कांग्रेस के लिए आत्ममंथन का समय
एक के बाद एक चुनाव हार जाने के बाद कांग्रेस के कार्यकर्ता काफी हताश हैं। कांग्रेस की स्थापना 28 दिसम्बर 1885 को हुई थी। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व यह पार्टी स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व कर रही थी और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कांग्रेस भारतीय राजनीति में प्रमुख स्थान पर रही। कांग्रेस का स्वर्णिम इतिहास जानने वाले आज इस बात को लेकर चिंतित हैं कि महात्मा गांधी, दारा भाई नौराजी, नेताजी सुुभाष चन्द्र बोस, ए.ओ. ह्यूम, पंडित जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, सरदार वल्लभ भाई पटेल, इंदिरा गांधी की कांग्रेस को वर्तमान में क्या हो गया है। कांग्रेस देशभर में क्यों सिमटती जा रही है। देश में लोकतंत्र तभी मजबूत रह सकता है जब विपक्ष भी मजबूत हो लेकिन इस समय विपक्ष पूरी तरह से हाशिये पर है।
राजनीति का इतिहास बताता है कि समय-समय पर विभिन्न नेताओं ने कांग्रेस की नीतियों का विरोध किया और उसे सत्ता से हटाने के लिए संघर्ष भी किया। इनमें राम मनोहर लोहिया का नाम अग्रणी रहा जो पंडित जवाहर लाल नेहरू के कट्टर विरोधी थे। इसके अलावा जय प्रकाश नारायण ने सन् 1974 में इंदिरा गांधी को सत्ता से उखाड़ फैंकने के लिए संघर्ष क्रांति का नारा दिया था। इमरजेंसी के बाद देश में ऐसी जनक्रांति हुई कि जनता पार्टी ने 1977 में कांग्रेस को बुरी तरह पराजित कर दिया लेकिन 19 महीने बाद इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस फिर उठ खड़ी हुई और सत्ता में आ गई। विश्वनाथ प्रताप सिंह ने बोफोर्स दलाली कांड को लेकर राजीव गांधी को सत्ता से हटाया था। राजीव गांधी की शहादत के बाद कांग्रेस फिर पुनर्जीवित हुई और सत्ता में आई।
2014 में नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारतीय जनता पार्टी का लगातार विस्तार हुआ और एक के बाद एक राज्य कांग्रेस के हाथ से निकलते गए। इसमें कोई संदेह नहीं कि राहुल गांधी ने कांग्रेस में जान डालने के लिए लगातार मेहनत की। एक के बाद एक मुद्दे उठाए लेकिन उनका राजनीतिक सफर उतार-चढ़ाव से भरा रहा। 2017 में उन्होंने पार्टी का अध्यक्ष पद संभाला था जो उनकी राजनीतिक महत्वकांक्षा का चरम था। उन्होंने 2022-23 में भारत जोड़ो यात्रा निकाली थी। 2024 में भारत न्याय यात्रा निकाली थी। जिनमें उन्होंने देश में एकता और सामाजिक न्याय के मुद्दों को उजागकर किया था। राहुल गांधी की 4000 किलोमीटर की भारत जोड़ो यात्रा जन केन्द्रित पहल रही। इसका असर 2024 के लोकसभा चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन पर भी दिखा।
उनकी कमजोर छवि और वंशवाद के आरोपों ने उनकी लोकप्रियता को प्रभावित किया। वे कांग्रेस कोे पुनर्जीवित करने की लगातार कोशिश कर रहे हैं। हालांकि आलोचक उन्हें निर्णय न लेने वाला अनिश्चित और कमजोर नेता मानते हैं। लगातार चुनावी हार के चलते पार्टी के भीतर भी उनके विरोध में स्वर सुनाई देते हैं। यह विडम्बना ही है कि वे खुद को देश की जनता से विश्वसनीय रिश्ते कायम करने में विफल रहे हैं। राजनीति के विशेषज्ञ बार-बार यह कहते हैं कि कांग्रेस को आत्ममंथन करने की जरूरत है। जहां तक प्रियंका गांधी का सवाल है जिन लोगों ने भी लोकसभा में वंदे मातरम् के सृजन के 150 साल पूरे होने पर चर्चा के दौरान उनके संबोधन को सुना, वे यह स्वीकार करते हैं कि वे भाषण देने में अधिक सहज और साफ हैं। हिन्दी बोलने पर उनका अच्छी दक्षता है।
