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शुरू हुई ‘ट्रेड वाॅर’

दूसरी बार अमेरिकी राष्ट्रपति का पद सम्भालते ही डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिका को…

01:43 AM Feb 03, 2025 IST | Aditya Chopra

दूसरी बार अमेरिकी राष्ट्रपति का पद सम्भालते ही डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिका को…

दूसरी बार अमेरिकी राष्ट्रपति का पद सम्भालते ही डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिका को महान बनाने और अमेरिका को प्राथमिकता देने वाले अपने एजैंडे का ऐलान किया था। उससे यह संकेत मिल गए थे कि उनका दूसरा कार्यकाल भी उथल-पुथल भरा होगा। ट्रम्प अपने चुनावी वादों को लागू करने में जुट गए हैं। यह तय है कि उनके द्वारा लिए गए फैसलों से वैश्विक परिदृश्य में बड़े बदलाव होंगे। यह बदलाव आर्थिक, रक्षा के साथ-साथ कूटनीतिक रिश्तों को भी नए सिरे से प्रभावित करेंगे। डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने ऐलान के मुताबिक मैक्सिको और कनाडा से आने वाले समानों पर 25 प्रतिशत और चीन से आयातित सामान पर 10 प्रतिशत टैरिफ लगा दिया है। ट्रम्प की इस कार्रवाई के जवाब में कनाडा, मैसिक्को और चीन भड़क उठे हैं और तीनों ने ही जवाबी कार्रवाई करने की कसम खाई है। कनाडा ने तो जवाबी कार्रवाई करते हुए अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ लगा दिया है। व्हाइट हाऊस का कहना है कि इन टैरिफों का उद्देश्य तीनों देशों को अवैध प्रवास को रोकने तथा फैंटेनाइल जैसी घातक दवाओं के प्रवाह पर अंकुश लगाने के लिए जवाबदेह बनाना है। ट्रम्प के ऐलान से अब ट्रेड वार का छिड़ना तय है। जो सलाना 2.1 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा व्यापार को बाधित कर सकती है।

ट्रेड वार शुरू हो जाने पर अमेरिका के दशकों पुराने कनाडा और मैक्सिको से व्यापारिक रिश्ते खत्म हो सकते हैं। चीन के सम्भावित कदमों से भी बहुत कुछ बदल सकता है। इससे कनाडा और मैक्सिको को आर्थिक नुक्सान हो सकता है लेकिन इससे अमेरिका में भी महंगाई बढ़ने का खतरा पैदा हो गया है। चीन ने अमेरिका के गलत व्यवहार के खिलाफ विश्व व्यापार संगठन में मुकदमा दायर करने और अपने अधिकारों और हितों की रक्षा के लिए हर कदम उठाने की घोषणा कर दी है। अमेरिका चीन और यूरोप के ट्रेड सरप्लस को कम करना चाहता है।

बुनियादी दलील यह है कि दुनिया को अमेरिकी टैरिफ से फायदा हुआ है क्योंकि उसने अमेरिका में विनिर्माण और रोजगार को प्रभावित किया है। ऐसे में टैरिफ में इजाफा न केवल आयात को महंगा बनाएगा बल्कि उम्मीद है कि मांग को अमेरिका निर्मित उत्पादों की ओर स्थानांतरित किया जा सकेगा जिससे राजस्व में भी इजाफा होगा। ट्रंप की योजना बाह्य राजस्व सेवा तैयार करने की है ताकि उस भारी भरकम धनराशि का संग्रह किया जा सके जो टैरिफ के कारण आएगी। कई अर्थशास्त्री इस बात को रेखांकित कर चुके हैं कि यह विचार प्रक्रिया सही नहीं है। टैरिफ में उल्लेखनीय वृद्धि के कई प्रकार के परिणाम नजर आ सकते हैं। उदाहरण के लिए इससे अमेरिकी ग्राहकों के लिए कीमतें बढ़ सकती हैं। इससे कुल मांग में कमी आ सकती है। इससे मुद्रास्फीति की दर भी बढ़ सकती है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व पहले ही मुद्रास्फीति को मध्यम अवधि के दो फीसदी के दायरे में लाने के लिए संघर्ष कर रहा है। मुद्रास्फीति की दर या अनुमान में इजाफा फेड को दरें बढ़ाने पर विवश कर सकता है। यह भी संभव है कि कारोबारी साझेदार प्रतिक्रिया स्वरूप दरों में इजाफा करें। इससे अमेरिका का निर्यात प्रभावित होगा। यह स्थिति किसी के लिए बेहतर नहीं होगी।

साल 2018 में ट्रंप ने आयातित वॉशिंग मशीन और सोलर पैनलों पर 50 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाया था। उस समय अमेरिकी सरकार ने कहा था कि दोनों क्षेत्रों में अमेरिकी मैन्युफैक्चर को विदेशों से अनुचित प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने आयातित स्टील पर 25 फीसदी और एल्युमीनियम पर 10 फीसदी टैरिफ लगाया था। हालांकि, मैक्सिको और कनाडा से स्टील और एल्युमीनियम के लिए छूट थी क्योंकि अमेरिका ने उनके साथ मुक्त व्यापार समझौता किया था। इस समझौते को नॉर्थ अमेरिकन फ्री ट्रेड अग्रीमेंट या नाफटा कहा जाता है, जिसे बाद में अमेरिका-मैक्सिको-कनाडा अग्रीमेंट (यूएसएमसीए) से बदल दिया गया था। अमेरिका को स्टील के सबसे बड़े निर्यातकों में से एक यूरोपीय संघ ने जींस बर्बन व्हिस्की और हार्ले डेविडसन मोटरसाइकिलों सहित तीन अरब डॉलर से अधिक मूल्य के अमेरिकी निर्यात पर टैरिफ़ लगाकर जवाबी कार्रवाई की। अमेरिका के प्रमुख राजनीतिक सहयोगी भारत को भी चुनौतियों का सामना करना होगा। ट्रम्प ने धमकी दी है कि अगर ब्रिक्स के सदस्य देश डॉलर से दूरी बनाते हैं तो उन पर 100 फीसदी टैरिफ लगाया जा सकता है। अवैध प्रवासियों को ट्रम्प द्वारा देश से बाहर निकालने के एक्शन की जद में भारत पहले ही आ चुका है। इसका असर भारत पर हाेगा क्यों​कि भारत अवैध रूप से रह रहे भारतीय नागरिकों का समर्थन नहीं कर सकता। भारत ब्रिक्स का सदस्य है इससे भारत प्रभावित होगा। भारत को सतर्कता पूर्वक आगे बढ़ना होगा। इनमें शुल्क में कमी और अमेरिका से आयात बढ़ाना हो सकता है लेकिन अमेरिका को यह समझना होगा कि वह भारत और चीन को एक साथ रखकर न देखें। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अमेरिका जाएंगे। ट्रम्प से उनके व्यक्तिगत संबंध बहुत अच्छे हैं। उम्मीद है कि दोनों नेताओं के संवाद से कोई न कोई रास्ता निकल आएगा।

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