सिखों में बढ़ता धर्म परिवर्तन चिन्तन का विषय
पंजाब सहित समूचे देश में निरन्तर सिखों के बढ़ते धर्म परिवर्तन के मामले गंभीर चिन्तन का विषय है। इस पर चिन्ता तो सभी करते हैं, पर चिन्तन करने की सोच किसी की नहीं है। यहां तक कि अकाल तख्त साहिब के पूर्व जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह, देश के गृहमंत्री अमित शाह से लेकर अनेक धर्म के ठेकेदार बनकर बैठे लोग इस विषय को लेकर समय- समय पर चिन्ता करते देखे गए हैं। पंजाब के 12 हजार में से 8 हजार गांवों में ईसाई मिशनरी के प्रचारक अपनी पकड़ बना चुके हैं। अमृतसर शहर जिसे सिखी का केन्द्र माना जाता है उसके अधीन आने वाले गांवों में सबसे अधिक गिनती में सिख और हिन्दू अपने धर्म का त्याग कर ईसाई धर्म अपना चुके हैं।
उ.प्र. के पीलीभीत में 3000 सिखों का ईसाई धर्म अपनाने का मामला भी पूरी तरह से चर्चा में है, हालांकि ईसाई मिशनिरयों के मुखियों के द्वारा साफ किया जा रहा है कि उन्होंने जबरन किसी भी शख्स का धर्म परिवर्तन नहीं करवाया है, क्योंकि ऐसा करना उनके धर्म के भी खिलाफ है जबकि धर्म परिवर्तन करने वाले ज्यादातर गरीब वर्ग के ही लोग हैं जिनके द्वारा लोभ-लालच में फंसकर ऐसा किया जा रहा है। सबसे ज्यादा चिन्तन इस बात का होना चाहिए कि आखिरकार ईसाई धर्म में ऐसा क्या है जो हिन्दू-सिख बड़ी गिनती में उनकी ओर आकर्षित होकर उनका धर्म अपनाते जा रहे हैं। सच्चाई सबको कड़वी लगेगी, मगर इसमें सबसे अधिक कसूरवार सिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी है जिसका गठन सिखी के प्रचार-प्रसार के लिए हुआ था।
कमेटी हर महीने लाखों रुपये सिखी के प्रचार पर खर्च अवश्य करती है मगर वह सिर्फ कागजों में होता है, सच्चाई इससे कोसों दूर ही दिखाई पड़ती है। कमेटी के प्रचारकों ने अगर अपनी जिम्मेवारी को बाखूबी निभाया होता तो आज यह दिन नहीं देखना पड़ता। मुझे आज भी याद है जब मैं छोटा था उस समय ईसाई मिशनरियों के नुमाईंदे दिल्ली के हर क्षेत्र में आकर ईसाई धर्म का प्रचार करने हेतु मोटी-मोटी किताबें हर महीने बिना किसी शुल्क के देकर जाते थे। जिन्हें पढ़ने के बाद निश्चत तौर पर किसी का भी मन बदल सकता है। दूसरा ईसाई मिशनरी के अधीन चलने वाले स्कूलों में बच्चों को मुफ्त शिक्षा, किताबें, वर्दी आदि मुहैया करवाई जाती है। बेरोजगारों को रोजगार दिये जाते हैं, अगर ईसाई मिशनरी ऐसा कर सकती है तो सिख क्यों नहीं? दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के द्वारा इस मामले को गंभीरता से लेते हुए इस बार उ.प्र. के उन गांवों में गुरमत कैंप लगाकर लोगों को सिखी से जोड़ने के प्रयास किए। कमेटी महासचिव जगदीप सिंह काहलो टीम के साथ स्वयं इन गांवों में जाकर आए।
कनिश्क बम्ब कांड की याद आज भी ताजा : 23 जून, 1985 का वह दिन शायद ही कोई भूल पाए जब खालिस्तानियों द्वारा एयर इन्डिया के एक जहाज को हवा में ही बम्ब से उड़ा दिया जिसमें 329 यात्री मारे गए, उसमें 82 मासूम बच्चे भी थे। उसी समय टोक्यो के नारिता एयरपोर्ट पर एक और बम विस्फोट हुआ, जो एयर इंडिया की एक अन्य उड़ान ए आई-301 में हुआ था। यह बम चढ़ाए जाने से पहले ही फट गया, जिसमें दो जापानी बैगेज हैंडलर्स की मौत हो गई। कनाडा ने इस त्रासदी की याद में चार स्मारक बनाए हैं और आयरलैंड में भी एक स्मारक है। कनाडा ने 23 जून को “आतंकवाद पीड़ितों के लिए राष्ट्रीय स्मृति दिवस” घोषित किया है लेकिन यह एयर इंडिया की उड़ान होने के बावजूद और इतने अधिक भारतीय नागरिकों के मारे जाने के बावजूद भारत सरकार ने अभी तक न तो कोई स्मारक बनाया है, न इस हमले को औपचारिक रूप से स्वीकारा है।
