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शहरों में गंभीर होती पार्किंग की समस्या

शहरों में पार्किंग की समस्या से बढ़ता प्रदूषण…

05:25 AM Jun 24, 2025 IST | Rohit Maheshwari

शहरों में पार्किंग की समस्या से बढ़ता प्रदूषण…

भारत के ज्यादातर शहरों में पार्किंग के लिए जगह कम पड़ती जा रही है। इसके दुष्परिणाम भी दिखने लगे हैं। प्रदूषण बढ़ रहा है। गलियों में और फुटपाथों में जिस तरह बेतरतीब ढंग से गाड़ियां खड़ी की जाती हैं उससे सड़क पर और पैदल चलने की जगह कम पड़ रही है। पार्किंग की समस्या कमोबेश देश के सभी शहरों में देखी जा सकती है। अखबारों में आए दिन सुर्खियां बनती हैं कि गाड़ी पार्किंग को लेकर झड़प हुई। उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ के थाना रोरावर क्षेत्र से बीते 21 जून को खबर सामने आई थी कि ट्रैक्टर-ट्रॉली की पार्किंग को लेकर दो पक्षों में विवाद हुआ। विवाद इतना बढ़ा कि दोनों पक्षों में लाठी-डंडों से मारपीट हो गई। इस घटना में 5 लोग घायल हुए।

इसके अलावा दिल्ली से एक खबर थी कि 22 मार्च को उत्तर पश्चिमी दिल्ली में मामूली पार्किंग विवाद ने हिंसक रूप ले लिया। यहां पड़ोसियों के बीच स्कूटी पार्किंग को लेकर झगड़ा हो गया। बात इतनी बढ़ गई कि मारपीट में एक व्यक्ति की मौत हो गई, जबकि कई लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। 12 मई को गुरुग्राम के ज्योति पार्क में एक मामूली पार्किंग का विवाद इतना बढ़ गया कि एक दर्जन लोगों ने एक परिवार के सदस्यों के साथ जमकर मारपीट की। शहरों में पार्किंग की समस्या के कारण हर दिन ऐसे विवाद सामने आ रहे हैं। ऐसे में यह सवाल मौजूं है कि आखिर विकराल रूप लेती पार्किंग की समस्या के समाधान की दिशा में सरकारें संवेदनशीलता का परिचय क्यों नहीं दे रही?

देश के सभी शहरों के प्रमुख बाजारों में पार्किंग की समस्या गंभीर रूप ले रही है। यह भी देखा गया है कि बाजार में जगह नहीं होने के कारण लोग मनमर्जी करते हुए फुटपाथ और सड़कों पर गाड़ी पार्क करने से पीछे नहीं हटते। आज आलम यह है कि अवस्थित पार्किंग छोटे से लेकर बड़े शहरों में जाम का मुख्य कारण बन रही है। दुनिया भर के बड़े शहरों में पार्किंग के बारे में हाल ही में किए गए एक वैश्विक अध्ययन से पता चलता है कि औसत शहरी ड्राइवर पार्किंग की जगह की तलाश में औसतन 18 से 20 मिनट बिताता है, जिसके परिणामस्वरूप तनाव, ईंधन की बर्बादी, उत्सर्जन में वृद्धि, सड़कों पर भीड़भाड़ और उत्पादकता में कमी आती है। सितंबर 2021 में बंबई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति गिरीश कुलकर्णी की पीठ ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा है कि मुंबई और उपनगरों में पार्किंग की समस्या दिनोंदिन गंभीर होती जा रही है।

सड़कों की लगभग चालीस फीसद जगह गाड़ी पार्किंग से सिकुड़ जाती है। इससे आम आदमी के लिए चलने की जगह नहीं रह जाती। पीठ ने सवाल उठाया है कि एक परिवार को चार से पांच गाड़ियां रखने की अनुमति क्यों दी जा रही है? पार्किंग को लेकर अब तक जो अध्ययन हुए हैं उससे हालात की गंभीरता का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। एक अध्ययन के मुताबिक सड़क किनारे पार्किंग की वजह से कोलकाता में सड़क की जगह में 35 प्रतिशत, दिल्ली में 14 प्रतिशत, जयपुर में 56 प्रतिशत और कानपुर में 45 प्रतिशत की कमी आई है। गुजरात के गोधरा जैसे छोटे शहर में भी सप्लाई की तुलना में पार्किंग स्पेस की मांग ढाई गुना ज्यादा है। यही हाल दूसरे शहरों का भी है। भारत के ज्यादातर शहरों में पार्किंग स्पेस की मांग की तुलना में इसकी आपूर्ति आधी या उससे कम है। दिल्ली जैसे महानगर में बढ़ती जनसंख्या और वाहनों की संख्या के कारण पार्किंग की समस्या एक गंभीर मुद्दा बन गया है।

