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रूस-भारत-चीन की ‘त्रिमूर्ति’ निकालेगी ट्रम्प की दादागिरी

04:20 AM Aug 09, 2025 IST | Arjun Chopra

जिस तरह से अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के पूरी दुनिया को टैरिफ बढ़ाने के एेलान किए जाने और इसे लागू करने के बाद अपनी दादागिरी दिखा रहे हैं उसका जवाब देना जरूरी है। ट्रम्प का टैरिफ बम भारत पर जिस तरह ब्लास्ट हुआ है, भारत ने उसे करारा जवाब भी दिया है। भारत की अगर रूस से बरसों पुरानी दोस्ती है और वह उससे तेल खरीदता है तो किसी को क्या दिक्कत हो सकती है लेकिन अमेरिका को भारत-रूस दोस्ती पसंद नहीं। उसे भारत का रूस से तेल खरीदना भी नहीं जंचता। तभी तो वह भारत पर टैरिफ बढ़ाने की नई-नई धमकी दे रहा है। दुनिया ट्रम्प की धमकियों का जवाब ढूंढ रही है। तेजी से बदलते वैश्विक घटनाक्रम के बीच कहा भी जा रहा है कि अगर रूस-इंडिया और चीन (आरआईसी) अगर एक हो जाएं तो सचमुच वाशिंगटन हिल जाएगा। यह ऊपरी तौर पर मजबूत विकल्प दिखाई दे रहा है जो दु​िनया में अपना परचम फहरा सकता है लेकिन चीन को लेकर जमीनी दिक्कतें और जटिलताएं ज्यादा हैं। परन्तु यह भी कहा जा रहा है कि भारत और चीन एशिया की वो महाशक्तियां हैं तथा इनका मिलना आज के वैश्विक टकराव के बीच समय की मांग है। यह भी सच है कि भारत और चीन ने पिछले दो वर्षों में रिश्तों में जमी बर्फ को आपसी सहयोग से पिघलने का काम किया है।
भारत आैर चीनी पर्यटकों को वीजा ​िदए जाने की पहल, गलवान घाटी में तनाव कम करने के लिए सेनाओं की तैनाती में कटौती के अच्छे परिणाम दिखते हैं। अब दोनों देश सीमा तनाव खत्म कर चुके हैं और उस सम्भावना की तरफ बढ़ रहे हैं जिसका नाम है रूस-इंडिया-चीन गठजोड़। प्रधानमंत्री मोदी एक दूरदर्शी जननायक हैं तथा उनका 31 अगस्त को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के लिए जाने का ऐलान विश्व के नक्शे पर एक बड़ा मील पत्थर साबित हो सकता है। इस आरआईसी की सम्भावनाओं का जन्मदाता ट्रम्प को ही माना जाना चाहिए, जिसने भारत पर टैरिफ 25 प्रतिशत बढ़ाया तथा फिर अपनी धमकी पर अमल करते हुए पिछले हफ्ते ही 25 प्रतिशत का आैर इजाफा करते हुए इसे 50 फीसदी कर दिया। यद्यपि इस दिशा में गति​विधियां और घटनाक्रम शुरू हो चुका है।
रूस भारत-चीन तनाव कम करने और पश्चिमी प्रभाव को संतुलित करने के लिए आरआईसी त्रिगुट को दोबारा खड़ा करने पर जोर दे रहा है। वहीं भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखते हुए सावधानीपूर्वक विचार कर रहा है।
सच यह है कि हाल के वर्षों में वैश्विक भू-राजनीति में तेजी से बदलाव आया है। इस ­बदलती दुनिया में रूस, भारत और चीन (आरआईसी) त्रिपक्षीय मंच को दोबारा खड़ा करने की दिशा में सक्रिय प्रयास कर रहा है। रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने हाल ही में इस मंच को फिर से सक्रिय करने की इच्छा जताई है। लावरोव ने कहा कि भारत और चीन के बीच तनाव में “काफी” कमी आई है और त्रिपक्षीय समूह ‘आरआईसी’ का रुका हुआ काम फिर से शुरू हो सकता है। मॉस्को में उन्होंने कहा था कि आरआईसी प्रारूप में संयुक्त कार्य की बहाली बहुध्रुवीय ढांचे के निर्माण समेत यूरेशियाई प्रक्रियाओं की दिशा में पहला कदम हो सकता है।
