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एक था हिरण...

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07:33 PM Apr 08, 2018 IST | Desk Team

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भारत देश अगर दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है तो यहां खूबियां भी बहुत हैं। यह बात अलग है कि लोग बुराइयां ढूंढ़ते हैं लेकिन अच्छाइयों को नजरंदाज कर देते हैं। भारत के टॉप सिलेब्रिटी बॉलीवुड स्टार सलमान खान को जब काला हिरण के शिकार में 5 साल की सजा तीन दिन पहले सुनाई गई तो पूरे देश में हड़कंप मच गया। कई लोगों ने अपनी भावनाएं अपने-अपने ढंग से शेयर की, जो यह बताता है कि लोग खास मामलों में कितने ज्यादा जागरुक हैं।

कुल मिलाकर एक निष्कर्ष यही निकलता है कि इस देश में लोकतंत्र की यह सबसे बड़ी खूबी है कि कोई कितना भी बड़ा स्टार क्यों न हो अगर उसने कोई गलत काम किया है तो वह कानून के फंदे से कभी बच नहीं सकता। आप इसे एक नजरिया कहिए या खास अंदाज परंतु यह सच है कि इस देश में आदमी की हत्या करने वाला बच जाता है, लेकिन एक हिरण की जान लेने वाला बच नहीं सकता और उसे सजा भुगतनी पड़ती है।

शायद इसलिए कि इंसान की हत्या में शामिल लोग अपने रसूख के दम पर बोलने वालों के मुंह बंद करा देते हैं, इस लिहाज से अगर हिरण बोल नहीं सकता, उसके रिश्तेदार और साथी अदालत में किसी रसूख वाले के दबाव में नहीं आ सकते और गवाही भी नहीं दे सकते तो यकीनन इस महान सिलेब्रिटी को जो सजा मिली है, उसके लिए हमारे न्यायपालिका के जज साहब के फैसले की जितनी प्रशंसा की जाए वह कम है। यह सिक्के का एक पहलू था लेकिन दूसरा पहलू चौंकाने वाला रहा जब आधी रात को इसी कोर्ट के 87 जजों का ट्रांसफर कर दिया गया और अगले दिन जज साहब ने बॉलीवुड स्टार को महज 50 हजार के मुचलके पर जमानत दे दी।

सिलेब्रिटी और आम आदमी में यही एक फर्क है। शायद इसी वजह से लोग कहने लगे हैं कि केस में जितनी लंबी सुनवाई चलेगी तो न्याय नहीं मिल पाएगा। ‘जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाइड’ वरना इसी कोर्ट में चार दिन पहले जज साहब ने एक नजीर स्थापित की थी। जज साहब ने अपने दंडादेश में साफ कहा साफ कहा था कि ”अभियुक्त एक बहुचर्चित कलाकार है और उनके कार्यों को लेकर जनता उन्हें आदर्श मानती है, लेकिन उन्होंने दो हिरणों का शिकार किया और उनका हिट एंड रन केस भी कोई भूला नहीं है।

उन्होंने प्रकृति के संतुलन को नुकसान पहुंचाया, लिहाजा रहम की उम्मीद न की जाए। महज चार दिन बाद पांच साल की सजा पाने वाला सिनेस्टार जमानत पाने में सफल रहा।  हम जिन खूबियों की बात कर रहे थे, हमारे लोकतंत्र में लोग उन्हें समझें और काला हिरण शिकार मामले में हुए फैसले को अपने जीवन में उतारें। यह भी तो सच है कि हमारे सिलेब्रिटी कानून को बड़े हल्के से लेते हैं। लोग इन सिलेब्रिटी को अगर महान समझते हैं तो ये महान लोग समझते हैं कि हम कुछ भी कर लें, हमें कोई कुछ कहने वाला नहीं है।

अपने जयपुर प्रवास के दौरान जब कभी लोगबाग मुझसे मिलने आते थे तो वो बिश्नोई समुदाय की चर्चा जरूर करते थे कि इसके लोग किस तरह से पशुओं और पक्षियों के प्रति स्नेह रखते हैं। एक सिलेब्रिटी के काला हिरण मामले में बड़ी ​विपरीत परिस्थितियों में बिश्नोई समाज डटा रहा और उन्होंने कोर्ट में प्रकृति और प्रकृति से जुड़े पशु-पक्षियों की रक्षा के लिए जो संकल्प ले रखा था, उसे निभाया भी। उन्होंने हमारे राजनेताओं को यह संदेश दे दिया कि हम सिर्फ नारों और हवाई बातों में नहीं चलते बल्कि जो कहते हैं वो करके दिखाते हैं।

बिश्नोई समाज का एक स्टैंड सचमुच राजनीति और सामाजिक जीवन में अन्य सिलेब्रिटी लोगों के लिए एक प्रेरणा बन सकता था लेकिन तारीख पर तारीख की परंपरा ने सिलेब्रिटी को बचा लिया। हमारा यह मानना है कि सिलेब्रिटी लोगों की जवाबदेही इस दुनिया में सबसे ज्यादा बनती है, लेकिन सिलेब्रिटी यह समझते हैं कि दुनिया हमारी दीवानी है, हम जो चाहें कर लें। यहां तक कि सिलेब्रिटी लोग जब हमारे यहां टेढ़े-मेढ़े बयान देते हैं तो सहिष्णुता और असहिष्णुता को लेकर पूरे देश में राजनीतिक युद्ध छिड़ जाता है।

गलती करने वाले लोग अब इस फैसले को एक नजीर की तरह लेंगे तो बाकी सिलेब्रिटी के लिए एक संदेश जाएगा लेकिन जब सजा घोषित होने के बाद भी जमानत मिल जाएगी तो इसे क्या कहेंगे? वैसे भी सलमान खान देश में सितंबर 1998 में इसी काले हिरण के शिकार को लेकर 5 साल की सजा पा चुके थे, लेकिन हाईकोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया। इसके बाद राजस्थान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दी। आर्म एक्ट के तहत सलमान खान ने नियमों का पालन नहीं किया और जिस राइफल से हिरणों का शिकार किया, उसका लाइसेंस भी खत्म हो चुका था। इतना ही नहीं 2002 के सितंबर में हिट एंड रन केस में सलमान को निचली अदालत ने दोषी मानते हुए 5 साल की सजा सुनाई थी, लेकिन वह फिर हाईकोर्ट से बरी हो गए। अभी भी यह मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है।

काश! देश के लाखों केस चाहे वो नारी की इज्जत से जुड़े हैं या आर्थिक अपराध हैं या फिर अन्य किस्म के गंभीर क्राइम हैं, तारीख पर तारीख की परंपरा खत्म होनी चाहिए। नई परंपरा तो इंसाफ दिए जाने की है। एक नई तारीख लिखी जाने की है। इंसाफ की दीवार पर कानून ने जो इबारत लिखी उसे पढ़ने की बजाए सिलेब्रिटी ने उसमें सुराख ढूंढ लिया। यह उसका (लोकतांत्रिक) अधिकार था। पर सजा घोषित होने के बाद अभियुक्त को जमानत मिल जाएगी तो बीस साल तक चलने वाले केस में कितना दम रह जाएगा इसका जवाब न काला हिरण देगा लेकिन रसूखदारों ने सचमुच जवाब दे दिया है। यह भी इसी लोकतंत्र के सिक्के का एक दूसरा पहलू है।

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