आतंकिस्तान के साथ संधि, भारत के लिए दंड
इतिहास में कुछ घटनाएं दो बार घटती हैं। पहली बार हास्य के रूप में और दूसरी बार तमाशा के रूप में। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दोनों ही हैं। 30 जुलाई को रियलिटी टीवी होस्ट से टैरिफ तानाशाह बने ट्रंप ने भारतीय निर्यात पर 25 प्रतिशत की आर्थिक गिरावट का बम गिराया, साथ ही कूटनीतिक झूठ का पुलिंदा बांधते हुए दावा किया कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच शांति स्थापित की है। ट्रंप ने नई दिल्ली की पीठ में छुरा घोपने के लिए इस्लामाबाद के साथ हाथापाई की। उनका यह आर्थिक हमला अमेरिका के लिए नहीं, बल्कि खुद उनके लिए रचा गया है। ट्रंप पाकिस्तान के पैट्रोलियम उत्खननकर्ताओं और क्रिप्टो कार्टेलों को लुभा रहे हैं, अपनी जेबें भरने के लिए ऐसी पाइपलाइन और भुगतान प्लेटफॉर्म की योजना बना रहे हैं जो किसी भी जांच-पड़ताल से बच निकलेंगे। उनकी कुल संपत्ति एक साल में 60 करोड़ डॉलर बढ़ गई और उनकी नैतिकता गर्त में समा गई। यह नापाक हरकत उस व्यक्ति की ओर से हो रही है जिसने कभी डॉलर से भरे प्रवासी भारतीयों से भरे स्टेडियमनुमा तमाशे में नरेंद्र मोदी को गले लगाया था। ‘सच्चा दोस्त’ और ‘महान नेता’ कहा था। बाद में लेन-देन के धुरंधर ट्रंप ने पाकिस्तान के साथ दोस्ती कर ली है जो अपने पिछवाड़े में आतंकी शिविरों को पाल-पोस रहा है। इस नारंगी मुखौटे और अमेरिका ग्रेट अगेन (एमएजीए) की बड़बड़ाहट के पीछे एक ऐसा शख्स छिपा है जो नैतिकता से नहीं, बल्कि अपने संदिग्ध साम्राज्य को मजबूत करने के लिए डॉलर से प्रेरित है।
पाकिस्तान के जनरल सैयद असीम मुनीर अहमद शाह के साथ उनका गठबंधन कायरता की आड़ में एक सोची-समझी साज़िश है जो भारत को पुराने बुरे सपनों में वापस धकेल रही है। याद है 1971, जब रिचर्ड निक्सन ने बंगलादेश युद्ध के दौरान भारत को धमकाने के लिए दुर्जेय विमानवाहक पोत यूएसएस एंटरप्राइज भेजा था? इंदिरा गांधी ने पलक तक नहीं झपकाई। भारत झुका नहीं और इतिहास उसी को याद रखता है जो डटा रहा। इस बार, इतिहास एक तमाशे के रूप में नहीं, बल्कि एक चेतावनी के रूप में दोहराया जा रहा है। ट्रंप लाल टाई पहने निक्सन हैं, जो फिर से इस्लामाबाद का साथ दे रहे हैं। इस बार बस इतना फर्क है कि अमेरिका टैरिफ और ट्वीट्स के जरिए पाकिस्तान के साथ खड़ा है लेकिन भारत तब और अब झुकने से इन्कार करता है। ट्रंप का विश्वासघात एक दोधारी तलवार है।
पिछले हफ्ते दागी गई उनकी टैरिफ मिसाइल, भारत के अपने सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार अमेरिका को 87 अरब डॉलर के निर्यात पर निशाना साध रही है जिससे अनुमानित 7 अरब डॉलर का नुक्सान होने का खतरा है। राष्ट्रपति ने अमेरिकी मोटरसाइकिलों पर भारत द्वारा लगाए गए 70 प्रतिशत शुल्क और 12 प्रतिशत व्यापार-भारित टैरिफ का हवाला देकर इसे उचित ठहराया। उन्होंने फरवरी 2025 से अब तक आठ बार भारत को "बड़ा दुर्व्यवहार करने वाला" करार दिया है और रूस के साथ इसे एक ‘मृत अर्थव्यवस्था’ करार दिया है। ट्रंप ने यह भी कहानी गढ़ी कि भारत ने रूस से तेल लेना बंद कर दिया है। उन्होंने झूठा दावा किया कि भारत ने ‘बिना टैरिफ वाला सौदा’ पेश किया, जिसका एस. जयशंकर ने खंडन किया। ‘सौदे पारस्परिक रूप से लाभकारी होने चाहिए।’ नई टैरिफ व्यवस्था 2017 के बाद से बने विश्वास को तोड़ती है, जब मोदी और ट्रंप ने व्हाइट हाउस में मोदी के गर्मजोशी भरे आलिंगन, अहमदाबाद में ट्रंप के 2020 के 'नमस्ते ट्रंप' कार्यक्रम और आपसी प्रशंसा से चिह्नित मोदी की अमेरिकी यात्राओं के जरिए एक मजबूत रिश्ता बनाया था।
