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क्रिकेट में गायब हुई खेल भावना

04:30 AM Sep 26, 2025 IST | Aakash Chopra
पंजाब केसरी के डायरेक्टर आकाश चोपड़ा

भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों पर जमी बर्फ को पिघलाने के लिए कई बार क्रिकेट कूटनीति से काम लिया गया। क्रिकेट कूटनीति का गवाह जिया-उल-हक भी बने और परवेज मुशर्रफ भी। क्रिकेट कूटनीति को भारत आैर पाकिस्तान के बीच शांतिवार्ताओं के लिए मार्ग प्रशस्त करने के लिए माध्यम बनाया गया। कई बार बर्फ पिघली लेकिन पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के चलते संबंध बार-बार कड़वे होते गए। तनाव के बावजूद क्रिकेट खेल में खेल भावना और जुनून सामने आता रहा है लेकिन ए​शिया कप क्रिकेट में जो कुछ सामने आया उसे खेल का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा।
"खिलाड़ी की भावना" से तात्पर्य उस नैतिक आचरण और मूल्यों से है जो एक खिलाड़ी खेल के दौरान दिखाता है। इसमें निष्पक्षता, शिष्टाचार, खेल के प्रति प्रेम और टीम के साथियों तथा प्रतिद्वंद्वियों का सम्मान शामिल है। अच्छी खिलाड़ी की भावना का मतलब सिर्फ जीतना नहीं, बल्कि खेल का आनंद लेना, नियमों का पालन करना और हार-जीत दोनों को गरिमा से स्वीकार करना है। खिलाड़ी की भावना के प्रमुख तत्व: प्रतिद्वंद्वियों, कोचों, अंपायरों और खेल के नियमों का सम्मान करना। किसी भी कीमत पर जीतने की कोशिश करना और खेल को ईमानदारी से खेलना। जीत या हार की स्थिति में गरिमा बनाए रखना और विरोधी टीम के सदस्यों से सम्मानपूर्वक पेश आना। अपने कार्यों की जिम्मेदारी लेना और अगर कोई गलती होती है तो उसे स्वीकार करना। खेल के प्रति प्रेम रखना और खेल के दौरान मिलने वाली खुशी और उत्साह को प्राथमिकता देना। टीम के साथियों का समर्थन करना और एकता की भावना को बढ़ावा देना। खेल भावना एक बहुआयामी अवधारणा है जो खेल जगत में नैतिक व्यवहार और मूल्यों को समाहित करती है। यह प्रतिस्पर्धा और निष्पक्ष खेल के बीच संतुलन का प्रतिनिधित्व करती है, विरोधियों, नियमों और खेल भावना के प्रति सम्मान को बढ़ावा देती है।
एशिया कप के सुपर 4 मैच के दौरान हारिस रऊफ ने भी इसी तरह का आपत्तिजनक इशारा किया था, जिसके बाद उनकी काफी आलोचना हुई थी। इसके अलावा पाकिस्तानी सलामी बल्लेबाज साहिबजादा फरहान ने भी अर्धशतक पूरा करने के बाद अपने बल्ले से 'एके47' जैसा इशारा किया था। इस घटना ने खेल जगत में एक बहस छेड़ दी है कि क्या खिलाड़ियों को अपने व्यवहार में अधिक सावधानी बरतनी चाहिए, खेल को सिर्फ खेल की तरह खेलना चाहिए और व्यक्तिगत स्तर पर नहीं गिरना चाहिए लेकिन भारत की जीत से ज्यादा ' नो हैंडशेक विवाद' चर्चा में बना हुआ है।
सूर्यकुमार यादव ने जैसे ही अपने बल्ले से विनिंग सिक्स लगाया तो उसके बाद उन्होंने अपने टीममेट शिवम दुबे से ही हाथ मिलाया। पाकिस्तानी खिलाड़ियों से भारतीय टीम ने हाथ नहीं मिलाया और वह सीधे ड्रेसिंग रूम में चले गए। वहीं, मैदान पर पाक खिलाड़ियों ने उनका इंतजार किया लेकिन टीम इंडिया की तरफ से कोई जवाब नहीं आया। इससे नाराज होकर पाकिस्तान टीम मैनेजर नवीद अकरम चीमा ने मैच रेफरी एंडी पायकॉफ्ट के पास आधिकारिक शिकायत दर्ज कराई। ये विवाद उस समय और बढ़ गया जब पाकिस्तान कप्तान सलमान अली आगा ने पोस्ट मैच प्रेजेंटेशन में शामिल नहीं होने का फैसला किया। उन्होंने संजय मांजरेकर के साथ ब्रॉडकास्ट इंटरव्यू को भी ठुकरा दिया। पीसीबी के अनुसार, यह फैसला उन्होंने भारतीय खिलाड़ियों के व्यवहार के विरोध में लिया। पाकिस्तान को एशिया कप में दूसरी बार हराने के बाद पूछने पर भारतीय कप्तान सूर्यकुमार यादव ने सभी से आग्रह किया कि वे अब दोनों देशों के बीच के मुकाबलों को एक अर्थपूर्ण 'प्रतिद्वंद्विता' कहना बंद करें।
