूद उन्होंने पहलगाम जैसी हिमाक़त की है। भारत विरोध उनके डीएनए में है, वह बाज नहीं आ सकते।
1971 में दो टुकड़े होने के बाद समझा गया कि वह शांत बैठेंगे। शिमला समझौते के समय जुल्फिकार अली भुट्टो बहुत शालीन थे, पर अगले ही साल जनवरी, 1972 में मुलतान में घोषणा कर दी कि ‘भारत को हज़ार जख्म देकर उसका खून बहाया जाएगा’। उसके बाद कारगिल, संसद पर हमला, मुम्बई पर 2008 का हमला हुआ। मनमोहन सिंह सरकार ने 2008 का सख्त जवाब न देते हुए कूटनीति पर ज़ोर दिया। तत्काल विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब में लिखा है कि विदेश मंत्री के नाते मैंने पाकिस्तान के खिलाफ सैनिक विकल्प रद्द कर दिया, पर वह समय पाकिस्तान को ठोकने का था। हमारी कमजोर प्रतिक्रिया ने उन्हें दुस्साहसी बना दिया। फिर उरी, पठानकोट, पुलवामा, छतीसिंहपुरा, बहुत कुछ हुआ और अब हम पहलगाम तक पहुंच गए हैं।
पर पहलगाम का हमला अलग है। अगर छतीसिंहपुरा के हमले को छोड़ दें तो हाल ही में जो हमले किए गए वह सैनिक ठिकानों और सैनिकों पर किए गए। यह पहला हमला है कि नागरिकों का धर्म पूछकर उनकी हत्या की गई। पाकिस्तान यहां सब लाल रेखाएं पार कर गया। भारत का ज़बरदस्त जवाब तो बनता ही था, पर बड़ा सवाल तो यह है कि पाकिस्तान ने एसी वैहशी शरारत क्यों की? इसका जवाब यही है कि उनकी सेना भारत से नफरत करती है और 1971 का बदला लेना चाहती है। शाहबाज शरीफ तो विकलांग राजनेता है जिसके पल्ले कुछ नहीं है। सारी ताकत सेनाध्यक्ष असीम मुनीर के हाथ है। युद्ध विराम से पहले अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रूबियो को पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष से बात करनी पड़ी। मालूम था कि शहबाज शरीफ तो दयनीय कठपुतली है और अगर पाकिस्तान से बात करनी है तो मुनीर से करनी पड़ेगी।
अमरीकी राजनीतिक विशेषज्ञ क्रिस्टीन फेयर ने लिखा है, “पाकिस्तान की सेना भारत के साथ टकराव को अस्तित्व सम्बंधी समझती है” अर्थात भारत विरोध को वह अपने जीवन-मरण का सवाल समझते हैं, मर जाएंगे पर विरोध नहीं छोड़ेंगे। हालात और भी नाज़ुक इसलिए बन गए हैं क्योंकि वहां सेना की कमान असीम मुनीर के हाथ है। वह इतना कट्टर है कि कुछ लोग उसे मुल्ला मुनीर या जेहादी जनरल भी कहते हैं। वह जिया-उल-हक का अनुयायी लगता है। मुनीर ने जिन्ना की घिसी-पिटी टू-नेशन थ्योरी उठा ली है कि हिन्दू और मुसलमान इकट्ठे और शांतमय नहीं रह सकते। पाकिस्तान में रहे हमारे पूर्व राजदूत अजय बिसारिया ने मुनीर के सिद्धान्त को ‘मैड, बैड, डाकट्रिन’ अर्थात पागल और बुरी विचारधारा कहा है। यह विचारधारा अपने लोगों को कोई आर्थिक मानचित्र नहीं दिखाती, टेक्नाेलॉजी का कोई विकास नहीं देखती, राजनीतिक स्थिरता का कोई फार्मूला नहीं दिखाती। केवल और केवल अपने पूर्वी पड़ोसी के प्रति नफरत सिखाती है जो हम पहलगाम में देखकर हटे हैं।