सरकारी रिपोर्ट्स और अध्ययन से ये सामने आया है कि शहर में पार्किंग स्पेस की कमी तेजी से बढ़ रही है और इस समस्या से समाधान के लिए बड़ी प्लानिंग की जरूरत है। दिल्ली में आजकल कुल 1.5 लाख से ज्यादा पार्किंग स्पेस उपलब्ध हैं जो खासतौर पर शहरी इलाकों और व्यावसायिक क्षेत्रों में मौजूद है। हालांकि, राजधानी में वाहनों की संख्या इस आंकड़े से कई गुना ज्यादा है। आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली में करीब 1.4 करोड़ से ज्यादा वाहन हैं और यह संख्या लगातार बढ़ रही है। इसका परिणाम यह है कि कई जगहों पर वाहन सड़क किनारे या अवैध पार्किंग की समस्या पैदा कर रहे हैं जिससे यातायात पर असर पड़ता है। कमोबेश दिल्ली जैसे हालात देश के हर छोटे-बड़े शहर के हैं।

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट के एक रिसर्च में ये सामने आया कि शहर के आकार और गाड़ियों की संख्या में बढ़ाैतरी की दर के हिसाब से देखें तो पार्किंग की मांग बढ़ती ही जा रही है। अगर दिल्ली की बात करें तो यहां पार्किंग की समस्या खत्म करने के लिए 310 फुटबॉल के मैदानों जितनी अतिरिक्त जगह चाहिए। इसी तरह चेन्नई में 100 और चंडीगढ़ में 50 फुटबॉल मैदानों की जितनी अतिरिक्त जगह मिलने से पार्किंग की समस्या का समाधान हो पाएगा। विशेषज्ञों के अनुसार, बढ़ती पार्किंग की समस्या को दूर करने के लिए सरकार को बाजार, ऑफिस, रिहायशी इलाकों में बहुस्तरीय पार्किंग बनवानी चाहिए। मैट्रो, बस, साइकिल और पैदल यातायात को बढ़ावा देना चाहिए ताकि निजी वाहनों की संख्या कम हो सके।

शहरों में बहुत स्तरीय पार्किंग परिसर और अंडरग्राउंड पार्किंग का निर्माण करवाना चाहिए। मॉल, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड के पास बहुत स्तरीय पार्किंग विकसित करनी चाहिए। ज्यादा से ज्यादा लोगों को सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और सार्वजनिक परिवहन सेवा सुरक्षित और समय पर संचालित और सस्ती होनी चाहिए। स्थानीय निकायों और ट्रैफिक पुलिस के बीच समन्वय बनाना जरूरी है। नगर निगमों को चाहिए कि वो पार्किंग मैनेजमेंट कमेटी बनाए जो इन नीतियों को प्रभावी तरीके से लागू कर सकें।

कुछ लोग नो-पार्किंग जोन, नो-स्टॉपिंग जोन एवं कंट्रोल्ड पार्किंग के क्रियान्वयन में अपेक्षानुरूप सहयोग नहीं करते हैं जिससे पार्किंग नियमों का समुचित क्रियान्वयन संभव नहीं हो पाता है। यह सही है कि पार्किंग नियमों का पालन तभी हो सकेगा जब नागरिक पार्किंग के महत्व को समझें। जरूरत इस बात की है कि विकराल रूप लेती पार्किंग की समस्या के स्थाई समाधान की दिशा में ठोस कदम उठाए जाए। यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो यह कहा जा सकता है कि पार्किंग की समस्या बहुत बड़ी परेशानी का सबब बनती नजर आएगी।

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