2024 तक द्विपक्षीय व्यापार बढ़कर 120 अरब डॉलर हो जाएगा। फरवरी में ट्रंप और मोदी के बीच हुई आखिरी मुलाकात में, भारतीय प्रधानमंत्री ने पारस्परिक शुल्कों से बचने के लिए टैरिफ में कटौती की पेशकश की और 2030 तक 500 अरब डॉलर का व्यापार लक्ष्य रखा लेकिन बाद में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान ट्रंप के युद्धविराम के झूठ, ‘परमाणु युद्ध’ रोकने और ‘पांच जेट मार गिराए जाने’ के मनगढ़ंत दावे ने पाकिस्तान की रक्षा करते हुए भारत को अपमानित किया। इसके अलावा, ट्रंप ने व्हाइट हाउस में मुनीर की मेजबानी की, जहां उन्होंने शेखी बघारी, ‘मैंने परमाणु युद्ध रोका।’ विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने तुरंत जवाब दिया : ‘मोदी ने ट्रंप को बताया कि अमेरिका की कोई मध्यस्थता नहीं हुई।’
अमेरिकी राष्ट्रपति भारत और पाकिस्तान के बीच शांति ‘स्थापित’ करने के बारे में बड़े-बड़े झूठ बोल रहे हैं लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया। जैसा कि मोदी ने लोकसभा में 20 घंटे की ऐतिहासिक बहस में कहा कि ‘ऑपरेशन सिंदूर में भारत की कार्रवाई किसी विदेशी नेता ने तय नहीं की थी।’ सच तो यह है कि भारत ने ही हमले तय किए थे। पाकिस्तान से संचालित आतंकी शिविरों को नेस्तनाबूद कर दिया गया। मोदी आधुनिक महाभारत के योद्धा की तरह दिख रहे थे, उनके साथ जयशंकर जैसे न्यायप्रिय और राजनाथ जैसे हमलावर थे। उन्होंने उजागर किया कि कैसे भारत की मिसाइलों ने नौ आतंकी ठिकानों को ध्वस्त कर दिया और 100 आतंकवादियों को जहनुम पहुंचा दिया, जिसके बाद पाकिस्तान रेंगता हुआ आया। विपक्षी नेता राहुल गांधी ने बड़बड़ाते हुए मोदी पर विनम्रता का आरोप लगाया लेकिन वे नासमझ लग रहे थे। उन्होंने उपहास करते हुए कहा-अगर मोदी में इंदिरा गांधी जैसा जरा भी साहस है तो उन्हें ट्रंप को झूठा कहना चाहिए। मोदी ने उन्हें झूठा नहीं कहा, बल्कि उन्हें दीवाली की तरह रोशन किया, यह बताते हुए कि कैसे उपराष्ट्रपति जेडी वेंस की छिपी चेतावनियों को नकार दिया गया।
जयशंकर ने ट्रंप के व्यापारिक कल्पित दावों की धज्जियां उड़ाते हुए कहा-कोई जुड़ाव, कोई प्रभाव, कोई झूठ टिक नहीं सकता। राजनाथ ने सटीक हमलों की प्रशंसा करते हुए कहा-हमने पहलगाम नरसंहार का बदला 22 मिनट में ले लिया। जब मोदी सैनिकों के साथ मार्च कर रहे थे तो कांग्रेस ट्रंप की परियों की कहानियों को थामे हुए धराशायी हो गई। डीएमके की कनिमोझी ने माना कि विपक्ष ने ‘हमारे सैनिकों की बहादुरी को नजरअंदाज कर दिया।’ मोदी की टीम संसद में अपनी बात पर अड़ी रही तो योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश विधानसभा में गरजते हुए कहा-भारत के बाज़ार सहयोगियों के लिए हैं, हमलावरों के लिए नहीं।