उन्होंने अपनी तर्क शक्ति से एक-एक वार पर पलटवार किया। वह अपनी दादी इंदिरा गांधी की ही तरह लोगों से तुरंत रिश्ता जोड़ लेती हैं और हंसते-हंसते अपनी बात को सहज ढंग से पहुंचाने में पारंगत हैं। प्रियंका का व्यक्तित्व लोगों को प्रभावित करता है। प्रियंका के अब तक के राजनीतिक सफर को आलोचक भले ही सफल न मानते हों लेकिन वह पार्टी में जान फूंकने के लिए ज्यादा सक्षम दिखाई दे रही हैं। वह कांग्रेस के जुझारू नेता के रूप में उभर चुकी हैं। साल 2019 में इच्छा न होने के बावजूद आधिकारिक तौर पर प्रियंका गांधी जी ने राजनीति में कदम रखा। उन्होंने आम और विधानसभा दोनों चुनावों में अपनी मां और भाई के लिए चुनाव प्रचार में सक्रिय रूप से भाग लिया। इस भागीदारी ने उन्हें इन क्षेत्रों में महत्वपूर्ण समर्थन के साथ एक जानी-मानी हस्ती बना दिया। इसकी वजह से संविधान में चुनाव के दौरान 'अमेठी का डंका, बिटिया प्रियंका' के जबरदस्त नारे लगे थे।
वहीं, अक्तूबर 2021 में यूपी पुलिस ने 2 बार गिरफ्तार किया था। पहली बार डेस्टिनेशन वेस्टर्न यूपी के सिद्धार्थ खेडी की उनकी यात्रा के बाद हुई, जहां रैली के बाद 8 लोग मारे गए थे। उन्हें और कई अन्य पार्टी के नेताओं को एक गेस्ट हाउस में बंधक बनाकर रखा गया था, जहां उन्हें अस्थायी जेल के रूप में रखने के लिए 50 घंटे से अधिक समय तक रखा गया था। आगरा जाते समय उन्हें पुलिस ने रोका तो भी प्रियंका ने सभा की थी। प्रियंका गांधी की जिन्दगी का एक अनोखा पन्ना और है। यह राजीव गांधी की हत्यारिन नलिनी मुरगन के प्रति उनका सहानुभूतिपूर्ण रवैया था। प्रियंका उससे बेल्लूर जेल में जा कर मिली थी। नलिनी जिसको फांसी लगनी थी, की एक छोटी बेटी भी थी। प्रियंका के सुझाव पर सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति के. आर. नारायणन को पत्र लिखा था कि "न मैं और न ही मेरे बच्चे राहुल और प्रियंका चाहते हैं कि एक और ज़िन्दगी को बुझा दिया जाए। उसकी छोटी बेटी है। मेरे बच्चों ने भी पिता खोया था। कोई भी बच्चा हमारे कारण अनाथ नहीं बनना चाहिए... इसलिए हमारी अपील है कि उसे फांसी के फंदे से बचा लिया जाए"।
उसी के बाद नलिनी की किस्मत बदल गई और वह फांसी से बच गई और 31 साल के बाद वह जेल से बाहर आ गई। नलिनी की रिहाई में प्रियंका गांधी ने असाधारण इंसानियत का परिचय दिया। सोनिया गांधी पर लिखी किताब ‘द रेड साड़ी’ में लेखक जेवियर मोरो ने प्रियका गांधी के बारे में लिखा था कि वह इंदिरा गांधी जैसी लगती हैं। वही चाल-ढाल और वही चमकती आंखें। राजनीति में चुनावी हार-जीत तो होती ही रहती है, काम आता है राजनीतिज्ञों का जुझारूपन। वायनाड से चुनाव जीतने के बाद प्रियंका सांसद के रूप में बेहतरीन भूमिका निभा रही हैं। प्रियंका की सक्रिय राजनीति में एंट्री को लेकर भी बहुत सारे सवाल खड़े किए गए थे। राजनीति में सवालों का सिलसिला चलता रहता है लेकिन प्रियंका सभी सवालों का जवाब देने में सक्षम है। कांग्रेस में उनकी क्या भूमिका होनी चाहिए इसका फैसला तो पार्टी को ही करना है। कांग्रेस को ओवरहालिंग की जरूरत है। कुशल नेतृत्व ही संगठन की कमजोरियों को दूर कर संगठन को फिर से पुनर्जीवित कर सकता है।

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