मेजर जनरल अरुण साहनी जो कश्मीर में काउंटर इंटेलिजेंस के चीफ रहे हैं, का लिखना है कि ‘पाकिस्तान के पास युद्ध लड़ने की केवल 6 दिन की क्षमता है’। पर पाकिस्तान भी क्या करे वह अपनी फितरत से बाज नहीं आ सकते। इसीलिए ‘आपरेशन सिंदूर’ जरूरी हो गया था। हमने पाकिस्तान को कई सबक सिखाएं हैं। एक, भारत आतंकवाद का जवाब देने के लिए दृढ़ संकल्प है, इसके कुछ भी नतीजे हों। यह भी बता दिया कि भविष्य में आतंकी कार्रवाई को ‘एक्ट ऑफ वॉर’ समझा जाएगा। दो, भारत अब पाकिस्तान की परमाणु धौंस से नहीं रुकेगा। भारत द्वारा रावलपिंडी के पास नूरखान एयरबेस पर भीषण हमला कर यह स्पष्ट कर दिया कि आपका कुछ भी हमारी पकड़ से दूर नहीं। इस एयरबेस, जिसे चकलाला भी कहा जाता है, से महज 10 किलोमीटर की दूरी पर पाकिस्तान की हाई सैक्यूरिटीस्ट्रैटेजिक प्लान डिविजन है जो पाकिस्तान के परमाणु जखीरे का नियंत्रण करती है। इसी के बाद पाकिस्तान के होश ठिकाने आ गए और उसने अमेरिका से दखल का अनुरोध किया। न्यूयार्क टाईम्स ने भी लिखा है कि पाकिस्तान को घबराहट थी कि भारत उनकी स्ट्रैटेजिक प्लान डिविज़न को ध्वस्त कर देगा…नूर खान एयरबेस पर हमले को भारत की चेतावनी समझा गया कि वह ऐसा करने को तैयार है”। भारत ने उनका न्यूक्लियर ब्लैकमेल रद्द कर दिया।
तीन, सिंधु नदी समझौते को निलम्बित कर और पानी रोक कर भारत ने बता दिया कि हमारे पास उनका गला दबाने की क्षमता है। अगर आतंकवाद का नल बंद नहीं किया जाता तो तुम्हारा पानी बंद हो सकता है, या गम्भीर समस्या खड़ी की जा सकती है। खरीफ के मौसम में पानी की वहां कमी हो सकती है। चार, भारत ने बता दिया कि उसके पास पाकिस्तान पर कहीं भी वार करने की क्षमता। हमने अंदर तक मार की है। सटीक प्रहार किया है। बार-बार रावलपिंडी जहां उनका सैनिक मुख्यालय है, के बिल्कुल नजदीक हमले किए गए। उनकी 12 एयरबेस हिट हुई हैं जबकि वह प्रयास के बावजूद हमारे एक भी एयरबेस को हिट नहीं कर सके। कई सौ ड्रोन बेअसर कर दिए गए। यह भी स्पष्ट कर दिया गया कि भारत दुश्मन को ख़त्म करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। अंतर्राष्ट्रीय सीमा हो या नियंत्रण रेखा, कुछ भी अनुल्लंघनीय नहीं है। 2016 में उरी के बाद सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 में पुलवामा के बाद बालाकोट पर स्ट्राइक सीमित थी। वह पीओके में की गईं थी। इस बार कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई गई, कराची तक वार किया गया।
पांच, और यह सबसे बड़ा सबक है। हमने जिहादियों के ठिकानों पर सीधा हमला किया। विशेष तौर पर बहावलपुर और मुरीदके के जेहादी अड्डों को नेस्तनाबूद कर हमने संदेश भेज दिया कि जहां भी आतंकी छिपे हैं वहां हम वार करने का अधिकार रखते हैं। 100 के करीब उनके आतंकी मारे गए हैं। केन्द्रीय पंजाब में स्थित बहावलपुर जैश-ए-मुहम्मद का मुख्यालय है। इसे मौलाना मसूद अजहर ने स्थापित किया था। इंडियन एयरलाइंस की उड़ान 814 के हाईजैक से लेकर उरी और पुलवामा के हमलों के तार इससे जुड़े हैं। लाहौर के पास मुरीदके लशकर-ए-तैयबा का मुख्यालय है। इसे हाफिज मुहम्मद सईद ने शुरू किया था। यह आतंकी संगठन संसद पर हमले और मुम्बई पर हमले में संलिप्त है। इन्हें तबाह कर दिया गया। मसूद अजहर का भाई रऊफ अजहर अली जो हाईजैक का मास्टर माइंड था ख़त्म कर दिया गया है।
