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ये मुकाम ऐसे ही हासिल नहीं हुआ...!

05:30 AM Nov 11, 2025 IST | विजय दर्डा
ये मुकाम

महिला विश्व कप जीतने वाली भारतीय बेटियों ने इतना गौरवान्वित किया है कि सिर गर्व से ऊंचा हो गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब इन बेटियों को हौसला-अफजाई के लिए अपने पास बुलाया तो दिल भाव-विभोर हो उठा। मुझे जय शाह का जज्बा याद आने लगा और भारत में महिला क्रिकेट की शुरुआत करने वाली उन सभी खिलाड़ियों की भी याद हो आई जिन्होंने लंबी जिल्लत और परेशानियां झेलीं लेकिन वे अडिग रहीं। ये जीत उन सभी को मुबारक। हमारे प्रधानमंत्री राजनीति के मंजे हुए खिलाड़ी हैं। विपरीत परिस्थितियों में खेलते हुए उन्होंने यश हासिल किया है। जश्न का आनंद क्या होता है, यह उनसे अच्छा कौन जान सकता है? जब भी हमारे देश के बेटे-बेटियों ने कुछ विशेष उपलब्धि हासिल की है तब उन्होंने हौसला-अफजाई की है। ऐसा नहीं है कि अन्य प्रधानमंत्रियों ने नहीं की है लेकिन मोदी जी ने कभी कोई मौका नहीं छोड़ा। यहां तक कि हार के बाद भी हौसला-अफजाई की है। खेल और खिलाड़ियों के प्रति मोदी जी के सम्मान का एक उदाहरण बताता हूं।

बेटियां जब वर्ल्ड कप लेकर पहुंचीं तो तस्वीर खिंचवाने के दौरान उन्होंने वर्ल्ड कप खुद नहीं पकड़ा बल्कि बेटियों के हाथों में ही रहने दिया। ठीक ऐसा ही दृश्य उस समय भी था जब पुरुष टीम वर्ल्ड कप लेकर उनके पास पहुंची थी।जिस दिन महिला क्रिकेट विश्व कप का फाइनल था, मुझे बार-बार जय शाह याद आ रहे थे क्योंकि अहमदाबाद में मुलाकात के दौरान उन्होंने मुझसे कहा था- ‘आप देखो तो! मैं पुरुष और महिला दोनों का विश्व कप लाता हूं!’ जय शाह हमारे गृह मंत्री और राजनीति के धुरंधर रणनीतिकार अमित शाह के बेटे हैं। एक कहावत है कि बरगद के पेड़ के नीचे बरगद का पौधा पनपना मुश्किल होता है लेकिन जय शाह ने इस कहावत को झूठा साबित किया है।

जब वे भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के चेयरमैन बने तो लोगों ने कहा कि ये कौन? कहां से आ गया? लेकिन जय शाह ने साबित किया कि वे अपने पिता की तरह ही चाणक्य जैसी रणनीति जानते हैं। पूरा परिदृश्य ही बदल दिया। मैं-मैं करने वाले सारे तुर्रम खां को बगल का रास्ता दिखाया और स्पष्ट कर दिया कि बात केवल क्रिकेट की होगी। उनके नेतृत्व संभालने के बाद भारतीय क्रिकेट टीम ने सफलता की जो राह पकड़ी है वह सभी के सामने है लेकिन महिला क्रिकेट को परवान चढ़ाना आसान काम नहीं था। पुरुष और महिला क्रिकेट की स्थिति कुछ ऐसी थी जैसे कि अमीर घर की बारात और गरीब घर की बारात की होती है। खिलाड़ियों को हर तरह की उपेक्षा, जिल्लत और हर तरह के शोषण का शिकार होना पड़ रहा था। खेल के लिए उन्हें वाजिब फीस नहीं मिलती थी। एयर टिकट के लिए परेशानी होती थी।

