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लाकडाऊन की सफलता जरूरी

कोरोना वायरस के प्रकोप को थामने के लिए भारत का समूचा राजनैतिक जगत इस बात पर सहमत है कि 21 दिन का लाकडाऊन सफल होना चाहिए, परन्तु हर सफलता की कीमत होती है। लाकडाऊन की शर्त है कि देश की 130 कराेड़ आबादी घर में बैठी रहे।

01:19 AM Mar 27, 2020 IST | Aditya Chopra

कोरोना वायरस के प्रकोप को थामने के लिए भारत का समूचा राजनैतिक जगत इस बात पर सहमत है कि 21 दिन का लाकडाऊन सफल होना चाहिए, परन्तु हर सफलता की कीमत होती है। लाकडाऊन की शर्त है कि देश की 130 कराेड़ आबादी घर में बैठी रहे।

लाकडाऊन की सफलता जरूरी
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कोरोना वायरस के प्रकोप को थामने के लिए भारत का समूचा राजनैतिक जगत इस बात पर सहमत है कि 21 दिन का लाकडाऊन सफल होना चाहिए, परन्तु हर सफलता की कीमत होती है। लाकडाऊन की शर्त है कि देश की 130 कराेड़ आबादी घर में बैठी रहे।
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घर में बैठने की कीमत समाज के उस वर्ग को चुकानी पड़ सकती है जो रोजाना मेहनत-मजदूरी करके अपना गुजारा चलाता है,  इसके साथ ही ठेके पर काम करने वाले कर्मचारियों से लेकर विभिन्न छोटे व्यापारिक व औद्योगिक संस्थानों में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए 21 दिन का एकान्तवास रोजगार की समस्या के साथ खर्चे-पानी की समस्या खड़ी कर सकता है।
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अतः लाकडाऊन की सफलता की शर्त है कि समाज के इस वर्ग की जेब में लाकडाऊन की शर्तें मानने के लिए न्यूनतम पर्याप्त धन हो और घर में भोजन की समुचित व्यवस्था हो, जिससे देश के कुल 33 करोड़ परिवारों में से ऐसे लगभग 13 कराेड़ परिवारों को किसी प्रकार की कठिनाई का सामना न करना पड़े और वे बेचैनी महसूस न करें। कोरोना ने स्वतन्त्र भारत के इतिहास में अभी तक की सबसे बड़ी चुनौती पेश की है। अतः इसका मुकाबला भी उतनी ही मुस्तैदी से करने की जरूरत पड़ेगी। यह भारत के लोकतन्त्र की अजीम ताकत है कि इसके सत्ता से लेकर विपक्ष तक में एक से एक बड़ा दिमाग मौजूद है जो किसी भी राष्ट्रीय मुसीबत के समय सभी राजनीतिक मतभेद भुलाकर एक मंच पर आकर समस्या पर पार पा सकता है।
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वित्तमन्त्री ने कोरोना की वजह से मन्द पड़ने वाली आर्थिक गतिविधियों को थामे रखने के लिए कई राहत देने वाले उपाय घोषित किये हैं। आज ही श्रीमती सीतारमन ने संगठित व असंगठित क्षेत्र के कर्मियों से लेकर निर्माण उद्योग के मजदूरों के लिए भी राहत देने की घोषणाएं कीं, परन्तु भारत की विविधतापूर्ण आर्थिक संरचना को देखते हुए विपक्षी दल भी इस मामले में बराबरी से चिन्तित हैं और सरकार को सकारात्मक सुझाव दे रहे हैं जिससे लाकडाऊन पूरी तरह सफल हो सके।
इसमें  किसी प्रकार की कोई राजनीति नजर नहीं आती। बेशक कांग्रेस पार्टी के नेता श्री पी. चिदम्बरम  सफल वित्त मन्त्री व गृह मन्त्री रह चुके हैं, मगर वह विवादास्पद भी हो गये हैं, इसके बावजूद उन्होंने कोराेना वायरस से निपटने के लिए लागू किये गये लाकडाऊन की सफलता के लिए एक ‘दस सूत्री फार्मूला’ दिया है जिसकी समीक्षा पूरी गंभीरता के साथ होनी चाहिए।