अगर हम तीन दशक पुराने इतिहास में जाएं तो पाते हैं कि रूस-भारत-चीन (आरआईसी) त्रिपक्षीय मंच की शुरुआत 1990 के दशक के अंत में हुई थी, जब रूस के तत्कालीन विदेश मंत्री येवगेनी प्रिमाकोव ने इसे अमेरिका-केंद्रित एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था के खिलाफ एक वैकल्पिक रणनीतिक गठजोड़ के रूप में प्रस्तावित किया था। इस मंच का उद्देश्य तीनों देशों के साझा हितों को बढ़ावा देना और वैश्विक मंच पर बहुपक्षीय सहयोग को मजबूत करना था। 2000 के दशक में यह मंच ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन (एससीआे) जैसे अन्य बहुपक्षीय मंचों के साथ पूरक रूप से काम करता रहा लेकिन यह भी सच है कि 2020 में गलवान घाटी में भारत और चीन के बीच हिंसक झड़प के बाद RIC मंच लगभग निष्क्रिय हो गया। भारत-चीन सीमा विवाद और दोनों देशों के बीच बढ़ते अविश्वास ने इस त्रिगुट को कमजोर कर दिया। इस बीच, यूक्रेन युद्ध के बाद रूस और चीन के बीच निकटता बढ़ती चली गई।
रूस का मानना है कि भारत और चीन के बीच सीमा पर स्थिति को शांत करने की दिशा में प्रगति हुई है, और अब आरआईसी मंच को फिर से सक्रिय करने का सही समय है। रूस का मानना है कि आरआईसी का पुनर्जन्म पश्चिमी प्रभाव को संतुलित करने में मदद करेगा और तीनों देशों को एक स्वतंत्र, बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की दिशा में काम करने का अवसर देगा।
भारत, जो रूस का दशकों पुराना साझेदार है, वह इस संदर्भ में एक महत्वपूर्ण संतुलन की भूमिका निभा सकता है। भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और वैश्विक मंच पर उसकी बढ़ती भूमिका रूस के लिए आकर्षक है। देखा जाए तो भारत ने वैश्विक भू-राजनीति में अपनी स्वतंत्र नीति बनाए रखी है।
यह सच है कि रूस, भारत और चीन तीनों ब्रिक्स के प्रमुख सदस्य हैं। रूसी विदेश मंत्री लावरोव ने आन दि रिकार्ड कहा कि, ‘‘मुझे वाकई उम्मीद है कि हम ‘रूस-भारत-चीन’ त्रिपक्षीय समूह के काम को फिर से शुरू कर पाएंगे।
भारत और चीन के बीच संबंधों में हाल के महीनों में कुछ सुधार के संकेत दिखे हैं। अक्टूबर 2024 में पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सैनिकों को पीछे हटाने के समझौते ने चार साल से चले आ रहे गतिरोध को खत्म करने में मदद की। इसके अलावा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच ब्रिक्स शिखर सम्मेलन 2024 में हुई मुलाकात और विदेश मंत्रियों की बार-बार की बैठकों ने संबंधों को सामान्य करने की दिशा में सकारात्मक कदम उठाए हैं। तथा अब एससीओ में पीएम मोदी बहुत कुछ कर सकते हैं।
चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने भी मार्च 2025 में कहा था कि दोनों देशों के बीच सहयोग ही एकमात्र सही विकल्प है। यह रुख उस समय सामने आया जब अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की वापसी ने वैश्विक भू-राजनीति में अनिश्चितता पैदा की थी। आज की तारीख में ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति भारत और चीन दोनों के लिए आर्थिक और रणनीतिक चुनौतियां खड़ी कर रही है तथा इस कारण दोनों देश एक-दूसरे के साथ सहयोग बढ़ाने की दिशा में सोच रहे हैं। देखा जाए तो भारत और चीन के बीच अविश्वास की खाई अभी भी गहरी है। ऑपरेशन सिंदूर (2025) के दौरान पाकिस्तान द्वारा चीनी हथियारों का इस्तेमाल भारत के खिलाफ करने से तनाव को और बढ़ा दिया।
सच तो यह है कि आरआईसी का गठन भारत के प्रति रूस की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। रूस की इस पहल का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि भारत और चीन अपने द्विपक्षीय मुद्दों, खासकर सीमा विवाद, को कितनी प्रभावी ढंग से सुलझा पाते हैं, लेकिन मौजूदा हालात में आरआईसी का गठन दुनिया के लिए और हमारे खुद के लिए अमेरिका को एक करारा जवाब होगा।

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