इनके लिए विशेष बसें भी नहीं होती थीं। एयरपोर्ट पर कतार में खड़ी रहती थीं। मैंने देखा है कि वो दौर कैसा था, इसीलिए यह कहने में हर्ज नहीं है कि बेटियों का ये सफर बहुत कठिन रहा है। मैंने डायना एडुल्जी, मिताली राज से लेकर झूलन गोस्वामी, हरमनप्रीत और स्मृति मंधाना तक को संघर्ष करते देखा है। प्रसंगवश इस बात का जिक्र करना चाहूंगा कि लोकमत समूह ने स्मृति मंधाना की प्रतिभा को काफी पहले पहचान लिया था और गर्व है कि लोकमत महाराष्ट्रीयन ऑफ द इयर अवार्ड से उन्हें नवाजा था।

बहरहाल, जय शाह ने महिला क्रिकेट की स्थितियां बदलने की शुरूआत की है, अब बेटियों को भी पांच सितारा होटल जैसी सुविधाएं मिलने लगी हैं। मैच फीस भी समान ही मिलने लगी है मगर पुरुषों की तुलना में सालाना कॉन्ट्रैक्ट राशि में अभी भी जमीन-आसमान का अंतर है। ये भेदभाव क्यों? उम्मीद है जय शाह इस मामले में भी समरूपता लाएंगे। जय शाह ने भारत में महिला प्रीमियर लीग की शुरूआत की जिससे घरेलू स्तर पर खिलाड़ियों को अपना कौशल निखारने का मौका मिला। महिला क्रिकेट के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने के लिए धनराशि भी उपलब्ध कराई। यह जय शाह का ही नजरिया था कि अक्तूबर 2023 में भारतीय महिला क्रिकेट टीम के कोच के रूप में अमोल मजूमदार को कमान सौंपी गई, तब भी यह कहा गया कि अमोल ने तो कभी अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट ही नहीं खेला तो उन्हें कोच बनाना कहां तक सही है? मगर जय शाह ने इन आलोचनाओं की परवाह नहीं की।

अमोल मजूमदार पर पूरा भरोसा किया गया और उसका प्रतिफल सामने है। महिला क्रिकेट का विश्व कप अपने नाम करके हरमनप्रीत कौर की टीम ने भारत की बेटियों के लिए नया रास्ता तैयार किया है। अब गांव-गांव में लड़कियों का क्रिकेट भी वैसे ही मशहूर हो जाएगा जैसे कि हमारे बेटे क्रिकेट खेलते हैं, और हां, जीत के इस शानदार मौके पर मैं भारतीय महिला क्रिकेट की नींव के पत्थरों को भी बधाई देना चाहूंगा।

नींव मजबूत करने वाली ये खिलाड़ी हैं : शांता रंगास्वामी, डायना एडुल्जी, अंजुम चोपड़ा, मिताली राज, पूर्णिमा राव, झूलन गोस्वामी, नीतू डेविड, शुभांगी कुलकर्णी, वेद कृष्णमूर्ति और शिखा पांडे। इन खिलाड़ियों के संघर्ष का ही प्रतिफल है कि आज हमारी बेटियों ने ऐसा मुकाम हासिल कर लिया है कि लोग गर्व से कहें : म्हारी छोरियां, छोरों से कम हैं के...? बेटियों की जीत के जश्न के इस मुबारक मौके पर पूरे देश से एक बात कहना चाहूंगा कि बेटियों की प्रतिभा पहचानें, उनके कौशल में निखार लाने के लिए संसाधन जुटाएं और उनके लिए अवसर उपलब्ध कराएं तो वो देश का नाम और रौशन कर सकती हैं।

बेटियां
हमारी शक्तिपुंज हैं,
हमारे गौरव की गूंज हैं,
खुला आकाश देकर तो देखो,
नभ का सितारा हैं बेटियां,
नील गगन की अनुगूंज हैं !

 

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