श्री चिदम्बरम का कहना है कि प्रधानमन्त्री योजना के तहत खुले हुए सभी जन धन बैंक खातों की आधार कार्ड की संलग्नता से परख करके मदद के हकदार लोगों के खातों में छह हजार रुपए की धनराशि सरकार को तुरन्त पहुंचानी चाहिए जिससे वे घर में बन्द रहते हुए अपने परिवार के भरण- पोषण की चिन्ता से मुक्त हो सकें। इसके साथ ही इन परिवारों को दस किलो गेहूं या चावल भी निःशुल्क सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से मुहैया कराया जाना चाहिए। श्री चिदम्बरम का मानना है कि ‘लाकडाऊन’ की सफलता की शर्त समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग का इसे पूर्ण समर्थन ही होगा। दैनिक आधार पर मजदूरी करने वाले व छोटे व्यापारिक प्रतिष्ठानों में काम करने वाले लोगों से लेकर लघु उद्योग क्षेत्र में कार्यरत कर्मचारियों के रोजगार को बदस्तूर जारी रखना ऐसी जिम्मेदारी होगी जिसे सरकार को विशेष अधिसूचना जारी करके पूरा करना चाहिए। इसके लिए शाॅप एक्ट से लेकर ईएसआई एक्ट, कांट्रेक्ट एक्ट आदि के कर्मचारियों को 21 दिन के वेतन की गारंटी सहित रोजगार न जाने की पुख्ता व्यवस्था करनी होगी।
इससे लाकडाऊन के बाद देश की अर्थ व्यवस्था के जल्दी ही सुचारू होने में मदद मिलेगी। इतना निश्चित है कि कोरोना की वजह से आर्थिक सुस्ती आयेगी और विकास वृ​िद्ध दर 4.7 प्रतिशत से गिर कर तीन प्रतिशत रह सकती है, परन्तु इसके लिए सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। चुनौती यह होगी कि हमारी अर्थ व्यवस्था मन्दी के चक्र में प्रवेश न कर पाये। (मन्दी का मतलब होता है कि बाजार में माल की भरपूर सप्लाई के बावजूद विकवाली नहीं होती है क्योंकि लोगों की क्रय क्षमता बहुत कम हो जाती है।) श्री चिदम्बरम का मत है कि आगामी तीन महीनों में जीएसटी की दर आवश्यक उपभोक्ता सामग्री पर भी पांच प्रतिशत घटा दी जानी चाहिए। (ढाई प्रतिशत केन्द्र व ढाई प्रतिशत राज्य) उनके दस सूत्री फार्मूले से सरकार पर 70 अरब डालर या पांच लाख कराेड़ रुपए का अतिरिक्त भार पड़ेगा जो कुल सरकारी खर्च का छह प्रतिशत बैठता है।
अब दूसरी तरफ अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल के भाव भारत के खरीदारी औसत भाव 65 डालर प्रति बैरल से गिर कर 30 व 35 डालर के घेरे मे घूम रहे हैं। भाव गिरने से वार्षिक आधार पर सरकार को लगभग चार लाख करोड़ रुपए का लाभ होगा। यह लाभ मुसीबत के वक्त जरूरतमन्द जनता की जेब में डाल कर कोरोना को पटकी दी जा सकती है। बेशक श्री चिदम्बरम का यह फार्मूला ही अन्तिम दवा नहीं हो सकती मगर इसमें एक समाधान का पुट अवश्य है।
जरूरी है कि इस कठिन समय में सभी विपक्षी दलों के नेताओं की राय सरकार ले और आम सहमति बनाते हुए समाधान खोजे। भारत की परंपरा भी यही रही है कि राष्ट्रीय आपदा के समय अकेले सरकार को ही जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, यह जिम्मेदारी उन सभी जनप्रतिनिधियों को उठानी पड़ेगी जिन्हें आम जनता ने अपना वोट देकर संसद में पहुंचाया होता है।
विपक्षी सांसद भी जनता के वोट से ही चुने जाते हैं और उनकी भी जिम्मेदारी बनती है कि वे जनता की हिम्मत हर संकट की घड़ी में बनाये रखें और प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी द्वारा उठाये गये कदमों का समर्थन करें। श्री मोदी ने आह्वान किया है कि नवदुर्गा पर्व पर प्रत्येक समृद्ध परिवार को अपने करीब के नौ असमर्थ परिवारों की चिन्ता करनी चाहिए। यह सामाजिक जिम्मेदारी का कदम है जिसे प्रत्येक समर्थ व्यक्ति को निभाना चाहिए, यदि निजी स्तर पर सभी अभियोक्ता ( एम्प्लायर)  अपने कर्मचारियों ( एम्प्लाइज) को आश्वस्त कर दें तो सरकार का काम बहुत हल्का जायेगा।
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