Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

तीन तलाक: समाज आगे आये

NULL

11:17 PM Sep 12, 2017 IST | Desk Team

NULL

किसी भी धर्म की कुरीतियों की आलोचना प्राय: होती रहती है। धार्मिक आलोचना एक संवेदनशील मुद्दा है तथा धर्म के अनुयायी इससे असहमत भी होते हैं लेकिन यह भी सत्य है कि आलोचना के फलस्वरूप ही कई सामाजिक सुधार संभव हो पाए हैं। हिन्दू समाज सुधारकों ने भी भेदभाव और कुरीतियों को दूर करने के लिये आवाज उठाई तथा कई समाज सुधारकों ने आन्दोलन भी चलाये। हिन्दू समाज की कई रीतियों का समय-समय पर विरोध भी होता रहा। जैसे जाति प्रथा के फलस्वरूप उपजी छुआछूत जैसी कुरीति, हिन्दू विधवाओं द्वारा मृत पति की चिता के साथ जीवित जल जाने की प्रथा, बाल विवाह, अनुष्ठान और बलिदान में निर्दोष पशुओं की हत्या और दहेज प्रथा। राजा राम मोहन राय ने बाल विवाह का विरोध किया।

महर्षि दयानंद ने जाति प्रथा, वर्ण-लिंग आधारित भेदभाव व आडंबर और पाखंड का विरोध किया। गुरुनानक देव जी ने सामाजिक भेदभाव का विरोध किया। ज्योतिबा फुले ने महिला एवं दलित उत्थान के लिये अभियान चलाया। बाबा साहेब अम्बेडकर ने जाति प्रथा का विरोध किया और दलितों को अधिकार दिलाने के लिये काम किया। धर्म और समाज में कुरीतियों को दूर करने के लिये समाज को ही आगे आना चाहिए। आज भारत में सती प्रथा खत्म हो चुकी है। समाज के आधुनिक होने के साथ-साथ बाल विवाह भी नहीं होते हालांकि कुछ क्षेत्रों में आज भी ऐसा किया जाता है लेकिन अधिकांश लोगों को बाल विवाह स्वीकार्य नहीं है। कितनी ही प्रथायें खत्म हो गईं, लेकिन दहेज प्रथा अब भी जारी है। इसी तरह मुस्लिम धर्म में भी तीन तलाक का मामला काफी गंभीर रूप लेकर सामने आया। लम्बे तर्क-वितर्क के बाद तील तलाक पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया कि तीन तलाक असंवैधानिक है। इसका अर्थ यही है कि न्यायालय को इस मामले को संविधान के दायरे में देखना चाहिए। तीन तलाक मूल अधिकार का उल्लंघन करता है।

यह मुस्लिम महिलाओं के मान-सम्मान और समानता के अधिकार में हस्तक्षेप करता है। सरकार ने यह भी कहा था कि पर्सनल लॉ मजहब का हिस्सा नहीं।  शरीयत कानून 1937 में बनाया गया था। अगर कानून लिंग समानता, महिलाओं के अधिकार और उसकी गरिमा पर असर डालता है तो उसे अमान्य करार दिया जाये। सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक पर बहुमत से सुनाये गये फैसले में इसे कुरान के मूल तत्व के खिलाफ बताते हुए खारिज कर दिया है। देश में संविधान सर्वोपरि है। कोई भी नियम या व्यवस्था संविधान के खिलाफ हो तो उसे बदला जाना ही चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को इस सम्बन्ध में कानून बनाने के लिए कहकर अपना दायित्व पूरा कर दिया। अब जिम्मेदारी मुस्लिम समाज की है कि वह इस फैसले का सम्मान करे। यद्यपि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड तथा जमीयत का मत इस फैसले के विपरीत था।

मुस्लिम समाज में तीन तलाक की प्रथा 1400 वर्षों से चल रही है। जाहिर है कि इसे समाप्त करने के लिये अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। लगभग 23 मुस्लिम राष्ट्रों में तीन तलाक गैर कानूनी बनाया जा चुका है तो फिर भारत में इसे लेकर समस्या क्या है? सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक भोपाल में हुई जिसमें सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया गया। साथ ही शरीयत में सरकार और अदालतों के दखल का विरोध किया गया। बोर्ड ने कई अहम फैसले करने के साथ-साथ अपनी महिला विरोधी इमेज को तोडऩे और प्रगतिशील छवि बनाने की दिशा में कदम उठाने का फैसला किया गया। बोर्ड ने तीन तलाक को गुनाह का अमल बताते हुए कहा कि एक साथ तीन तलाक गलत प्रेक्टिस है। बोर्ड इस प्रेक्टिस को खत्म करने के लिये समाज में जागरूकता अभियान चलायेगा ताकि इसकी खामियों से लोग पूरी तरह अवगत हो सकें।

शरिया को लेकर जो लोगों में गलत फहमियां हैं, उन्हें दूर करने के लिये बड़े स्तर पर अभियान चलाया जायेगा। बोर्ड द्वारा इसके लिये देश के दूसरे मुस्लिम संगठनों की मदद लेने का फैसला भी किया गया। बोर्ड महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिये शरियत के दायरे में रहकर काम करेगा। तीन तलाक पर रोक के लिये समाज सुधारों की जरूरत है। लोगों को सही तरीका मालूम हो इसकी जरूरत है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि तीन तलाक पर पर्सनल लॉ बोर्ड कोई पुनर्विचार याचिका दायर नहीं करेगा। सियासत की बातों को छोड़ दें तो मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की पहल सही है। तीन तलाक से पीडि़त मुस्लिम महिलाओं की जिंदगी कितनी बदतर हो चुकी है, इस बात का बोर्ड को भी अहसास है। मुस्लिम महिलाओं ने ही इस पर कानूनी लड़ाई लड़ी है। अब समाज का दायित्व है कि मुस्लिम महिलाओं को सम्मान दिलाने के लिये ठोस कदम उठाये ताकि लोग तलाक-ए-बिद्दत पर अमल ही न करें।

Advertisement
Advertisement
Next Article