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एलुरु से सबक लेने का समय

भारत में कोरोना महामारी का प्रकोप तो कम हो रहा है और सरकार ने टीकाकरण की तैयारी भी कर ली है। टीकाकरण अभियान के लिए गाइड लाइंस भी जारी कर दी गई है लेकिन आंध्र प्रदेश के एलुरु इलाके से आ रही रहस्यमयी बीमारी की खबरों ने चौंकाने के साथ-साथ चिंता में डाल दिया है।

12:15 AM Dec 16, 2020 IST | Aditya Chopra

भारत में कोरोना महामारी का प्रकोप तो कम हो रहा है और सरकार ने टीकाकरण की तैयारी भी कर ली है। टीकाकरण अभियान के लिए गाइड लाइंस भी जारी कर दी गई है लेकिन आंध्र प्रदेश के एलुरु इलाके से आ रही रहस्यमयी बीमारी की खबरों ने चौंकाने के साथ-साथ चिंता में डाल दिया है।

भारत में कोरोना महामारी का प्रकोप तो कम हो रहा है और सरकार ने टीकाकरण की तैयारी भी कर ली है। टीकाकरण अभियान के लिए गाइड लाइंस भी जारी कर दी गई है लेकिन आंध्र प्रदेश के एलुरु इलाके से आ रही रहस्यमयी बीमारी की खबरों ने चौंकाने के साथ-साथ चिंता में डाल दिया है। बड़े खतरों के सामने एलुरु की रहस्यमयी बीमारी की खबरें प्रमुखता से स्थान नहीं पा सकीं लेकिन देश का कोई न कोई हिस्सा हर वर्ष किसी रहस्यमयी बीमारी से ग्रस्त रहे, यह कोई अच्छे संकेत नहीं हैं। दरअसल हम पूर्व में फैल चुकी बीमारियों से कोई सबक  नहीं लेते और नए-नए रोगों को आमंत्रित करते हैं। एलुरु शहर के लोग एकाएक गिरने लगे, बेहोश होने लगे। 500 लोगों में काफी अब ठीक हो चुके हैं। 
यह बात पहले ही सामने आ चुकी है कि कई राज्यों में कृषि के लिए घातक कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता है। हमने उत्पादन बढ़ाने के लिए कीटनाशकों को अपना तो लिया लेकिन इससे पानी की खपत बढ़ गई। पंजाब के फरीदकोट, संगरूर, बठिंडा, मोगा, मुक्तसर और फिरोजपुर जिलों में बड़ी संख्या में किसान कैंसर की गिरफ्त में आ चुके हैं। पंजाब के बठिंडा से राजस्थान के बीकानेर जाने वाली ट्रेन का नाम तो अबोहर-जोधपुर एक्सप्रेस है लेकिन यह ट्रेन कैंसर एक्सप्रेस के नाम से विख्यात हो चुकी है। सैकड़ों मरीज बठिंडा से बीकानेर स्थित आचार्य तुलसी कैंसर संस्थान में उपचार के लिए पहुंचते हैं। हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल राज्यों के कई इलाकों में भी कीटनाशक और रसायन अपना प्रभाव छोड़ रहे हैं। कीटनाशकों, रसायनों आैर प्लास्टिक के इस्तेमाल से भूमिगत जल दूषित हो रहा है और भूमि का क्षरण हो रहा है।
यही कुछ हुआ आंध्र प्रदेश के एलुरु में। जब अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की टीम ने वहां जाकर जांच की तो पता चला कि एलुरु शहर के पेयजल में सीसा और निकिल जैसे तत्वों की मौजूदगी है। पानी में इनकी मौजूदगी के चलते न्यूरोलाजिकल मामले बढ़ रहे हैं। लोगों को मिरगी, घबराहट, उल्टी और बेहोशी जैसी समस्याएं होने लगी हैं। मेडिकल विशेषज्ञों का कहना है कि सीसा और निकिल जैसे रासायनिक पीने के पानी, चावल, सब्जियों और मछलियों के जरिये लोगों के शरीर में पहुंच रहे हैं। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार शहर से जुड़ी दो नहरें हैं, जिनमें खेती में इस्तेमाल किए जाने वाले कीटनाशक और सब्जियों और मछलियों को ताजा रखने वाले रसायन अलग-अलग इलाकों में बहकर आते हैं। अनेक गांवों के लोगों के लिए पेयजल का स्रोत भी ये दोनों नहरें ही हैं। यद्यपि देशभर में कई रासायनिक कीटनाशकों के इस्तेमाल पर रोक है लेकिन प्रतिबंधों के बावजूद लोग रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इन कीटनाशकों ने भूमिगत पानी को भी विषाक्त बना दिया। इसके साथ ही नदियों, तालाबों का जल भी जहरीला हो चुका है। एलुरु शहर के लोग बताते हैं कि घरों में सप्लाई हो रहे जल का रंग और स्वाद ही बदल गया है। कई राज्यों में प्लास्टिक और पालिथिन बैग पर प्रतिबंध है। शहरों को प्लास्टिक मुक्त बनाने का संकल्प लिया गया है लेकिन लाेग मानने को तैयार ही नहीं हैं। प्लास्टिक पूरे पर्यावरण में जहर घोल रही है। इससे जानवर, इंसान और वनस्पति प्रभावित है। प्लास्टिक को तो नष्ट होने में एक हजार साल लग जाते हैं। इसे जलाए जाने पर जहरीली गैसें निकलती हैं। इससे नदी-नालों का जल प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है और जमीन की उर्वरा शक्ति भी कम हो जाती है। 
देश के कई शहरों में स्थापित संयंत्रों द्वारा भी कोई कम प्रदूूषण नहीं फैलाया जा रहा है। कुछ समय पहले तमिलनाडु के तूतिकोरिन के गांव के लोग भी बीमार होने लगे थे। एक संयंत्र के चलते पूरे इलाके का जल काला हो गया था। अंततः संयंत्र को बंद करना पड़ा। प्रदूषण पहले ही तांडव कर रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक वायु, जल तथा अन्य प्रदूषण की वजह से भारत में एक वर्ष में 25 लाख लोग अपनी जान गंवा रहे हैं। देश में शायद कोई ऐसा शहर हो जहां लोग धूल, धुएं, कचरे और शोर के चलते बीमार न हों। कोरोना महामारी ने हमें बहुत कुछ सिखाया है और लोगों ने खुद के बचाव के लिए जीवन शैली को भी बदला है और अपनी आदतें भी बदली हैं लेकिन भारत में प्रदूषण और पर्यावरण का परिदृश्य काफी निराशाजनक रहा है। अब समय आ गया है कि कृषि पैदावार बढ़ाने के लिए बहुत अधिक कीटनाशकों का इस्तेमाल न करें। रासा​यनिक उर्वरकों का इस्तेमाल भी बिना सोचे-समझे नहीं करें। यदि ऐसा ही जारी रहा तो अनेक दुष्परिणाम सामने आ सकते हैं। राष्ट्रीय कैंसर संस्थान की रिपोर्ट बताती है कि 2019 में 8 लाख से अधिक लोगों की मौत हुई। 2014 से लेकर 2019 तक 6 वर्षों में 45,10188 लोगों की मौत कैंसर से हुई। कोरोना काल के कारण इस वर्ष यह रिपोर्ट जारी नहीं की गई। उत्तर प्रदेश में कैंसर से सबसे अधिक मौतें हो रही हैं। राज्य में कैंसर बढ़ने और मौतें, दोनों राष्ट्रीय औसत से अधिक हैं। समाज और सरकारों को एलुरु शहर से सबक लेना चाहिए। कीटनाशकों और रसायनों के इस्तेमाल पर रोक के लिए चेतना जगाई जानी चाहिए। प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों के प्रति प्रदूषण बोर्ड को कड़े कदम उठाने होंगे अन्यथा कोई भी महामारी फैल सकती है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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