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दुनिया में मचेगा हाहाकार

यूक्रेन और रूस के युद्ध के मंजर देखकर पिछले आठ दिन से सोच रहा हूं कि युद्ध खत्म होने की या युद्ध विराम की खबर आएगी लेकिन सुबह उठते ही निराशा ही हाथ लगती है।

02:08 AM Mar 04, 2022 IST | Aditya Chopra

यूक्रेन और रूस के युद्ध के मंजर देखकर पिछले आठ दिन से सोच रहा हूं कि युद्ध खत्म होने की या युद्ध विराम की खबर आएगी लेकिन सुबह उठते ही निराशा ही हाथ लगती है।

यूक्रेन और रूस के युद्ध के मंजर देखकर पिछले आठ दिन से सोच रहा हूं कि युद्ध खत्म होने की या युद्ध विराम की खबर आएगी लेकिन सुबह उठते ही निराशा ही हाथ लगती है। रोज गगनचुम्बी इमारतों काे जलते और शहरों काे खंडहरों में तब्दील होते देख रहा हूं। गोपाल दास नीरज सेक्सेना की पंक्तियां याद आ रही हैं-
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‘‘मैं सोच रहा हूं अगर तीसरा युद्ध हुआ तो
इस नई सुबह की नई फसल का क्या होगा।
मैं सोच रहा हूं गर जमीं पर उगा खून
इस रंगमहल की चहल-पहल का क्या होगा।
चाणक्य, मार्क्स, एंजिल, लेनिन, गांधी, सुभाष
सदियां जिनकी आवाजों को दुहराती हैं।
तुलसी, वर्जिल, होमर, गोर्की  शाह मिल्टन
चट्टानें जिनके गीत अभी गाती हैं
मैं सोच रहा हूं अगर तीसरा युद्ध हुआ तो…’’
युद्ध के परिणाम भयंकर होंगे यह तो सर्वविदित है। कोरोना महामारी में कमजोर वैश्विक व्यवस्था को जिस संघर्ष की जरूरत नहीं थी, वह आखिरकार शुरू हो गया है। यूक्रेन या रूस के हमले और जवाब में पश्चिम की ओर से प्रतिबंध से पूरी दुनिया मंंदी के दौर से घिर सकती है। मुद्रास्फीति तो बढ़ ही रही है और शेयर बाजारों में भारी गिरावट का दौर तो चल रहा है। सबसे बड़ा संकट जो दुनिया के सामने खड़ा होने वाला है वह ऊर्जा संकट। अमेरिका और पश्चिमी देश कभी किसी देश पर तो कभी किसी देश पर आर्थिक प्रतिबंधों को हथियार बनाकर इस्तेमाल करते रहे हैं तो क्या उन देशों ने घास की रोटी बनाकर खाना शुरू कर दिया है। 
अटल बिहारी वाजपेयी शासन में जब भारत ने पोखरण में परमाणु धमाके किए थे तब भी अमेरिका और अन्य देशों ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे तो क्या भारत घुटनों के बल चलने लगा था। आर्थिक प्रतिबंधों का खामियाजा पूरी दुनिया को भुगतना पड़ेगा। यूरोपीय देशों को मिलने वाली नेचुरल गैस रूस से ही ​मिलती है। यह पाइप लाइन के जरिये बेलारूस और  पोलैंड के रास्ते जर्मनी पहुंचती है। एक पाइप लाइन सीधा र्जमनी पहुंचती है और दूसरी यूक्रेन के रास्ते जर्मनी तक पहुंचती है। अगर प्रतिबंधों को विस्तार दिया गया तो यूक्रेन से आने वाली पाइप लाइन पर रूस रोक लगा सकता है। अगर ऐसा होता है तो तेल और प्राकृतिक गैस की कीमतें आसमान पर चढ़ जाएंगी। सप्लाई बाधित होने की आशंका से ही इनकी कीमतें काफी बढ़ चुकी हैं। ऊर्जा