इस वक्त जब भारत का हाथ ऊपर था, युद्ध विराम किए जाने से कुछ लोग खिन्न हैं। कई निराश हैं तो कई नाराज़ हैं। पूर्व थल सेनाध्यक्ष जनरल वी.पी. मलिक का कहना है कि इससे कोई राजनीतिक या सैनिक लाभ मिला है? यह हमें भविष्य पर छोड़ देना चाहिए। अर्थात जनरल मलिक को तत्काल कोई लाभ नजर नहीं आया। सबसे उग्र प्रतिक्रिया विशेषज्ञ ब्रह्म चेलानी की है कि हम जीत के जबड़े से हार निकाल लाएं हैं। उनका कहना है कि हम केवल पिछली गलतियों को दोहरा रहे हैं…यह रणनीतिक और प्रतीकात्मक चूक है”। कांग्रेस का कहना है कि ‘इंदिरा बनना आसान नहीं’। यह सही है कि पाकिस्तान के दो टुकड़े कर इंदिरा गांधी ने अद्वितीय नेतृत्व का प्रदर्शन किया, पर दो परिस्थिति एक जैसी नहीं होती। न ही भुगोलिक स्थिति ही एक जैसी है। मैं समझता हूं कि जो किया गया वह बिल्कुल सही था। हमारा क्या लक्ष्य था? हमारा लक्ष्य आतंकवाद का जवाब देना था जो हम बखूबी दे सके। इसमें कोई ‘हार’ नहीं हुई। जैश और लश्कर के आतंकी मरकज तबाह कर दिए गए। हमारा लक्ष्य पाकिस्तान को तबाह करना नहीं था। दुनिया परमाणु सम्पन्न पाकिस्तान को तबाह नहीं होने देगी। हमारा मकसद युद्ध करना नहीं था। जो ‘युद्ध’ ‘युद्ध’ कर रहे हैं उनको पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल मनोज नरवणे ने जवाब दिया है कि युद्ध रोमांटिक नहीं होता। यह बॉलीवुड की फ़िल्म भी नहीं होता। यह बहुत गम्भीर विषय है”। लम्बा युद्ध हमारे आर्थिक विकास को भी भारी चोट पहुंचाता। सिंधु जल संधि को निलम्बित कर और उनके सैनिक और जेहादी ठिकानों पर हमले कर हमने अपना संदेश पहुंंचा दिया है, पर लोग शायद कुछ और भी चाहते थे। आिखर उन्हें पीओके का सपना दिखाया गया था।
जिस तरह परिपक्वता और दिलेरी के साथ भारत सरकार और सशस्त्र बल चुनौती से निबटे हैं उसका समर्थन होना चाहिए। वह उकसावे में नहीं आए और आराम से दुश्मन को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। 1971 के बाद सेना के लिए यह स्वर्णिम समय था। क्या पाकिस्तान बंदा बन जाएगा? शायद नहीं। आिखर िफतरत का मामला है, इसलिए हमें अपनी आर्थिक और सैनिक ताकत बढ़ाने पर ध्यान देते रहना होगा और अगले राउंड के लिए तैयार रहना होगा। हमें सावधान भी रहना है। विशेष तौर पर क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य बहुत हमारे पक्ष में नजर नहीं आता। अमेरिका के नासमझ राष्ट्रपति ट्रम्प जिन्हें न इतिहास का ज्ञान है, न भुगोल की जानकारी का, रवैया अमित्रतापूर्ण है। भारत और पाकिस्तान को फिर जोड़ने की और कश्मीर समस्या को फिर अंतर्राष्ट्रीय बनाने की कोशिश हो रही है और किसी भी देश ने खुल कर पाकिस्तान की निंदा नहीं की, यहां तक कि क्वाड के बाकी तीन कथित साथी देशों, अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया ने भी पाकिस्तान की निन्दा का एक शब्द नहीं कहा।