फिर भारी बरसात बनी आफत...
कई सालों से हम देखते आ रहे हैं कि मानसून शुरू होते ही आफत आ जाती है। कहीं बाढ़, कहीं जल भराव। इस बार तो हद ही हो गई। कहते हैं न कि जब अपने पर बीतती है तब मालूम पड़ता है। घर और आफिस में बैठकर तो हम अखबार, टीवी से न्यूज देख लेते हैं तो हमें लगता है बरसात हो रही है तो कुछ न कुछ तो होगा। जब मैं 9 तारीख को मौर्य होटल में एक फंक्शन अटैंड कर रही थी वहां खाना था परन्तु खाया नहीं कि बच्चों के साथ खाऊंगी, 8 बजे होटल से बाहर निकली तो देखा इतना ट्रैफिक जाम, बरसात हो रही थी, गाड़ी चल ही नहीं रही थी। भूख से बुरा हाल हो रहा था। बेटे बार-बार फोन कर रहे थे, कहां पहुंचे। जब उन्हें पता चला कि मैं ऐसे ट्रैफिक में फंसी हूं तो आदित्य ने कहा कि मम्मी फोन पर रील देखो, समय पास होगा। आकाश फोन कर रहा था कि आपका इंतजार कर रहे हैं। कभी अर्जुन फोन कर रहा था। सब जगह पानी ही पानी था, जबरदस्त ट्रैफिक जाम था। सबसे अफसोस की बात थी कि कोई भी ट्रैफिक पुलिस वाला नहीं था कि गाड़ियों को सिस्टम से निकाल सके। एम्बुलैंस फंसी हुई थी, बेचारा ड्राइवर सायरन बजा रहा था। रास्ता साफ हो तो आगे बढ़ें। जल्दी-जल्दी में आगे जाने की होड़ में गाड़ियां फंस रही थीं। पंजाबी बाग पुल पर 1 घंटा फंसी रही। फिर अपने आफिस के सामने यू टर्न पर 40 मिनट लग गए, वो भी हमारे सिक्योरिटी वालों ने बड़ी मुश्किल से रास्ता बनाया। सामने बिल्डिंग दिख रही थी और गूगल मैप 40 मिनट दिखा रहा था। आखिरकार साढ़े 11 बजे में घर पहुंची, बच्चों और मैंने चैन की सांस ली। खाना साढ़े 11 बजे खाया, 1 बजे तक सो नहीं सकी।
घर आकर मन ही मन सोच रही थी कि कई ऐसे लोग फंसे होंगे जिनको बाथरूम जाने की जल्दी होगी, कोई बीमार होगा, कोई बुजुर्ग होगा। रात को नींद भी नहीं आ रही थी। सुबह जैसे ही अखबार खोला सामने खबर थी, एक युवक साइकिल पर था वो गड्ढे में गिर गया, उसका साथी बहुत चिल्लाया परन्तु किसी ने नहीं सुना। गौरव नाम का लड़का जो बिहार से दिल्ली घूमने आया था अपने चाचा के पास। सड़क पर पानी लबालब भरा होने की वजह से पूरी तरह ट्रैफिक जाम था। उसे अंदाजा नहीं था कि सड़क के किनारे फुटपाथ पर खुले नाले का मैन होल है आैर उस पर पत्थर नहीं लगा हुआ था, उसमें गिर गया और लाश कई घंटों बाद मिली। मेरी ममता तड़फ उठी। किसी मां का लाल प्रशासन की लापरवाही से संसार से चला गया।
क्या देश में महानगरों का बुनियादी ढांचा चरमर्रा रहा है? इस सवाल का उत्तर कुछ घंटों की बारिश में डूबते महानगरों को देखकर मिल रहा है। कुछ दशक पहले मानसून की वर्षा रिमझिम-रिमझिम पूरा सप्ताह होती थी, तब जल भराव नहीं होता था लेकिन आज वर्षा का पैटर्न बदल चुका है। कुछ घंटों की वर्षा से ही जलथल एक हो जाता है। बड़े-बड़े वादों पर आधारित प्रशासनिक व्यवस्था भी बदल गई है और जो लोग बारिश की वजह से जाम में घंटों फंसते हैं, उनकी तकलीफ और दर्द को समझना जरूरी है। महानगर और छोटे-बड़े शहर झील बन जाते हैं, कारें तैरने लगती हैं। दरअसल इसका मुख्य कारण लगातार आबादी का बढ़ता बोझ और शहरों का बेतरतीब और अनियंत्रित विकास है। कितने ही फ्लाईआेवर बनाओ, कितनी ही सड़कें बनाओ, कितने ही एलिवेटिड रोड बनाओ, सब कुछ समय बाद संकरे नजर आते हैं। सड़कों के किनारे अवैध अतिक्रमण और िनर्माण, अनधिकृत काॅलोनियों का विकास आैर बढ़ती आबादी के अनुरूप बुनियादी ढांचे का सुदृढ़ीकरण और विस्तार नहीं हो पाने से जल निकासी की कोई व्यवस्था बनी ही नहीं।
