पहाड़ों की संवेदनशीलता को गंभीरता से समझने की ज़रूरत
पहाड़ों पर बढ़ते पर्यटकों से ट्रैफिक जाम की समस्या…
उत्तर भारत में गर्मी बढ़ते ही लोग प्रचंड गर्मी और उमस से निजात पाने के लिए पहाड़ की ओर रुख करना शुरू कर देते हैं। इस बार भी गर्मी अपने चरम पर है और उत्तर भारत समेत देश के कई हिस्सों में प्रचंड गर्मी पड़ रही है। ऐसे में लोगों का पहाड़ पर जाने का सिलसिला जारी है। पहाड़ भले ही पर्यटकों से गुलजार हैं लेकिन भारी संख्या में अपने वाहनों के साथ पहुंचे इन पर्यटकों ने पहाड़ों पर ट्रैफिक जाम को बढ़ा दिया है। उत्तराखंड में इस समय चारधाम यात्रा भी अपने पीक पर है जिससे यातायात व्यवस्था और अधिक जटिल हो गई है। कमोबेश ऐसे ही हालात हिमाचल प्रदेश के भी हैं।
शायद इन पर्यटकों को इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं कि जो मजा लेने के लिए वे पहाड़ों पर जा रहे हैं वह उनके लिए सजा भी बन सकता है। पहले से ही बोझ झेल रहे पहाड़ों पर यह भीड़ तबाही भी ला सकती है। पहाड़ लगातार इशारा कर रहे हैं, खुलेआम संकेत दे रहे हैं और कई बार सीधी चेतावनी भी, फिर भी वीकेंड पर शिमला से लेकर मसूरी तक और मनाली से लेकर हरिद्वार, ऋषिकेश, देहरादून और नैनीताल तक पर्यटकों और उनके वाहनों का जाम लगा है। एक घंटे का सफर 6 से 8 घंटों में हो रहा है। इसके बाद भी पहाड़ों पर जाने वालों की संख्या घटने की बजाय लगातार बढ़ ही रही है।
यह स्थिति किसी एक पहाड़ी शहर या राज्य की नहीं है बल्कि देश के तमाम पर्वतीय राज्य लोगों और वाहनों की बेलगाम भीड़ से घायल हो रहे हैं। धूल, धुआं, कचरा, शोर और भीड़ का दबाव पहाड़ों का सीना घायल कर रहे हैं। उत्तराखंड और हिमाचल के टूरिस्ट स्पॉट डेंजर जोन में हैं। खास तौर से मनाली, शिमला और नैनीताल ऐसे इलाके हैं जहां पहले से क्षमता से अधिक बोझ है। साल 2023 की शुरुआत में जब जोशीमठ को धंसने की वजह से खाली कराया जा रहा था तब इस बाबत कई चेतावनियां जारी भी की गई थी। इनमें बताया गया था कि कैसे पहाड़ों पर लगातार बढ़ रहा बोझ खतरा बन सकता है। समय-समय पर पहाड़ों में आने वाली आपदा इन्हीं खतरों का संकेत मानी जा रही है।
सबसे खास बात ये है कि हिमाचल के सबसे बड़े टूरिस्ट स्पॉट शिमला और मनाली सबसे ज्यादा खतरे में हैं। हिमाचल प्रदेश में शिमला को 25 हजार की आबादी के लिए बसाया गया था। अब यहां तकरीबन ढाई लाख लोग रहते हैं, सबसे खास बात ये है कि यहां हजारों की संख्या में पहुंचे पर्यटक इस बोझ को कई गुना बढ़ा देते हैं। इसी का परिणाम है कि पहाड़ों पर बसा शिमला धीरे-धीरे धंस रहा है। यहां का लक्कड़ बाजार, लद्दाखी मोहल्ला समेत शिमला का एक चौथाई हिस्सा धंसाव वाले एरिया में आ चुका है। कई भूवैज्ञानिक सर्वे कर इसे असुरक्षित घोषित कर चुके हैं। भूवैज्ञानिक और एनविरोनिक्स ट्रस्ट श्रीधर राममूर्ति ने एक इंटरव्यू में कहा था कि यहां बढ़ रहा निर्माण और नाजुक भूविज्ञान शिमला को धीरे-धीरे धंसा रहा है।
