जो अमेरिका से लौट कर भारत आए...
अब इसे क्या कहें कि 104 वह भारतीय जो भारी कर्ज लेकर अमेरिका…
अब इसे क्या कहें कि 104 वह भारतीय जो भारी कर्ज लेकर अमेरिका गए और वहां जाकर बसने की तैयारी में थे लेकिन उनका आशियाना टूट गया और सपने बिखर गए। अमेरिका में दोबारा राष्ट्रपति बने ट्रम्प की नीतियों ने पूरी दुनिया के उन लोगों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया जो अमेरिका जाना चाहते थे। आज के जमाने में यह कैसी क्रूरता है कि आप किसी भी हवाई यात्री के हाथों में हथकड़ी और पांव में बेड़ी डाल देते हैं। मानवतावादियों को ट्रम्प प्रशासन द्वारा किए गए लज्जाजनक कृत्य की फिल्म नहीं दिखाई दी। भारत जैसे देश में सुविधाएं मांगने वाले अमेरिकियों को मानवता को झकझोर कर रख देने वाले दृश्य दिखाई नहीं दिए क्या? अमेरिकी संगठनों ने भारतीयों के साथ ऐसे घिनौने मजाक काे देखकर प्रोटैक्ट क्यों नहीं किया। खैर भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस मामले पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है और इस बिन्दु पर विराम लगाते हुए मैं इस मुद्दे पर आ रही हूं, जो हमारे पंजाबी, हरियाणा, गुजरात, केरल व चंडीगढ़ के भाइयों से जुड़े हैं जो कर्जदार होकर अमेरिका गए और उन्हें भारत भेज दिया गया। समय आ गया है कि भारतीय अब अमेरिका में जाकर अपने टेलैंट को कहीं और शिफ्ट करने पर विचार करें। इतना ही नहीं अमेरिका में बसे भारतीय इस मुददे को उठाएं।
मुझे उन परिवारों से बहुत सहानुभूति है जिनके घरों से अमेरिका जाने के लिए लोगों ने भारी कर्ज लिया। यह कर्ज पचास लाख रुपये तक का है। अगर पंजाब के 30 लोगों की बात की जाये तो कपूरथला, अमृतसर, पटियाला, जालंधर, होशियारपुर, लुधियाना, तरनतारन, संगरूर और फतेहगढ़ साहिब में रहने वाले परिवार के लोगों ने अपनी जमीन और गहने बेच दिये और इनके घरों से अमेरिका गए लोग भारत लौट आएं हैं। किसी ने 70 लाख रुपये खर्च किये तो किसी ने जमीन गिरवी रखकर पैसे उठाए और जो कुछ भी एजेंटों ने कहा वह पूरा किया। इनमें चाहे हरविंदर सिंह हो या कुलविंदर कौर या जसपाल सिंह या सुखपाल इन सब लोगों की पीड़ा एक ही है कि किस प्रकार एजेंटों ने उनसे पैसा ऐंठा और अमेरिका भेज दिया। मैंने इस बारे में अलग-अलग माध्यमों से सोशल मीडिया में या अन्य चैनलों पर जो कुछ देखा सबकी पीड़ा एक जैसी है। इसी कड़ी में हरियाणा और गुजरात के लोग भी हैं। विदेश के प्रति और विशेष रूप से अमेरिका के प्रति आकर्षण ज्यादा ही है। मजेदार बात यह है कि जब कोई भी परिवार अपने किसी भी सदस्य को अमेरिका या अन्य देश भेजने की बात करता है तो एजेंट लोग उन्हें भारी सपने दिखाते हैं। यह जानते हुए भी कि उनका तरीका अवैध है, वे चार-चार, पांच-पांच गुणा रकम वसूलते हैं और गारंटियां देते हैं। ऐसे एजेंट और विदेश भेजने का धंधा करने वाले लोगों पर चाहे वह पंजाब, हरियाणा, केरल या महाराष्ट्र कहीं भी हो उन पर कड़ा एक्शन लेना चाहिए ताकि विदेश भेजने के नाम पर भोलेभाले लोगों को ऐसी हालत का सामना न करना पड़े जो हमने अमेरिका से डिपोर्ट किये जाने को लेकर देखी है।
सोशल मीडिया पर कई चौंकाने वाली बातें भी उभर रही हैं कि कुछ परिवारों के लोग अपने परिजनों की अमेरिका से इस शर्मनाक वापसी को देखकर सदमे में चले गए हैं और एक व्यक्ति के पिता को हार्टअटैक आया जो कि अस्पताल में है। सवाल पैदा होता है कि विदेश जाने के प्रति भारतीयों में इतना क्रेज क्यों है? मेरा व्यक्तिगत तौर पर मानना है कि विशेष रूप से पंजाब के लोगों के दिलों में ब्रिटेन, कनाडा और अमेरिका के प्रति क्रेज ज्यादा है। लेकिन ज्यादातर लोग अपने टैलेंट के दम पर अपनी उच्च शिक्षा के दम पर विदेशों में नौकरियां पा गए और कईयों को तो वहां की नागरिकता भी मिल चुकी है। इन लोगों की इस चमक-दमक को देखकर भारतीयों के सपने भी परवान चढ़ते हैं और वे किसी भी कीमत पर विदेश जाना चाहते हैं। ऐसे में धोखेबाज एजेंट इन लोगों को फंसाते हैं और भारी रकम वसूलते हुए उन्हें डंकी रूट अर्थात गलत रास्तों यानि कि अलग-अलग सीमाओं से विदेशों में पहुंचा देते हैं। इन कठिन रास्तों में इंग्लिस चैनल पार करना और मैक्सिको के जंगल पार करना भी शामिल है। एजेंट लोगों का नेटवर्क विदेशों में फैला हुआ है। इसके लिए पानी के जहाजों में, नावों के माध्यम से लोगों को ले जाना उनका गंतव्य स्थल में एंट्री के लिए दस्तावेज पूरा करवाना यह काम बगैर विदेशी मिलीभगत के नहीं हो सकता।
इस मामले में भारत सरकार को अमेरिका से खुलकर बात करनी होगी कि अगर अवैध रूप से गए हुए भारतीयों का उसे वर्षों पहले पता चला तो इस बारे में सूचनाओं का आदान-प्रदान होना चाहिए और कितना अच्छा होता कि भारत सरकार इन भारतीयों को खुद वापस देश लाती जैसा कि उसने रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान स्टूडेंट्स को सुरक्षित भारत लेंड कराकर किया था। राजनीति और कूटनीति स्तर पर अमेरिका से इस मामले पर समाधान करना होगा लेकिन भारत से जाने वाले लोगों को किसी शॉर्ट रूट की बजाए एजेंटों को नजरंदाज करते हुए वैध तरीके से ही विदेश जाने के लिए तरीका चयन करना होगा। न्यूजीलैंड और रूस जाने वाले अनेक स्टूडेंट्स वैध तरीके से विदेश जाते हैं इसलिए उनसे कोई विवाद भी नहीं लेकिन अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा के केस में वीजा के नाम पर एजेंट गौरख धंधे में लगे हुए हैं और उसमें भारत सरकार संबद्ध देशों की सरकारों से संपर्क करके ऐसी पुनरावृत्ति को दोहराए जाने से रोके, यही समय की मांग है।