संकट पैदा हुआ तो पूरी दुनिया में हाहाकार मचेगा। यूक्रेन के रास्ते ही स्लोवाकिया, हंगरी और चेक रिपब्लिक तक रूस का तेल पहुंचता है। रूस पैट्रोलियम का दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है आैर प्राकृतिक गैस का प्रमुख निर्यातक है। ऊर्जा की कीमतें बेहताशा बढ़ीं तो यूरोप का पुनरुद्धार धीमा हो सकता है। यूरोप में गैस की कीमतें पहले से ही उपभोक्ताओं को परेशान कर रही हैं।
दुनिया में गेहूं संकट भी खड़ा हो सकता है। अगर ब्लैक सी रीजन से गेहूं के व्यापार में किसी भी तरह से बाधा पड़ती है तो इसका असर व्यापक होगा। रूस, यूक्रेन, कजाकिस्तान और रोमानिया की गिनती गेहूं के बड़े निर्यातकों में होती है। अगर निर्यात बाधित हुआ तो फिर छोटे देशों के सामने भूख से मरने की नौबत आ जाएगी। अमेरिकी और यूरोपीय प्रतिबंधों के बावजूद रूस ने अभी तेल, प्राकृतिक गैस की सप्लाई बंद नहीं की है। रूस और यूक्रेन दुनिया के 29 प्रतिशत गेहूं का निर्यात करते हैं। दोनों देशों के खेत करोड़ों लोगों का पेट भरते हैं। इसके अलावा रूस दुनिया की जरूरत का दस प्रतिशत तांबा और अल्युमीनियम सप्लाई करता है। इनकी भी कीमतें बढ़ जाएंगी। इसमें कोई संदेह नहीं कि रूस को आर्थिक प्रतिबंधों के कारण काफी नुक्सान झेलना पड़ेगा। उसके बैंकों को तगड़ा खामियाजा भुगतना पड़ेगा लेकिन नुक्सान से पूरी दुनिया नहीं बच पाएगी। रूस के यूक्रेन की राजधानी कीव पर कब्जा होते ही दुनिया में राजनीतिक अस्थिरता फैलेगी। कई देश अपनी सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने में जुट जाएंगे। दुनिया भर में वर्ष 2021 से ही माइक्रोचिप्स की कमी देखने को मिली है। इसमें आटोमोबाइल और स्मार्टफोन इंडस्ट्री काफी ज्यादा प्रभावित रही। उम्मीद थी ​कि यह समस्या इस वर्ष हल हो जाएगी लेकिन भू-राजनीतिक संकट ने उम्मीदों पर पानी फेर दिया। अमेरिका रूस की माइक्रोचिप्स की सप्लाई बंद करता है तो संकट और  गहरा जाएगा।
रूस और यूक्रेन दोनों ही नियोन, पैलेडियम और प्लैटिनम के प्रमुख निर्यातक हैं। आर्थिक विशेषज्ञ दुनिया भर में भयानक मंदी आने की आशंकाएं व्यक्त कर रहे हैं। विदेशी मुद्रा बाजार में अनिश्चितता का माहौल है। युद्ध के प्रभाव से भारत भी अछूता नहीं रह सकता। तेल की कीमतें बढ़ने से परिवहन महंगा होगा और हर चीज की कीमतें बढ़ जाएंगी। बेहतर यही होगा कि आर्थिक प्रतिबंधों के चलते पूरी दुनिया को झुलसाने की बजाय वैश्विक शक्तियां रूस की सुरक्षा चिंताओं को दूर करने के लिए कूटनयिक पहल करें। आर्थिक प्रतिबंध संकट का एक मात्र हल नहीं है। पश्चिमी देश भी आर्थिक प्रतिबंधों पर एक राय नहीं हैं क्योंकि फिलहाल गैस के लिए  दूसरा विकल्प नहीं है। समय की जरूरत है कि युुद्ध को रोका जाए। तीसरा विश्व युद्ध हुआ तो विनाश ही होगा।
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