हालात इतने गंभीर है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को 2017 में ही शिमला के मुख्य और हरित क्षेत्रों में किसी भी तरह के निर्माण पर रोक लगा चुका है। हिमाचल का मनाली भी डेंजर जोन में है। यहां न तो जल निकासी की व्यवस्था है और न ही सीवरेज प्रणाली है। ऐसे में पहाड़ों पर लगातार बढ़ रही भीड़ से यहां पानी का रिसाव बढ़ सकता है जो जोशीमठ जैसी आपदा का कारण बन सकता है। उत्तराखंड का खूबसूरत शहर नैनीताल धीरे-धीरे दरक रहा है। खासकर बारिश के मौसम में यहां भूस्खलन आम बात है। खास तौर से बलियानाला के आसपास का इलाका ज्यादा प्रभावित है। यहां 1867 में ही अंग्रेजों ने निर्माण प्रतिबंध लगा दिया था लेकिन तब से यहां की आबादी कई गुना बढ़ चुकी है। बताया जाता है कि नैनीताल को 20 हजार लोगों की क्षमता के लिए बसाया गया था लेकिन अब यहां लाखों की संख्या में लोग हैं।
इसके अलावा हजारों पर्यटक इस बोझ को और बढ़ा देते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार यदि वाहनों के दबाव को कम नहीं किया गया तो इससे माल रोड सहित अन्य सड़कों पर भूधंसाव व दरारें आ सकती हैं। बढ़ते मानवीय हस्तक्षेप का दुष्प्रभाव झील के साथ ही शहर के प्राकृतिक जल स्रोतों पर भी पड़ा है। एक रिपोर्ट में ये बताया गया था कि मनाली में 1980 में सिर्फ 10 होटल हुआ करते थे लेकिन अब इनकी संख्या ढाई हजार से ज्यादा हो चुकी है। पहाड़ पर बन रही सड़कें, पहाड़ तोड़ने में होने वाले विस्फोट’, नदियों में सड़क निर्माण का मलबा, पहाड़ों की गलत तरीके से कटाई, पहाड़ के नीचे लंबे सुरंग प्रोजेक्ट, पहाड़ी शहरों पर बढ़ती आबादी, पहाड़ में घर निर्माण की नई शैली, लगातार लगते जा रहे बड़े-बड़े हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट, पर्यटन और पर्यटकों का बढ़ता बोझ, क्लाइमेट चेंज, टूटते ग्लेशियर और कम समय में अचानक होने वाली ज्यादा बारिश पहाड़ों के पोर-पोर को तोड़ रही है।
विशेषज्ञों का कहना है कि अनियोजित निर्माण और ट्रैफिक इसका कारण है। हालांकि,पहाड़ों पर बढ़ते दबाव को कम करने के लिए सरकार ने सरकारी वाहनों को इलेक्ट्रिक करने की योजना बनाई है। इसी तरह शिमला में मल्टी-स्टोरी पार्किंग बनाई गई है। नैनीताल के नजदीक भवाली से कैंची धाम के बीच शटल सेवा शुरू की गई है ताकि पर्यटक अपनी गाड़ी पार्क करके शटल के जरिए मंदिर तक पहुंच सकें। देहरादून में ‘ऑपरेशन लगाम’ नामक विशेष अभियान शुरू किया गया है जिसका मकसद ट्रैफिक नियमों का पालन करवाना और अव्यवस्था को रोकना है। सरकार को पर्यटन से कमाई करने के साथ ही ऐसी व्यवस्था भी करनी चाहिए कि गर्मी के सीजन में पहाड़ की भौगोलिक व्यवस्था बनी रहे। कोई भी समस्या सबसे ख़तरनाक तब है जब आम लोग इसे समस्या माने ही ना।
पहाड़ों को चुनौती देना मानवता के लिए ठीक नहीं है। इसकी संवेदनशीलता को गम्भीरता से समझने की ज़रूरत है। कुल मिलाकर पहाड़ी शहरों में वाहनों की बढ़ती संख्या और जनसंख्या को तत्काल रोकना जरूरी है अन्यथा पहाड़ों पर दबाव बढ़ता जाएगा। यह भूस्खलन, प्रदूषण, वन कटाई और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को और तीव्र कर रहा है। अगर इसे नियंत्रित न किया गया तो परिणाम भयावह होंगे।