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परमाणु जखीरे पर बैठी दुनिया

04:55 AM Nov 17, 2025 IST | Aditya Chopra
पंजाब केसरी के डायरेक्टर आदित्य नारायण चोपड़ा

अंतत: डोनाल्ड ट्रंप के ऐलान के बाद अमेरिका ने 33 वर्ष बाद परमाणु हथियारों का परीक्षण शरू कर दिया। अमेरिकी ऊर्जा विभाग के तहत आने वाली सैंडिया नेशनल लैबोरेट्रीज ने अपने आधिकारिक बयान में इस बात की पुष्टि की कि अमेरिका ने बी-61-12 टैक्टिकल थर्मो न्यूक्लियर बम का सफल परीक्षण किया है। यह परीक्षण 19 से 21 अगस्त के बीच नेवादा टेस्ट साइट पर किया गया जिसमें अत्याधुनिक एफ-35ए स्टैल्थ फाइटर जेट का इस्तेमाल हुआ।
रिपोर्ट के मुताबिक, एफ-35ए ने परीक्षण के दौरान बी-61-12 के इनर्ट वर्जन को सुरक्षित दिशा-निर्देशों के बीच उड़ाया और तय लक्ष्य पर सटीकता से गिराया। यह परीक्षण अभ्यास एनएनएसए के साथ मिलकर किया गया था। सबसे दिलचस्प बात यह रही कि पहली बार थर्मल प्रीकंडीशनिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया। इसका मतलब कि बम के जॉइंट टेस्ट असेंबली को अत्यधिक तापमान बदलावों से गुजारा गया ताकि यह पता चल सके कि असल युद्ध की कठिन परिस्थितियों में यह हथियार कितना सक्षम रहेगा। एफ-35 के साथ ऐसा प्रयोग पहले कभी नहीं हुआ था।
ट्रंप ने जब परमाणु परीक्षण शुरू करने का आदेश दिया था तब दुनिया सोच रही थी कि क्या वास्तव में ट्रंप ऐसा करेंगे या वह सिर्फ रूस, चीन, ईरान और उत्तर कोरिया पर दबाव बढ़ाने के लिए ऐसा कह रहे हैं। अब ​अमेरिका ने परमाणु परीक्षण कर दुनिया को ​िहला ​िदया है। इससे रूस, चीन और अमेरिका में तनाव बढ़ गया है। अमेरिका पूरी दुनिया में खुद को सबसे मजबूत दिखाना चाहता है। ​अमेरिका ने परमाणु परीक्षण कर अपनी परमाणु नीति में बहुत बड़ा बदलाव किया है। इससे दुनिया में परमाणु हथियारों की दौड़ बढ़ेगी। रूस, चीन और अन्य देश भी जब परमाणु परीक्षण फिर से शुरू कर सकते हैं। पाकिस्तान, उत्तर कोरिया और ईरान अपने ह​िथायार भंडार का विस्तार करने के लिए परीक्षण कर सकते हैं। इससे वैश्विक अस्थिरता और बढ़ जाएगी।
अमेरिका ने 16 जुलाई 1945 को न्यू मैक्सिको में पहली बार परमाणु बम का परीक्षण किया था। भौतिकी वैज्ञानिक जे. रोबोट ओपेन हाइमर ने परमाणु परियोजना का नेेतृत्व किया था और उनके साथ एनरिको फर्की, रिचर्ड फेनमैन और नीलसबोर आदि वैज्ञाानिक भी थे। परमाणु ​विस्फोट के बाद इसके भयानक परिणाम देखने के बाद ओपेन हाइमर ने हिन्दू धर्म ग्रंथ भगवद्गीता का प्रसिद्ध उदाहरण दिया और कहा “अब मैं मृत्यु बन गया हूं संसार का संहार करने वाला’’ इस परीक्षण के ठीक तीन हफ्ते बाद अमेरिका ने 6 अगस्त को जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिया दिया। इस हमले ने पलभर में विनाश कर डाला। लगभग 2 लाख लोग मारे गए। हजारों लोग अपंग हुए। कई वर्षों तक विकृत बच्चे जन्म लेते रहे और दोनों शहर खंडहर में तब्दील हो गए। इस हमले के बाद जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया और दूसरा विश्व युद्ध समाप्त हो गया लेकिन इसके बाद दुनियाभर में परमाणु हथियारों को