प्रधानमंत्री की कार्यशैली, मिश्रा की जुबानी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम जब भी लिया जाता है, तो नृपेंद्र मिश्रा को उससे अलग करके देख पाना कठिन है। दरअसल, मोदी ने स्वयं दूरसंचार अधिनियम में संशोधन करवाकर मिश्रा को प्रधानमंत्री कार्यालय में शामिल किया था। साल 2014 में नरेंद्र मोदी ने नृपेंद्र मिश्रा को अपना प्रधान सचिव चुन लिया था। लेकिन इसमें एक तकनीकी अड़चन थी, दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण अधिनियम (TRAI Act) के तहत TRAI के अध्यक्ष और सदस्यों को केंद्र या राज्य सरकारों में किसी भी प्रकार की नौकरी स्वीकार करने की अनुमति नहीं थी। मिश्रा TRAI के पूर्व अध्यक्ष रह चुके थे, जिससे उनकी नियुक्ति में कानूनी बाधा आ गई।
हालांकि, मोदी सरकार ने हार नहीं मानी। पहले एक अध्यादेश लाया गया और बाद में अधिनियम में संशोधन किया गया। यह कदम न केवल एक मिसाल बना, बल्कि इसने साफ संकेत दिया कि मिश्रा सरकार के लिए कितने अपरिहार्य थे। और यह विश्वास सही साबित हुआ, प्रधानमंत्री मोदी के पहले कार्यकाल के दौरान पूरे पांच वर्षों तक नृपेंद्र मिश्रा प्रधानमंत्री कार्यालय में उनके सबसे भरोसेमंद और निर्णायक सलाहकार बने रहे।
यह तथ्य उस समय और भी स्पष्ट हो गया जब नृपेंद्र मिश्रा ने स्वेच्छा से प्रधानमंत्री कार्यालय छोड़ दिया। कुछ ही महीनों में वे फिर चर्चा में लौट आए, इस बार प्रधानमंत्री कार्यालय में नहीं, बल्कि उन योजनाओं की ज़िम्मेदारी संभालते हुए जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बेहद निकट मानी जाती हैं : प्रधानमंत्री संग्रहालय और अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण। अपने दृढ़ निश्चय और कार्यकुशलता के लिए प्रसिद्ध नृपेंद्र मिश्रा ने इन दोनों परियोजनाओं को पूरी निष्ठा और निर्धारित समय में पूरा किया। जो कार्य दूसरों के लिए लगभग असंभव प्रतीत होता, वह मिश्रा के लिए आधी जीत के समान था, क्योंकि वे पहले से ही मोदी की कार्यशैली और उनकी कठोर समय-सीमाओं से परिचित थे।
प्रधानमंत्री मोदी के साथ काम करना अतिरिक्त परिश्रम, अनुशासन और समर्पण की मांग करता है, लेकिन नृपेंद्र मिश्रा कोई साधारण अधिकारी नहीं हैं। मोदी की ही तरह वे भी समय पर कार्य पूरा करने और कठिन से कठिन लक्ष्य को रिकॉर्ड समय में हासिल करने में विश्वास रखते हैं।
इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि सफलता नृपेंद्र मिश्रा की दूसरी नहीं, बल्कि पहली प्रकृति है -जैसा कि उन्होंने स्वयं कहा था। सिविल सेवा में शामिल होने का जुनून इतना प्रबल था कि उन्होंने चिकित्साशास्त्र की पढ़ाई शुरू करने के कुछ ही दिनों बाद उसे छोड़ दिया। अलीगढ़ में अपनी पहली नियुक्ति के दौरान उन्होंने सांप्रदायिक तनाव के भयावह दृश्य देखे, जहाँ रामायण के पन्ने जलाए गए और मंदिर में गोमांस फेंका गया। इसके बाद उन्होंने कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया, जिनमें दो मुख्यमंत्रियों, मुलायम सिंह यादव और कल्याण सिंह, के साथ सेवा देना शामिल है।
अब फिर लौटते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उनकी कार्यशैली और उस कारण पर कि उन्होंने कानूनी बाधाओं के बावजूद मिश्रा को अपने साथ जोड़ने के लिए अतिरिक्त प्रयास क्यों किए। इस पर मिश्रा ने एक साक्षात्कार में कहा था, “यह उनका स्वभाव है। जब वे कोई निर्णय लेते हैं, तो उसे बदलते नहीं।”
प्रधानमंत्री मोदी के साथ काम करने से मिला सबसे बड़ा अनुभव था, “उनकी दिशा बिल्कुल स्पष्ट होना।” मिश्रा के शब्दों में, “नीतिगत स्तर पर आपके पास बहुत अधिक छूट नहीं होती थी। उनका अपना दृष्टिकोण था, वे महत्वाकांक्षी थे और उनके लक्ष्य बहुत ऊँचे होते थे। हमें उनके दृष्टिकोण के भीतर रहकर काम करना पड़ता था। कभी-कभी मतभेद भी होते थे, जैसे मेरे कार्यकाल के शुरुआती तीन-चार महीनों में जीएसटी पर हुआ।”
