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चांद पर है पानी! Chandrayaan-1 के डेटा ने किया बड़ा खुलासा, जानिए क्या है पूरी रिपोर्ट...

ये इलेक्ट्रॉन पृथ्वी की प्लाज्मा शीट में हैं और यही शीट मौसमी प्रक्रिया के लिए जिम्मेदार होती है यानी इनके होने से धरती के मौसम में भी बदलाव होता है। ऐसे में वैज्ञानिकों का दावा है कि ये हाई एनर्जी इलेक्ट्रॉन चांद पर मौजूद चट्टानों और खनिजों को तोड़ या घोल रहे है।

02:35 PM Sep 16, 2023 IST | Khushboo Sharma

ये इलेक्ट्रॉन पृथ्वी की प्लाज्मा शीट में हैं और यही शीट मौसमी प्रक्रिया के लिए जिम्मेदार होती है यानी इनके होने से धरती के मौसम में भी बदलाव होता है। ऐसे में वैज्ञानिकों का दावा है कि ये हाई एनर्जी इलेक्ट्रॉन चांद पर मौजूद चट्टानों और खनिजों को तोड़ या घोल रहे है।

चांद पर है पानी  chandrayaan 1 के डेटा ने किया बड़ा खुलासा  जानिए क्या है पूरी रिपोर्ट
चांद पर पानी की संभावना को लेकर हमेशा ही कयास लगाए जाते रहे है। लेकिन अब वैज्ञानिकों ने चांद पर पानी की खोज को लेकर बड़ा दावा किया हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार चांद पर पानी है, जो पृथ्वी से ही बनता है। उन्होंने पाया कि पृथ्वी से हाई एनर्जी इलेक्ट्रॉन चंद्रमा पर पानी बनाने में सहायता कर सकते हैं।
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चंद्रयान-1 के डेटा से खुलासा
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हवाई यूनिर्वसिटी के वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-1 के भेजे डेटा की रिचर्स कर दावा किया हैं कि धरती के इलेक्ट्रॉन चांद पर पानी बनाने में मदद करते है। वैज्ञानिकों ने कहा है कि धरती के हाई एनर्जी वाले इलेक्ट्रॉन चांद पर पानी बना रहे हैं। ये इलेक्ट्रॉन पृथ्वी की प्लाज्मा शीट में हैं और यही शीट मौसमी प्रक्रिया के लिए जिम्मेदार होती है यानी इनके होने से धरती के मौसम में भी बदलाव होता है। ऐसे में वैज्ञानिकों का दावा है कि ये हाई एनर्जी इलेक्ट्रॉन चांद पर मौजूद चट्टानों और खनिजों को तोड़ या घोल रहे है।
कैसा बना चांद पर पानी?
मालूम हो, चांद पर 14 दिन रात और 14 दिन उजाला रहता है। ऐसे में जब वहां अंधेरा होता है तो सोलर विंड की बौछार होती है। इस दौरान प्रोटॉन जैसे हाई एनर्जी पार्टिकल्स सौर हवाओं के साथ चांद की सतह पर बिखर जाते है, ये चांद पर पानी बनाने का प्राथमिक तरीका है। वैज्ञानिकों ने चंद्रमा के पृथ्वी के मैग्नेटोटेल से गुजरने के दौरान वहां के मौसम में होने वाले बदलावों की स्टडी की है। बता दें, मैग्नेटोटेल एक ऐसा क्षेत्र है जो चंद्रमा को सौर हवा से लगभग पूरी तरह से बचाता है, लेकिन सूर्य के प्रकाश फोटॉन से नहीं। वहीं मैग्नेटोटेल में इलेक्ट्रॉन वाली प्लाज्मा शीट होती है। मालूम हो, इस शीट में मौजूद ऑक्सिजन के कारण ही चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्र में लोहे को जंग लग रही है।
बर्फ को समझने में मदद
वैज्ञानिकों का दावा है कि 2008 में भेजे गए चंद्रयान-1 के डेटा से चांद पर हमेशा अंधेरे में रहने वाले क्षेत्रों में पहले बर्फ के रूप में खोजे जा चुके पानी की शुरूआत को समझने में मदद मिल सकती है। वहीं, फ्यूचर में इंसानी मिशन की खातिर पानी की खोज एक बड़ी उपलब्धि है। क्योंकि वैज्ञानिक चांद पर रिचर्स कर  रहे हैं कि वहां जाकर इंसान बस सकता है या नहीं।
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Khushboo Sharma

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