संघ केवल कहता नहीं करता भी है
कल्पना कीजिए- साल 1925, देश अंग्रेज़ी शासन की बेड़ियों में जकड़ा है और एक व्यक्ति, नागपुर की भूमि पर 17 लोगों के साथ यह संकल्प लेता है-"मैं भारत की आजादी के साथ-साथ हिंदुओं का संगठन करूंगा।" जो संघ की प्रारंभ की प्रतिज्ञा से स्पष्ट है "मैं भारत को स्वतंत्र, समृद्ध और वैभवशाली राष्ट्र बनाने के लिए तन, मन, धन अर्पित करूंगा।" उस समय यह विचार न किसी राजनीतिक नारे के रूप में था, न किसी विरोध के आंदोलन के रूप में, बल्कि एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण का बीज था, जिसे डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने बोया। आज, सौ वर्ष बाद वहीं बीज एक विराट वटवृक्ष का रूप ले चुका है-सेवा, संगठन, संस्कारों और समाज परिवर्तन के विस्तार के रूप में।
डॉ. हेडगेवार ने केवल यह नहीं कहा कि समाज का संगठन होना चाहिए, बल्कि यह भी बताया कि यह कैसे संभव है। उन्होंने कोई भाषण या उपदेश मात्र नहीं दिया, बल्कि एक व्यवस्थित पद्धति तंत्र विकसित किया- "शाखा"। यह शाखा केवल शारीरिक व्यायाम का स्थान नहीं थी, बल्कि एक ऐसे राष्ट्रीय पुनर्जागरण का मंच थी जहां व्यक्ति में अनुशासन, देशभक्ति और सेवा का संस्कार पैदा किया गया। तीसरे सरसंघचालक बाला साहब देवरस के शब्दों में "जहां हिंदू वहां शाखा, जहां शाखा वहां विजय।" वह कहते थे "शाखा महिलाओं की सुरक्षा और राष्ट्र की रक्षा की भावना की जीवंत अभिव्यक्ति है।"
एक घंटे की यह शाखा समय के साथ व्यक्ति निर्माण से समाज निर्माण की प्रयोगशाला बन गई। आज, जब संगठन अपने शताब्दी वर्ष की ओर अग्रसर है तो यह देखना अत्यंत प्रेरणादायक है कि डॉ. हेडगेवार का स्वप्न केवल विचारों में सीमित नहीं रहा-वह व्यवहार में बदल चुका है।
संघ ने अपने सौ वर्ष पूरे होने के अवसर पर स्पष्ट कहा है कि "सर्वव्यापी और सर्वस्पर्शी बनना है। अर्थात संघ का विचार प्रत्येक गांव बस्ती, व्यक्ति तक पहुंचे। इस लक्ष्य के लिए बनाई गई कार्य योजना भी उतनी ही व्यावहारिक है। हरियाणा दिसंबर 2025 में प्रत्येक घर (50,000 अधिक) तक संपर्क करना और फरवरी 2026 में हर मंडल (8 से 10 गांवों का समूह) व हर बस्ती (8/10 हजार आबादी) में "हिंदू सम्मेलन' यह केवल आयोजन नहीं, बल्कि समाज को एक सूत्र में बांधने का प्रयास है।
केवल कहा नहीं तो उसकी योजना के परिणाम स्वरूप हरियाणा विजयदशमी पर सभी 257 नगरीय इकाइयों की 1443 में से 1398 बस्ती (97%) तथा ग्रामीण 882 में से 862 मंडल (98%) 6701 में से 4016 (60%) गांव के 84519 स्वयंसेवकों ने 2925 घोष वादक (आरएसएस बैंड), स्वयंसेवक परिवारों से 57065 (9886 महिला) तथा 1062 विशेष व्यक्तित्व-दर्शकों की उपस्तिथि में 1111 कार्यक्रम सम्पन्न किए। हरियाणा जैसे प्रगतिशील राज्य में जहां किसान, सैनिक, खिलाड़ी और युवक-युवती ऊर्जा का प्रतीक हैं, वहां इस विचार का विस्तार समाज में नई चेतना जगाने का माध्यम बन रहे हैं। विजयदशमी जैसे पर्व पर जब शाखाएं, सम्मेलन और संवाद आयोजित हो रहे हैं तो यह केवल उत्सव नहीं, बल्कि संघ के सौ वर्ष की दिशा में आत्ममंथन और आत्मनिवेदन है। भविष्य की योजनाओं का आधार है। विजयदशमी का प्रतीक सदैव धर्म की अधर्म पर विजय का रहा है- आज यह विजय है, असंगठन पर संगठन की, उदासीनता पर जागरूकता की और विघटन पर एकता एकात्मता-समानता-समरसता की। डॉ. हेडगेवार का दृष्टिकोण देश को सशक्त बनाने के लिए केवल राजनीति नहीं, बल्कि समाज के हर वर्ग में संगठन की भावना आवश्यक है। उन्होंने कभी किसी पद या सत्ता की आकांक्षा नहीं की-उनका एक ही लक्ष्य था, संगठित समाज के माध्यम से सशक्त राष्ट्र।
"पथ का अंतिम लक्ष्य नहीं है सिंहासन चढ़ते जाना । सब समाज को लिए साथ में आगे है बढ़ते जाना।।"
यह विचार आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना सौ वर्ष पूर्व था। समाज तभी सशक्त होगा जब उसमें एकता, समरसता, अनुशासन और आत्मविश्वास होगा। शाखा की व्यवस्था ने यही गुण समाज के भीतर गहराई तक पहुंचाए हैं। यह व्यवस्था व्यक्ति को 'मैं' से 'हम' की ओर ले जाती है। जब समाज का प्रत्येक व्यक्ति अपने गांव, बस्ती, मोहल्ले की भलाई के लिए कुछ समय देगा, तब ही राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया सशक्त होगी। डॉ. हेडगेवार का स्वप्न केवल एक संगठन का नहीं था, बल्कि एक राष्ट्रीय चरित्र निर्माण की प्रक्रिया का था।
आज जब युवा वर्ग "सेवा, संगठन और समर्पण" के सूत्र को जीवन का आधार बना रहा है तब यह विश्वास दृढ़ होता है कि आने वाली शताब्दियां भारत की होंगी-एक ऐसे भारत की जो आधुनिकता के साथ अपनी सांस्कृतिक जड़ों में दृढ़ बना रहेगा।
डॉ. हेडगेवार का कहा हुआ वाक्य आज इतिहास नहीं, वर्तमान का सजीव सत्य बन चुका है -"संगठित समाज ही सशक्त भारत का आधार है।"

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