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अशांत कश्मीर और आगे का रास्ता

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12:44 AM Aug 31, 2018 IST | Desk Team

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कश्मीर घाटी में अशांति और हिंसा, जिसने बुरहान वानी की जुलाई 2016 में मुठभेड़ में मौत के बाद से गम्भीर रूप ले लिया था, में तब से लेकर आज तक कोई कमी नहीं आ रही बल्कि हालात आैर खराब होते जा रहे हैं। घाटी में आतंकवादी सुरक्षा बलों और पुलिस के जवानों को लगातार निशाना बनाते आ रहे हैं। कुछ समय के लिए पत्थरबाजी की घटनाएं कम हुई थीं लेकिन अब फिर पत्थरबाजी की घटनाएं शुरू हो गई हैं। लगातार मुठभेड़, बन्द और राष्ट्र विरोधी तत्वों का निरंतर उपद्रव, कहीं न कहीं यह कहने पर सोचने को मजबूर करता है कि क्या घाटी के हालात ऐसे ही रहेंगे। जवानों की हत्याएं, उन्हें पीटे जाने के वीडियो, बेलगाम आतंकवादियों के वीडियो के साथ भय और आशंका के बीच पूरी घाटी में जीवन को बहुत बुरी स्थिति में धकेल दिया है। शोपियां में आतंकी हमले में 4 पुलिसकर्मी शहीद हो गए और आतंकी उनके हथियार लेकर फरार हो गए। दूसरी तरफ सुरक्षाबल लगातार ऑपरेशन चलाकर आतंकियों का सफाया कर रहे हैं।

वर्ष 2018 में भारतीय सेना, जम्मू-कश्मीर पुलिस, सीआरपीएफ और बीएसएफ ने 8 महीनों में 110 आतंकी ढेर किए हैं। इनमें कई मोस्ट वांटेड आतंकी भी शामिल हैं। 10 टॉप आतंकियों की लिस्ट में 3 मारे जा चुके हैं। अब 7 टॉप आतंकी बचे हैं। आतंकी कुकुरमुत्तों की तरह उग आते हैं। पुलिसकर्मी आतंकी बन रहे हैं, युवा बंदूकें थाम रहे हैं, सबसे खतरनाक पहलू है स्थानीय लोगों का आतंकवाद से जुड़ना आैर आतंकियों को संरक्षण देना। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? इसमें कोई संदेह नहीं कि घाटी में आतंकवाद के लिए पाकिस्तान तो जिम्मेदार है ही बल्कि राज्य में अलगाववादी हुर्रियत के नेता और प्रशासन में मौजूद काली भेड़ें भी कम जिम्मेदार नहीं। जम्मू-कश्मीर में जेल से युवाओं को आतंकवाद का प्रशिक्षण दिलाने के लिए पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर यानी पीओके में भेजने की नई साजिश का खुलासा हुआ है आैर इस सम्बन्ध में श्रीनगर सैंट्रल जेल के डिप्टी जेलर और 4 आतंकियों को गिरफ्तार किया गया है।

डिप्टी जेलर युवाओं को ट्रेनिंग के लिए पाकिस्तान भेजने का काम करता था। न तो टैरर फंडिंग का खेल बन्द हुआ है और न ही ऐसी गतिविधियों पर पूरी तरह अंकुश लगा है। एनआईए की टीम ने टैरर फंडिंग मामले में पाकिस्तान में बैठा हिज्बुल मुजाहिदीन प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन के बेटे शकील अहमद आैर कुछ अन्य को गिरफ्तार किया है। सलाहुद्दीन भारत में हुए कई आतंकी हमलों में शामिल रहा है। जनवरी 2016 को पंजाब के पठानकोट एयरबेस पर हुए हमले के पीछे भी उसके संगठन का हाथ था। उसकी आतंकी गतिविधियों के चलते 26 जून 2017 में अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने उसे वैश्विक आतंकियों की सूची में डाल दिया था। सलाहुद्दीन ने भारत को कब्रिस्तान बनाने की कसम खाई है लेकिन उसका परिवार भारत में रहकर साजिशों को अन्जाम दे रहा है। उसका बड़ा बेटा शकील अहमद जिसे गिरफ्तार किया गया, वह श्रीनगर में शेरे कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में मेडिकल असिस्टेंट के पद पर कार्यरत है। दूसरा बेटा जावेद यूसुफ बड़गाम में ही जोनल आ​ॅफिस में कम्प्यूटर ऑपरेटर है।