दिल्ली के अंदर और गुरुग्राम तक पांच-पांच घंटे जाम में फंस जाते हैं तो राजनीतिक दोषारोपण से काम नहीं चलेगा, यह बात हमारे नेताओं को समझनी होगी। लगभग एक दशक पहले जब िदल्ली और गुरुग्राम में जलभराव हो गया काॅलोनियों में जहां झीलों के नजारे थे वहां दिल्ली-गुरुग्राम हाइवे पर समुद्र का नजारा था। जाहिर सी बात है उस वक्त शाम 6 बजे के बाद जितने भी लोग अपने कार्यालयों से घरों की ओर निकले वे 5-5, 6-6 घंटे बारिश के बाद उत्पन्न कठिन हालात के चलते जाम में फंस गए। पानी की निकासी का कोई बंदोबस्त नहीं था। दिल्ली जैसे शहर जो कि एक राजधानी है और दूसरी तरफ गुरुग्राम जैसा शहर जो अपने आपमें एक बड़ी औद्योगिक नगरी के रूप में पहचान बना रहा है। आज की तारीख में लोग उदाहरण देते हैं कि गुरुग्राम की सड़कों पर गड्ढे हैं या गड्ढों में सड़क। जिन गड्ढों की प्रशासन परवाह नहीं करता, बारिश के दिनों में वही गड्ढे एक बड़ी चुनौती के रूप में उभरते हैं। सच बात तो यह है कि सुचारू व्यवस्था के लिए समय पर काम किया जाना चाहिए। हमारे यहां मुसीबत आने पर हल ढूंढा जाता है, यह परंपरा गलत है। असली समाधान तो यह है कि समस्या से पहले ही उपाय कर लिए जायें। प्रशासन ने जो भी काम किया उसकी जानकारी एक अपडेट के रूप में पब्लिक को दी जानी चाहिए। विभाग को चलाने वाली अफसरशाही हो या जिस मंत्री के अंतर्गत ये विभाग आते हों वे बताये कि किस-किस क्षेत्र में कितने जल निकासी पंप तैयार हैं। इतना ही नहीं पुराना इंफ्रास्टेक्चर चरमरा रहा है। वर्षों वर्ष पुराने पाइप जंग लग-लगकर खराब हो चुके हैं। सीवरेज लाइन बदलने वाली है। सभी सीवरेज और छोटी नालियां और नालों की सफाई व्यवस्था अर्थात गाद निकालने की बातें तो खत्म हो चुकी हैं। ये अकेली राजधानी दिल्ली, गुरुग्राम या एनसीआर के किसी हिस्से की कहानी नहीं, पूरे देश की यही व्यवस्था है।
हालात बिगड़ने और बारिश के बाद स्थिति गंभीर होने के कारण कई और भी हैं। दरअसल पूरे देश में मजबूत इंफ्रास्टेक्चर नहीं है। जिसका नवीनीकरण न केवल जरूरी है बल्कि समय रहते इसका निरीक्षण भी हर मानसून से पहले किया जाना चाहिए। कम बारिश से तो सीवरेज या भूमिगत निकासी सिस्टम का पता नहीं चलता। बारिश के बाद ही व्यवस्था का पता लगता है कि प्रशासन किस जमीन पर है। केवल वादे करने से कुछ नहीं होता, बल्कि अफसरों को समय-समय पर समीक्षा करनी चाहिए और खुद हर मंत्री को इस बारे में जहां जल भराव होता है उसका निरीक्षण करना चाहिए। मेरा बड़ा प्रश्न तो यह है कि दिल्ली, गुरुग्राम, फरीदाबाद, गाजियाबाद या नोएडा तक आने-जाने वाले लोग जलभराव की वजह से पांच-पांच, छह-छह घंटे जाम में क्यों फंसंे? ठोस व्यवस्था करने का समय आ गया है। यह काम प्रशासन ने कैसे करना है, यह देखना प्रशासन का काम है। पहले बरसात होती थी तो लोग खुशियां मनाते थे, घरों में खीर-पूड़े और गर्म-गर्म पकौड़ों का आनंद उठाते थे मगर अब बरसात से डर लगने लगा है।