शेयर बाजार में गिरावट का दौर
शेयर बाजार में लगातार 5 महीने से गिरावट का दौर जारी है। बाजार में हाहाकार मचा…
शेयर बाजार में लगातार 5 महीने से गिरावट का दौर जारी है। बाजार में हाहाकार मचा हुआ है, क्योंकि गिरावट ने 29 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया है। 2008 की वैश्विक मंदी के बाद विदेशी निवेशकों में अफरातफरी का माहौल है। विदेशी संस्थागत निवेशक पांच महीनों के दौरान 2 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा शेयरों की बिकवाली कर चुके हैं। भारतीय निवेशकों को अक्तूबर के बाद से ही 92 लाख करोड़ का चूना लग चुका है। भारतीय अर्थव्यवस्था के सबसे चमकते हुए पिछले तीन दशकों में शेयर बाजार के लिए बहुत ही डरावना समय है। हर तरफ निराशा का गहन कोहासा छाया हुआ है। छोटे और मंझोले निवेशक बर्बाद हो रहे हैं। निवेशकों का भरोसा डगमगा चुका है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की धमकियों का असर न केवल बाजार पर पड़ रहा है बल्कि उद्योग जगत भी घबराया हुआ है। सभी का मनोविज्ञान हिल चुका है।
अगर भारत के शेयर बाजार की तात्कालिक गिरावट की कोई सबसे बड़ी वजह है तो वह डोनाल्ड ट्रम्प की अनिश्चित और अचंभे से भरी टैरिफ धमकियां हैं। राष्ट्रपति ट्रम्प पिछले एक महीने के अपने कार्यकाल में तीन बार करीब-करीब धमकी देने के स्तर पर यह दोहरा चुके हैं कि टैरिफ के मामले में अमेरिका जैसे को तैसा रवैया अपनाएगा। मतलब भारत जितना टैरिफ अमेरिकी आयात पर लगाएगा, उतना ही टैक्स अमेरिका भारतीय आयात पर लगाएगा। इस धमकी के कारण भारत के शेयर बाजार रह-रहकर धड़ाम-धड़ाम गिर रहे हैं।
शेयर बाजार में गिरावट के कई और कारण भी हैं। घरेलू अर्थव्यवस्था में सुस्ती, कम्पनियों के कमजोर नतीजे, एफआईआईएस की बड़ी बिकवाली, रुपए की घटती कीमत, इन सब ने मिलकर भारतीय बाजार को नीचे धकेल दिया है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि वित्त वर्ष 2025 की जीडीपी ग्रोथ रेट आरबीआई और एनएसओ के अनुमान से कम रह सकती है। दुनियाभर में ट्रेड और टैरिफ वॉर से बाजार तो कांप ही रहा था लेकिन भारत में अनिश्चित मानसून और कमजोर ग्रामीण एवं शहरी मांग ने भी अर्थव्यवस्था में नकारात्मक माहौल बना दिया। निर्यात के मोर्चे पर भी कोई बेहतरी नजर नहीं आ रही। महंगाई पर काबू पाना अब भी चुनौती है। बढ़ती बेरोजगारी बड़ा संकट खड़ा करती नजर आ रही है। विनिर्माण क्षेत्र के सामने मुश्किलों का दौर चल रहा है। सेवा, खनन, वाहन, भवन निर्माण आदि क्षेत्रों में सुस्ती बनी हुई है। विदेशी निवेशकों के साथ-साथ भारतीय निवेशकों का भरोसा भी टूट चुका है। अमेरिका और चीन का बाजार ज्यादा मुनाफा दे रहे हैं। इसलिए निवेशक उधर पलायन कर रहे हैं। जो लोग अपनी बचत से थोड़ा पैसा शेयर बाजार में निवेश करते थे उनके लिए निवेश करना अब सम्भव नहीं रहा। चंद अमीर आदमी निवेश कर सकते हैं लेकिन पूरा देश तभी खुशहाल होगा जब जनता की जेब में धन जाएगा।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि भारत निवेशकों का भरोसा कैसे हासिल करे। बाजार का इतिहास रहा है कि कोई भी बाजार कितना भी नीचे क्यों न चला जाए अंततः उसे ऊपर उठना ही है। बाजार विशेषज्ञों का भी यही कहना है कि शेयर बाजार जल्दी ही सम्भलेगा। शेयर बाजार का यही चरित्र है। शेयर बाजार एक ऐसा महासागर है जिसमें कभी तूफान आता है तो कभी शांति छा जाती है। कुुछ विशेषज्ञाें ने तेजी का तूफान आने की भविष्यवाणी की है। इसलिए निवेशकों को धैर्य नहीं खोना चाहिए।
पिछले दो दशकों से भारत के युवा निवेशक ही शेयर बाजार के कर्ता-धर्ता रहे हैं, वही इसकी अगुवाई करते रहे हैं इसलिए कहर भी उन्हीं पर सबसे ज्यादा टूटा है लेकिन ये भयानक, डरावने और काले दिन भी गुजर जाएंगे, जैसे अतीत में कई बार ऐसे स्याह दिन आते-जाते रहे हैं। इसलिए भारत के युवा निवेशकों को अपनी भावनाएं नियंत्रण में रखनी होंगी। वो इस गिरावट से घबराकर इतने ज्यादा निराश न हों कि उन्हें लगने लगे कि सब कुछ खत्म हो गया। बाजार का अपना एक चक्र होता है और इस चक्र का गणितीय नियम यह भी है कि जो बाजार जितना नीचे धंसेगा, उतना ही ऊपर उछलेगा। इसलिए हिम्मत रखें।
केन्द्र सरकार को भी निवेशकों का भरोसा बनाए रखने के लिए बुनियादी समस्याओं को दूर करना होगा और कुछ व्यावहारिक कदम उठाने होंगे। इस बात को भी ध्यान में रखना होगा कि कुछ कार्पोरेट घरानों और कम्पनियों का मुनाफा लगातार बढ़ने से अर्थव्यवस्था का चेहरा नहीं बदल सकता। शेयर बाजार में वही लोग पैसा लगाएं जो कम से कम 5 साल तक धैर्य रख सकें। निवेश करने से पहले ट्रैंड देखकर नहीं बल्कि फंडामैंटल और टैक्नीकल रिसर्च कर लेनी चाहिए।