क्रिकेट बेहतर का हकदार है। एशिया कप में जो कुछ हुआ है, उसने हममें से कई लोगों को, जो इस खेल से प्यार करते हैं, अपना नज़रिया बदलने पर मजबूर कर दिया है। मौजूदा हालात में भारत-पाकिस्तान क्रिकेट संबंध जारी रखना क्रिकेट के लिए नुक्सानदेह होगा। पाकिस्तान की महिला क्रिकेटर नशरा संधू ने हाल ही में साउथ अफ्रीका के खिलाफ एकदिवसीय मैच में 6 विकेट लेने के बाद एक ऐसा इशारा किया जिससे विवाद खड़ा हो गया है। लाहौर के गद्दाफी स्टेडियम में खेले गए इस मैच में संधू ने 6 विकेट लिए और वह वनडे क्रिकेट में 100 विकेट लेने वाली सबसे तेज पाकिस्तानी महिला खिलाड़ी भी बन गईं। इस मैच के बाद उन्होंने सोशल मीडिया पर एक तस्वीर शेयर की है। जिसमें वह 6 उंगलियों से इशारा कर रही हैं। कहावत के अनुसार यह ‘भद्रजनों का खेल’ है। इसका बड़ा कारण शुरुआती समय से उच्चवर्गीय लोगों का इसे खेलना तो रहा ही, इसके साथ ही इससे जुड़ी खेल भावना और इसे निष्पक्ष तरीके से खेलने पर जोर देना भी रहा। समय के साथ राजनीति यह तय करने लगी कि कोई देश दूसरे किसी देश के साथ खेले या नहीं। इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे श्वेत राष्ट्रों ने रंगभेद के दौर में भी दक्षिण अफ्रीका के साथ क्रिकेट संबंध बनाए रखे, जबकि भारत से प्रेरित अश्वेत देशों ने ऐसा नहीं किया- जब तक कि देश की कार्यकारी राजधानी प्रिटोरिया ने बहुजातीय समानता को आधिकारिक नीति के रूप में नहीं अपना लिया। इस मुद्दे पर दुनिया भले ही बटी हुई थी लेकिन विकासशील देशों ने भारत के रुख की सराहना की। भारत ने अपने रुख पर कायम रहने के लिए 1974 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ टेनिस के डेविस कप फाइनल की कुर्बानी भी दे दी।
अब बात भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव की। दोनों देशों के बीच आखिरी द्विपक्षीय टेस्ट सीरीज 2006-07 में और आखिरी सीमित ओवरों की सीरीज 2012-13 में हुई थी। 2014 में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा के सत्ता में लौटने के बाद से पाकिस्तान के साथ कोई द्विपक्षीय सीरीज नहीं हुई, हालांकि सीमित ओवरों के टूर्नामेंटों में आईसीसी (अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद) की प्रतिबद्धताओं के कारण पाकिस्तान जरूर आया था। इस साल की शुरुआत में भारत द्वारा आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी के मैच पाकिस्तान में खेलने से इन्कार करने के बाद पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने आगामी आईसीसी आयोजनों के लिए भारत न आने की धमकी दी। अगर राजनीति और खेल को अलग रखना है, जिसका जवाब होगा नहीं, तो फिर हाथ न मिलाने का खेल भावना विरोधी नाटक क्यों किया जाए। पहले तो इस बात की बहस छिड़ी रही कि क्या भारत को पाकिस्तान के साथ मैच खेलना चाहिए या नहीं। इस पर लोगों की राय बटी हुई थी। भारतीय कप्तान सूर्यकुमार यादव ने अगर पाकिस्तान के ​िखलाड़ियों से हाथ नहीं मिलाया तो यह पहलगाम हमले में 26 लोगों की निर्मम हत्या के खिलाफ भारत के जन-जन के आक्रोश की अभिव्यक्ति थी। जो कुछ पाकिस्तान के खिलाड़ियों ने किया वह भी शर्मनाक ही था। खासकर ऐसे मैचों में जहां दो देशों के बीच तनाव पहले से ही मौजूद हो। इस तरह की घटनाएं भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट संबंधों में और तनाव बढ़ा सकती हैं।

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