हर साल पीड़ित परिवारों और उनके मित्रों को अपने प्रियजनों और अन्य आतंकवाद पीड़ितों को श्रद्धांजलि देने के लिए आयरलैंड या कनाडा की कठिन यात्रा करनी पड़ती है। इसी के चलते सिख ब्रदर्सहुड इन्टरनैशनल के राष्ट्रीय महासचिव गुणजीत सिंह बखशी ने भारत की सरकार से मांग की है कि कनिश्क बम्ब कांड की याद ताजा रखने हेतु एक स्मारक और एक लर्निंग सैन्टर देश की राजधानी में बनाया जाना चाहिए ताकि आतंकवाद पीड़ितों को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि दी जा सके। लंदन के गुरुद्वारे में सिद्धू मूसेवाला की कविता पढ़ने पर विवाद : आमतौर पर देखा जाए तो गुरुघरों में गुरबाणी कीर्तन ही गायन किया जा सकता है या फिर गुरु साहिबान और सिख इतिहास की जानकारी देती कविताओं को पढ़ा जा सकता है, लेकिन बीते दिनों लंदन के एक गुरुद्वारा साहिब में गुरु ग्रन्थ साहिब की हाजरी में मंच से ढाडी जत्थे के द्वारा पंजाबी सिंगर सिद्धू मूसेवाला का महिमा मंडन करते हुए कविता पढ़े जाने से विवाद खड़ा हो गया, हालांकि इस पर सिख समुदाय में मिलीजुली प्रतिक्रिया मिल रही है, कुछ लोग इसे अनुचित और गैर मर्यादित मान रहे हैं, जबकि कुछ सिद्धू मूसेवाला के प्रति श्रद्धांजलि के रूप में देख रहे हैं।
सिद्धू मूसेवाला एक लोकप्रिय पंजाबी गायक थे, जिसकी 2022 में हत्या कर दी गई थी। पंजाबी सिंगर, रैपर और कांग्रेस नेता सिद्धू मूसेवाला का विवादों से गहरा नाता रहा। कभी उन्होंने अपने गाने के जरिए खालिस्तान का समर्थन करके विवाद खड़ा किया तो कभी एके-47 चलाकर बनाए वीडियो के कारण भी खूब चर्चा में रहे। अपने एक गाने में तो उसने माई भागो जी जिनका सिख इतिहास में विशेष स्थान है उनके बारे में ही आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग कर डाला था जिसके बाद सिख समुदाय भड़क गया था और सिद्धू मूसेवाला को श्री अकाल तख्त के जत्थेदार द्वारा पेश होने का आदेश दिया गया था। हालांकि सिद्धू मूसेवाला ने बाद में अकाल तख्त में पेश होकर सिख समुदाय से माफी मांग ली थी। मगर कुल मिलाकर देखा जाए तो सिद्धू मूसेवाला हमेशा ही अपने गानों में किए गए शब्दों के प्रयोग से विवादों में घिरे रहे।
शिरोमणि अकाली दल की शर्मनाक हार का जिम्मेदार कौन? : सिखों की पंथक पार्टी कहलाने वाली शिरोमणि अकाली दल जिसका गठन 1920 में पंथक मसलों पर पहरा देते हुए सिखी के प्रचार और प्रसार को आगे बढ़ाने के लिए हुआ था मगर आज उसका अस्तित्व समाप्त होता दिख रहा है। हाल ही में लुधियाना उप चुनाव में तो पार्टी की इतनी शर्मनाक हार हुई कि उसका उम्मीदवार अपनी जमानत तक नहीं बचा सका। इतना ही नहीं राजनीति के माहिरों का मानना है कि शिरोमणि अकाली दल के उम्मीदवार को जितने वोट मिले भी उसमें से अधिकतर उसके अपने रुख के चलते मिले अन्यथा पार्टी को तो इतने वोट भी नहीं मिलने थे। अब देखा जाए तो इसका जिम्मेवार कौन है क्योंकि पिछले कुछ समय से पंजाब में जितने भी चुनाव हुए उन सब में अकाली दल का ऐसा ही हश्र देखने को मिल रहा है।
बुद्धिजीवी वर्ग का मानना है कि जब तक सुखबीर सिंह बादल इसकी बागडौर संभालते रहेंगे पार्टी का यही हाल रहेगा इसलिए बेहतर यही होगा कि उन्हें पीछे हट जाना चाहिए, क्योंकि आज भी पंजाब की जनता उन्हें गुरु ग्रन्थ साहिब की बेदबी की घटना का इन्साफ मांग रहे लोगों पर गोलियां चलवाना, सिखों पर अत्याचार करने वालों को बेशूमार तरक्की देना, श्री अकाल तख्त साहिब के आदेशों को नजरअंदाज करना जैसे अनेक ऐसे मुद्दे हैं जिसके लिए दोषी मानती है मगर अफसोस कि सुखबीर सिंह बादल शायद पार्टी के बजाए अपने निजी स्वार्थों को आगे रखते हुए प्रधानगी छोड़ने को ही तैयार नहीं जिसके चलते पार्टी दोफाड़ हो चुकी है और हो सकता है आने वाले दिनों में पार्टी से बागी हुए लोग पार्टी की बागडौर संभाल लें।