उन्होंने आगे कहा, “जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब जीएसटी के विरोध में थे। इसलिए जब वित्त मंत्री अरुण जेटली और उनकी टीम ने पहली प्रस्तुति दी, तो उन्होंने तुरंत इंकार कर दिया, बोले, ‘नहीं, इसमें बहुत सी समस्याएँ हैं, मैं इसे मंज़ूरी नहीं दे सकता।’ हम सब निराश थे।
इसके बाद दो और प्रस्तुतियाँ हुईं और शायद वे तब ही सहमत हुए जब दो शब्द सामने आए, ‘एक राष्ट्र, एक कर’ और ‘जो जीएसटी लागू करेगा, वही आर्थिक स्वतंत्रता की दिशा में अग्रणी कहलाएगा।’ इन दो बातों पर उन्होंने ध्यान दिया, हमें पूरा सुना और कहा, ‘इस पर काम करो। मैं अपने संदेह बताऊँगा, तुम समाधान लेकर आओ, लेकिन जीएसटी लागू होगा।’ जैसा मैंने कहा, एक बार निर्णय ले लेने के बाद वे उसे बदलते नहीं।” हालांकि, मिश्रा ने यह भी जोड़ा कि मोदी अपने निर्णयों पर पुनर्विचार करने से भी नहीं हिचकिचाते। “मुझे दो उदाहरण याद हैं, एक मेरे कार्यकाल के दौरान और एक उसके तुरंत बाद। दोनों कृषि सुधारों से जुड़े थे। अपने राष्ट्र के नाम संबोधन में उन्होंने स्वीकार किया कि वे समय को लेकर गलत थे। उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है यह सुधार समय से पहले था।’”
नोटबंदी पर, जो आज भी आलोचना के घेरे में है, नृपेंद्र मिश्रा ने इस निर्णय का दृढ़ता से बचाव किया। उन्होंने कहा-लोग प्रधानमंत्री का अनुचित मूल्यांकन करते हैं। मैं नोटबंदी के पक्ष में हूँ। यह संभव है कि यह सौ प्रतिशत सफल न रही हो, जिसकी ज़िम्मेदारी मैं भी लेता हूं। अपनी बात को विस्तार देते हुए मिश्रा ने कहा-कई बार कुछ आकलन उम्मीद के अनुसार नहीं चलते। नोटबंदी के क्रियान्वयन में जो संस्थान प्रमुख भूमिका में थे, उनमें कुछ हद तक भ्रष्टाचार हुआ। जब लोग पूछते हैं कि अपेक्षा के अनुसार क्यों बड़ी मात्रा में पुराने नोट नष्ट नहीं हुए, तो इसका सीधा अर्थ है कि वे नोट किसी न किसी रूप में परिवर्तित हो गए। समस्या नीति की नहीं थी, बल्कि नई मुद्रा की कमी की थी।
नोटबंदी को असफल मानने से असहमति जताते हुए उन्होंने कहा-मुख्य बात यह है कि जिस प्रधानमंत्री ने रात के बारह बजे मुद्रा संकट का सामना किया, उन्होंने तत्काल निर्णय लिया कि अगले एक महीने तक ‘डिजिटलीकरण’ हमारा नारा होगा। और अचानक पूरा देश डिजिटल भुगतान की दिशा में मुड़ गया। आज भारत में डिजिटल लेनदेन की संख्या किसी भी विकसित देश से अधिक है। आधार और डिजिटल भुगतान, दोनों ही वर्तमान प्रधानमंत्री की योजनाबद्ध सफलताएँ हैं।
राम मंदिर निर्माण और प्रधानमंत्री संग्रहालय पर प्रधानमंत्री मोदी के सुझावों को लेकर मिश्रा ने कहा-जब 2018 में नेहरू संग्रहालय को प्रधानमंत्री संग्रहालय में बदला गया, तो यह मोदी जी की इच्छा थी कि यह अधिक लोकतांत्रिक हो और इसमें देश के सभी प्रधानमंत्रियों के योगदान को समान रूप से प्रदर्शित किया जाए। वे लेखन सामग्री को लेकर भी सजग थे, चाहे इंदिरा गांधी के दौर के संवेदनशील विषय हों या लाल बहादुर शास्त्री की ताशकंद के बाद की अंतिम घड़ियाँ, उन्होंने सुझाव दिया कि विवादित घटनाओं को संयमित ढंग से प्रस्तुत किया जाए। हमने उसी दिशा में काम किया और कुछ प्रसंगों को जानबूझकर कम महत्व दिया ताकि संग्रहालय संतुलित और गरिमापूर्ण बना रहे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गैलरी पर बात करते हुए नृपेंद्र मिश्रा ने स्वीकार किया कि यह “एक चुनौतीपूर्ण कार्य” था। उन्होंने बताया कि यह प्रारंभिक योजना का हिस्सा नहीं थी, बल्कि बाद में जोड़ी गई थी। मिश्रा ने कहा-यह तय किया गया कि इसमें केवल उनके पहले दो कार्यकालों को शामिल किया जाए, जो पूर्ण हो चुके हैं, और गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल को शामिल न किया जाए।
उन्होंने आगे कहा-संभव है कि कुछ लोग आलोचना करें कि मोदी जी की गतिविधियों को अधिक प्रमुखता या अनुपातहीन रूप से दिखाया गया है। हमें ऐसा नहीं लगता, लेकिन फिलहाल हम मोदी गैलरी की समीक्षा की प्रक्रिया में हैं। राम मंदिर हो या प्रधानमंत्री संग्रहालय, इन दोनों परियोजनाओं में जो हासिल किया गया है, उस पर मिश्रा निस्संदेह संतुष्ट और गर्वित दिखाई देते हैं।

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