तीसरा बेटा शाहिद यूसुफ श्रीनगर के कृषि विभाग में कार्य करता था, उसे पिछले साल गिरफ्तार किया गया था। चौथा बेटा यूसुफ श्रीनगर में डाक्टर है और पांचवां बेटा सैयद मुईद कम्प्यूटर इंजीनियर है। कश्मीर में खून की होली खेलने वाले के बेटे उच्च पदों पर हैं जो लगातार जहर फैलाने का काम कर रहे हैं। कश्मीर के मामले में भारत की आज तक की नीति यही रही है कि वहां इतना अधिक पैसा फैंका जाता रहा, इतने ज्यादा अधिकार दिए जाते रहे, इतना ज्यादा तुष्टीकरण किया जाता रहा ताकि वे भारतवर्ष के प्रति नतमस्तक रहें परन्तु सारी घाटी को पाकिस्तान और आंतरिक षड्यंत्रों ने विषाक्त बना डाला। जिस फारूक अब्दुल्ला ने अटल जी की श्रद्धांजलि सभा में भारत माता की जय का उद्घोष कर वाहवाही लूटी, उन्होंने ही अपने शासनकाल में कश्मीर की स्वायत्तता का राग छेड़ा था। मुझे याद है प्रधानमंत्री अमेरिका की यात्रा करने वाले थे।

फारूक अब्दुल्ला ​​​दिल्ली आए, प्रधानमंत्री से ​मिले, उनके वापस आने तक उन्हें संयम बरतने का आश्वासन दिया गया। इधर प्रधानमंत्री का विमान उड़ा, उधर जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में नाटक शुरू हो गया। ऐसे-ऐसे प्रवचन विधानसभा में हुए मानो व कश्मीर नहीं, ब्लूचिस्तान की असैम्बली हो। जो प्रस्ताव पारित हुआ, वह देशद्रोह का नग्न दस्तावेज था आैर वस्तुतः उस दस्तावेज में भारत की इतनी ही भूमिका थी कि वह इस राज्य की किसी बाहरी आक्रमण से रक्षा करे। पैसों का अनवरत प्रवाह होता रहे आैर यहां की सरकार भारत के समस्त विधानों का उपहास उड़ाते हुए अपना फाइनल राउंड खेलते हुए अर्थात विखंडित होने का दुष्प्रयास करती रहे। हुर्रियत के नागों से हमें क्या मिला। यहां इन नागों को हमने ही पाला हुआ है। महबूबा मुफ्ती आज भी पाकिस्तान से वार्ता की वकालत करती हैं। पत्थरबाजों को भटके हुए बच्चे बताती रही। उनके मुकद्दमे वापस लेती रही। भाजपा आैर पीडीपी सरकार का प्रयोग बिल्कुल विफल रहा। अब सत्यपाल मलिक ने जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल पद सम्भाला है, उनके सामने बड़ी चुनौती इस बात की है कि कश्मीर में शांति कैसे स्थापित हो। आगे का रास्ता क्या हो? बेहतर यही होगा कि राज्यपाल महोदय जनता से सीधा संवाद कायम करें और दूसरी तरफ सेना आतंक के सफाये का काम करती रहे। देखना है कि कुशल राजनीतिज्ञ सत्यपाल मलिक किस दिशा में आगे बढ़ते हैं।

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