चुनावी प्लानिंग से ज्यादा थी योगी-भागवत की मुलाकात
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच अयोध्या में हुई हालिया बैठक में सिर्फ चुनाव प्लानिंग से कहीं ज़्यादा कुछ था। एक घंटे तक चली यह चर्चा संकेत है कि योगी को 2027 में यूपी विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी का मुख्यमंत्री चेहरा बने रहना चाहिए। यह वन-टू-वन मुलाकात इस अटकल के बीच हुई है कि बीजेपी हाईकमान चुनाव से पहले यूपी में नेतृत्व में बदलाव कर सकता है। 2024 के लोकसभा चुनाव में यूपी में पार्टी के प्रदर्शन को लेकर समीक्षा का दौर जारी था और योगी आदित्यनाथ से हाईकमान ने इसके कारण जानने की कोशिश की थी। 2019 के नतीजों की तुलना में 2024 में बीजेपी की सीटों की संख्या आधी रह गई। यह याद रखना ज़रूरी है कि पिछली बार भागवत और योगी आदित्यनाथ की वन-टू-वन मुलाकात यूपी से निराशाजनक लोकसभा नतीजों के तुरंत बाद हुई थी, इन चुनावों के बाद सीएम को हटाने की मांग उठी थी। राज्य में पार्टी की कम सीटों के लिए योगी आदित्यनाथ को दोषी ठहराने वाले ताने इस बैठक के बाद बंद हो गए। विधानसभा चुनावों के मद्देनजर भागवत ने योगी आदित्यनाथ से मिलने का फैसला किया, इसे आरएसएस द्वारा पार्टी के शीर्ष नेताओं के बजाय सीएम के साथ सलाह करके यूपी राज्य चुनावों की कमान संभालने के कदम के तौर पर देखा जा रहा है।
हाल के हफ्तों में लखनऊ में महत्वपूर्ण राज्य चुनाव की तैयारी में काफी हलचल रही है, जिसमें बीजेपी लगातार तीसरी बार जीत हासिल करने की उम्मीद कर रही है। इन सभी बैठकों में आरएसएस के पदाधिकारी और योगी आदित्यनाथ मौजूद थे। पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से कोई भी मौजूद नहीं था। आरएसएस के मज़बूत समर्थन के साथ, योगी से उम्मीद की जा सकती है कि वह चुनावों के लिए उम्मीदवारों के चयन में अपनी बात मनवाएंगे। उन्होंने शिकायत की थी कि लोकसभा चुनाव के लिए टिकट बंटवारे के दौरान उनसे सलाह नहीं ली गई थी। इस बार वह आरएसएस की मदद से चुनाव प्रक्रिया को मैनेज करने की उम्मीद कर रहे हैं।
कर्नाटक में भाजपा की बगावत से बच रही सिद्धारमैया सरकार
जहां सभी की निगाहें कर्नाटक में कांग्रेस सरकार में सुलग रही बगावत पर हैं, वहीं बीजेपी में भी एक समानांतर ड्रामा चल रहा है। बीजेपी नेताओं का एक धड़ा हाईकमान पर राज्य प्रमुख बी वाई विजयेंद्र, जो पहली बार विधायक बने हैं, को हटाने का दबाव डाल रहा है। विजयेंद्र की सबसे बड़ी पहचान यह है कि वह बीजेपी के कर्नाटक के सबसे बड़े नेता, पूर्व मुख्यमंत्री बी वाई येदियुरप्पा के बेटे हैं।
दरअसल, जब बीजेपी पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से हार गई थी, जिसका एक कारण येदियुरप्पा की बिना बताई बगावत भी थी, तो हाई कमान ने दूसरे बीजेपी नेताओं के कड़े विरोध के बावजूद उनके बेटे को राज्य इकाई का अध्यक्ष बनाकर बागी नेता से समझौता कर लिया था। हालांकि इस कदम से येदियुरप्पा शायद खुश हो गए हों, लेकिन तब से पार्टी में असंतोष पनप रहा है और विजयेंद्र के विरोधी उन्हें हटाने के लिए अक्सर दिल्ली के चक्कर लगा रहे हैं।
हाल ही में वे फिर से दिल्ली में थे और पार्टी के सीनियर फैसले लेने वालों से मिलकर राज्य अध्यक्ष के खिलाफ शिकायतों की एक लंबी लिस्ट सौंपी। कांग्रेस को लगता है कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उनके डिप्टी डी के शिवकुमार के बीच चल रही लड़ाई में कुछ समय के लिए सुलह करा दी है। लेकिन बीजेपी के अंदरूनी झगड़े जारी हैं। बीजेपी की अंदरूनी समस्याओं का एक कारण यह भी है कि पार्टी ने कांग्रेस सरकार को गिराने के लिए एक और ऑपरेशन लोटस की कोशिश नहीं की, जो फूट से बस एक कदम दूर है। विडंबना यह है कि कांग्रेस सरकार बीजेपी की वजह से अपना पूरा पांच साल का कार्यकाल पूरा कर सकती है अब देखने यह है कि शह और मात के बीच इस खेल में कौन कब बाजी मारता है, जवाब समय ही देगा।
बिहार में कांग्रेस-राजद में खुलेआम जूतमपैजार
हाल ही में बिहार चुनावों में महागठबंधन की शर्मनाक हार के बाद बिहार में राजद-कांग्रेस गठबंधन में मुश्किलें जारी हैं। अब दोनों पक्ष हार के लिए एक-दूसरे को खुलेआम दोषी ठहरा रहे हैं और कांग्रेस और राजद नेता लगभग रोज़ाना एक-दूसरे पर ताने कस रहे हैं। दरअसल, राजद के प्रदेश अध्यक्ष मंगनी मंडल ने तो कांग्रेस से यहां तक कह दिया है कि अगर वह चाहे तो गठबंधन छोड़ सकती है। दिलचस्प बात यह है कि हालांकि कांग्रेस और राजद दोनों इंडिया ब्लॉक का हिस्सा हैं, फिर भी राज्य कांग्रेस नेता यह कहते घूम रहे हैं कि उनका गठबंधन सिर्फ विधानसभा चुनाव के लिए था। खास बात यह है कि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव दोनों चुप हैं जबकि उनके नेता खुलेआम लड़ रहे हैं। बिहार में बीजेपी के लिए अपने विरोधियों के बीच इस बदसूरत झगड़े से बेहतर कुछ नहीं हो सकता।