लेकर एक दौड़ शुरू हो गई। आज दुनिया में इतने परमाणु बम हैं जिनसे दुनिया को कई बार बर्बाद किया जा सकता है। इसके बावजूद परमाणु ताकत हासिल करने की दौड़ खत्म नहीं हुई। दुनिया एक तरफ से परमाणु बमों के जखीरे पर बैठी है। इसका अर्थ यह है कि मानवता एक बहुत बड़े और आसन्न खतरे के मुहाने पर है। दुनिया के 9 देशों के सामूहिक ​िवनाश के पर्याप्त हथियार हैं। इन हथियारों का उपयोग चाहे जानबूझ कर किया जाए या किसी दुर्घटना, साइबर हमले के कारण हो, दुनिया के बड़े ​हिस्से को तबाह कर सकता है। परमाणु ​हथियारों को खत्म करने के ​िलए कई संधियां हुई। 1996 मंे व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (सीटीबीसी) हुई थी ताकि तनाव को कम किया जा सके। यह संधि अपने आप में भेदभावपूर्ण रही क्योंकि वैश्विक शक्तियों ने खुद को जिम्मेदार बताकर परमाणु परीक्षण करने के अपने अधिकार सुरक्षित रखे लेकिन दूसरों को परमाणु परीक्षण करने से रोका।
रूस ने सन् 2000 में इस पर हस्ताक्षर किए लेकिन वर्ष 2023 में इसे रद्द कर दिया। अमेरिका ने भी बाद में इसे रद्द कर दिया। भारत ने परमाणु अप्रसार संधि को भेदभावपूर्ण बताते हुए हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया था। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि भारत क्या करेगा। क्या वह ​िफर से परमाणु परीक्षण करेगा क्योंकि अगर भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान और चीन परमाणु परीक्षण करते हैं तो भारत भी ऐसा करने को ​विवश होगा। 1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने परमाणु परीक्षण पर अनिश्चितकालीन रोक लगाई थी। रोक को हटाना इस दुविधा का केवल एक हिस्सा है। 1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद अमेरिका ने भारत पर प्रतिबंध लगाए थे। इसके बाद क्लिंटन प्रशासन के तहत स्ट्रोब टैलबॉट और जसवंत सिंह के बीच परमाणु वार्ता हुई जो जॉर्ज. डब्ल्यू, बुश प्रशासन में भी चलती रही और जिसका नतीजा 2005 में भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के रूप में निकला। फिर भारत और अमेरिका के बीच 123 समझौते को लेकर बातचीत हुई और 2008 में न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) ने स्पष्ट रूप से छूट दी जिससे परमाणु ईंधन, तकनीक और वाणिज्य तक भारत की पहुंच आसान हो गई। निश्चित रूप से 123 समझौते के तहत भारत के पास अतिरिक्त परीक्षण के लिए बेहद कम गुंजाइश है। हालांकि, अगर भारत को बेहद जरूरी हालात में ये कवायद आवश्यक लगती है तो एनएसजी (भारत के सभी परमाणु साझेदार छोड़ भी दें) भारत के द्वारा परमाणु परीक्षणों के नए दौर को 123 समझौते और एनएसजी छूट का उल्लंघन मान सकता है जिसके कारण नए सिरे से प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। इसके नतीजे बहुत गंभीर होने की संभावना है। अगर भारत परमाणु परीक्षण करता है तो उसे ट्रंप प्रशासन के मनमानेपन से भी जूझना होगा। भारत हमेशा शांति का पुजारी रहा है लेकिन उसे अपने सुरक्षा हितों को भी ध्यान में रखना होगा।

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