ट्रम्प की मनमानी और भारत
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने व्यापार में साझेदार भारत समेत सभी देशों पर…
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने व्यापार में साझेदार भारत समेत सभी देशों पर जवाबी शुल्क लगा िदया है। ट्रम्प के फैसले सभी के लिए नुक्सानदेह तो हैं ही, बल्कि अपमानजनक भी हैं। व्यापारिक पृष्ठभूमि से आए ट्रम्प अब व्यापार के दम पर ही दुनिया में अमेरिका का वर्चस्व स्थापित करने का सपना पाल बैठे हैं। भारत और अन्य देश अपने-अपने स्तर पर परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं। वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था के रूप में प्रकृति इस बात पर निर्भर करती है कि अन्य देश अमेरिकी टैरिफ पर िकस तरह की प्रतिक्रियाएं देते हैं। ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जापान, दक्षिण कोरिया और यूरोपीय संघ ने तीखी प्रतिक्रियाएं व्यक्त की हैं जबकि चीन तो पहले ही आगबबूला है। टैरिफ में बढ़ौतरी से व्यापार युद्ध तो शुरू हो ही चुका है लेकिन इससे विश्व व्यापार पर बहुत अधिक असर पड़ेगा और महंगाई भी बढ़ेगी।
ट्रम्प के अनुसार दुनिया ने अमेरिका के साथ ज्यादती की है, जो उसके व्यापार घाटे में नजर भी आती है। 2024 में अमेरिका का वस्तु व्यापार घाटा 1.2 लाख करोड़ डॉलर था। ऐसे में उच्च टैरिफ के कारण अमेरिका के लोग अमेरिकी वस्तुएं खरीदेंगे और विदेशी कंपनियों को अमेरिका में उत्पादन करना पड़ेगा। मुख्यधारा का कोई अर्थशास्त्री शायद ही इस तर्क से सहमत होगा। वास्तव में अमेरिका सेवा क्षेत्र में अधिशेष की स्थिति में है। क्या अमेरिका अन्य देशों के साथ गलत कर रहा है? मगर दुनिया ऐसे नहीं चलती। फिर भी हो सकता है कि ऊंचे टैरिफ के कारण अमेरिका का चालू खाते का घाटा निकट भविष्य में कुछ कम हो जाए। मगर कम व्यापार घाटे और संभवतः ऊंची ब्याज दर से डॉलर मजबूत होगा, जिसका असर अमेरिका के निर्यात पर पड़ेगा। इससे चालू खाते के घाटे वाला फायदा खत्म हो जाएगा। साथ ही टैरिफ ने अनिश्चितता बहुत बढ़ा दी है, जिससे खपत और निवेश मांग प्रभावित हुई हैं। इससे वैश्विक वृद्धि सुस्त हो सकती है।
भारत पर 26 फीसदी टैक्स लगाकर ट्रम्प ने साफ कर दिया है कि वह भारत को बख्शने वाले नहीं हैं। यद्यपि अमेरिका ने भारत के फार्मा उद्योग को िफलहाल राहत दी है। भारत पर चीन, वियतनाम आैर बंगलादेश जैसे देशों से कम टैरिफ लगाया है। अमेरिका इस बात के इंतजार में है कि भारत उससे उत्पादों पर टैरिफ की दरें और अन्य व्यापार प्रतिबंध घटाए। यह सही है कि केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने हर आपदा को अवसर में बदला है आैर वाणिज्य मंत्रालय अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव का गम्भीरता से अध्ययन कर रहा है। ट्रम्प के टैरिफ से दुनिया भर के शेयर बाजार लड़खड़ा चुके हैं। यूक्रेन-रूस युद्ध आैर इजराइल-फिलस्तीन युद्ध के चलते सप्लाई चेन पहले से ही प्रभावित है। ऐसे में विश्व अर्थव्यवस्था में उथल-पुथल मचना तय है। ट्रम्प के मनमाने फैसलों से अमेरिका को ही नुक्सान पहुंच सकता है। आर्थिक विशेषज्ञों ने अमेरिका में महंगाई बढ़ने के साथ-साथ मंदी की आशंका व्यक्त की है। अमेरिका में मंदी आई तो इसका सीधा असर उसकी अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। ट्रम्प यह स्वीकार करने को तैयार नहीं कि उद्योग रातों-रात स्थापित नहीं होते। उन्हें स्थापित होने और सफल होने में समय लगता हैै।
अब सवाल यह है कि भारत को इस समय क्या करना चाहिए। भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार वार्ता जारी है और इस बात की कोशिश की जा रही है कि कोई बीच का रास्ता निकल आए। अन्य देश भी अमेरिका से बातचीत करेंगे। फिलहाल द्विपक्षीय व्यापार वार्ता का आगे बढ़ने का रास्ता अभी लम्बा है। ट्रेड वाॅर के बीच भारत को अपने िमत्र रूस का साथ मिल रहा है। रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने भारत की मेक इन इंडिया पहल की प्रशंसा करते हुए भारत में िनवेश करने का ऐलान किया है। भारत पर कम टैरिफ लगाए जाने से केन्द्र सरकार अपनी रणनीति में बदलाव करने पर भी िवचार कर रही है। भारत यूरोपीय संघ, अफ्रीकी और एशियाई देशों से व्यापार बढ़ाने को तैयार है। पिछले वर्ष भारत ने 78 अरब डॉलर का निर्यात किया था, जो कुल निर्यात का 18 फीसदी ही है। भारत हर तरह से झटके को सहने का सामर्थ्य रखता है। भारत अपना ध्यान अन्य बाजारों पर भी केन्द्रित करेगा। भारत की हर सम्भव कोशिश होगी कि उसे कम से कम नुक्सान हो। ट्रम्प की दादागिरी और बढ़ी तो अमेरिका भी दूसरे देशों के जवाबी शुल्क से बच नहीं पाएगा। भारत को अपनी व्यापार नीतियों में बदलाव करना होगा। भारतीय उद्योगों को भी चाहे वह लघु और मझोले उद्योग हों या ऑटो मोबाइल के पुर्जे बनाने वाली कम्पनियां, सबको संरक्षण की चाह छोड़कर कड़ी प्रतिस्पर्धा के िलए तैयार होना होगा।
भारत के पास बाहरी जोखिम का मुकाबला करने के लिए मजबूत आर्थिक घटक मौजूद हैं। चालू खाते का घाटा नियंत्रित है। विदेशी मुद्रा भंडार 659 अरब डालर के स्तर पर है। महंगाई दर 3.6 प्रतिशत तक आ गई है, जिससे उपभोक्ताओं को राहत मिली है। अर्थव्यवस्था में राजकोषीय अनुशासन है। निजी निवेश बढ़कर 61.49 प्रतिशत हो गया है, जो आर्थिक वृद्धि को गति देगा। बेरोजगारी दर भी घटी है और कंपनियां नई भर्तियों की योजना बना रही हैं। इन सबके साथ-साथ सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की वृद्धि दर भी वित्त वर्ष 2024-25 में 6.5 प्रतिशत के स्तर पर दिखाई दे रही है। भारत को अन्य देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों को जल्द अंतिम रूप देना होगा। भारत को ऐसे क्षेत्रों में निर्यात बढ़ाना होगा, जहां उसे पहले ही बढ़त हासिल है। उम्मीद है कि भारत आपदा में अवसर तलाश लेगा और नुक्सान से बचने के लिए वह हर विकल्प अपनाएगा। अमेरिका भी यह समझ ले कि आज की दुनिया परस्पर सहयोग से चलती है न कि टकराव से।