राष्ट्रपति ट्रंप का जवाबी टैरिफ दोहरा झटका भारत के 1.4 ट्रिलियन डॉलर के बाजार और वैश्विक दक्षिण के नेतृत्व पर लक्षित है। मोदी का '2047 तक विकसित भारत' का विजन स्वायत्तता की मांग करता है, अधीनता की नहीं। यूएनसीटीएडी के अनुसार, ट्रंप के टैरिफ विकासशील देशों को क्षेत्रीय संबंधों की ओर धकेलेंगे। भारत के फार्मास्यूटिकल्स और परिधान जैसे विविध निर्यात एशिया और यूरोप की ओर बढ़ सकते हैं।
ट्रंप का यह प्रयास वैश्विक दक्षिण में प्रतिक्रिया को जन्म दे सकता है, जिसमें भारत अमेरिकी आधिपत्य के खिलाफ ब्रिक्स का नेतृत्व कर सकता है। भारत अकेला नहीं है, ब्रिक्स उभर रहा है, आसियान देख रहा है और यूरोप पुनर्संतुलन कर रहा है। अगर ट्रंप अड़े रहे तो भारत ब्रिक्स संबंधों को और गहरा कर सकता है जिससे उन्हें एक महत्वपूर्ण सहयोगी को खोने का पछतावा होगा। ट्रंप की टैरिफ चालबाजी कूटनीतिक खींचतान में लिपटी एक दोहरी चाल है। उनका तर्क है कि भारत हार्ले और हैम पर ‘उच्च शुल्क’ लगाता है। ट्रंप के अरबपति होने के दावे ने उनके ब्रांड को तो बढ़ावा दिया है लेकिन भारत, जापान, कनाडा और यहां तक कि नाटो के साथ भी उनके रिश्ते खराब कर दिए हैं। उनके झूठ और टैरिफ उनके साम्राज्य को मजबूत करते हुए एक दोस्त को धोखा देते हैं। 14 देशों पर 25-40 प्रतिशत टैरिफ लगाकर और ब्रिक्स को धमकी देकर उनका आर्थिक विस्तारवाद अमेरिका से ज़्यादा उनके लिए फायदेमंद है।
ट्रंप का दुस्साहस अमेरिका द्वारा सहायता प्राप्त शिक्षाविदों, नौकरशाहों, कॉर्पोरेट दिग्गजों और कुलीन सामाजिक कार्यकर्ताओं के उस अंतर्राष्ट्रीय गिरोह को भी कमज़ोर कर सकता है जो विभिन्न देशों में महत्वपूर्ण आर्थिक और रणनीतिक फ़ैसलों को प्रभावित करते हैं। ट्रंप का दिखावा, मुनाफ़ाखोरी और बेतुका झूठ उन्हें लोकतंत्र के संरक्षक के रूप में नहीं, बल्कि एक वैश्विक धौंसिया के रूप में चिह्नित करते हैं। यह अमेरिका फर्स्ट नहीं है, यह ट्रंप फर्स्ट है। पाकिस्तान की ओर उनका झुकाव आतंकी नेटवर्क को नई हवा देता है। यह 1970 के दशक की रणनीति को पुनर्जीवित करता है। भारत को अलग-थलग करो, इस्लामाबाद से दोस्ती बढ़ाओ और शांति स्थापना का दिखावा करो लेकिन समकालीन भारत कोई कमज़ोर देश नहींं है। यह 3.9 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर है, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और ग्लोबल साउथ की आधारशिला है। वाशिंगटन को संदेश यह होना चाहिए कि भारत को लालच नहीं दिया जाएगा, खरीदा नहीं जाएगा या धमकाया नहीं जाएगा। अगर राष्ट्रपति निक्सन के ‘पोटस’ की भूमिका निभाना चाहते हैं तो भारत एक बार फिर मोदी के ‘डेविड’ की भूमिका निभाएगा, गुलेल से नहीं, बल्कि आर्थिक ताकत, कूटनीतिक दृढ़ता और अमेरिकी दायरे से परे रणनीतिक गठबंधनों से लैस।
मोदी के नेतृत्व में भारत अडिग और बेपरवाह खड़ा है। अपने 1.4 अरब उपभोक्ताओं और 120 अरब डॉलर के व्यापार के साथ, भारत सम्मान की मांग करता है। मोदी की संसदीय जीत भारत के संकल्प को प्रमाणित करती है। यह उस धौंसिया को परास्त कर देगी जिसका विश्वासघात वैश्विक स्थिरता के लिए खतरा है। तो आगे बढ़िए, श्रीमान ट्रम्प, निक्सन की भूमिका निभाइए। स्कॉटलैंड और इस्लामाबाद में अपने तुच्छ खेल खेलिए लेकिन यह मत भूलिए, भारत की स्मृति लंबी है। भारत प्रतिरोध करता है और भारत उठ खड़ा होगा। जब धूल बैठेगी तो दुनिया देखेगी कि कौन सा सच्चा दोस्त था और कौन सा धोखेबाज।