ट्रम्प भारत दौरे के इच्छुक
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का असामान्य व्यवहार नजर आ रहा है। उससे यह कहीं नहीं लग रहा कि वह इस दुनिया की महाशक्ति का नेतृत्व कर रहे हैं। एक तरफ वे शांति का मसीहा बनकर दुनिया में सात युद्धों को खत्म कराने के दावे कर रहे हैं तो दूसरी तरफ खुद परमाणु हथियारों के परीक्षण का ऐलान कर देते हैं। उनके भाषणों का सार परस्पर विरोधी ही निकल रहा है। प्रवासियों को खतरे के रूप में पेश करना घृणा फोबिया को बढ़ावा देना ही है, जिसे वैश्विक समुदाय को बांटने की कुत्सित कोशिश ही माना जाएगा। प्रवासियों के विरुद्ध बयानबाजी से साफ है कि ट्रम्प मानवीय मूल्यों के विरोधी हैं। टैरिफ वॉर के बीच वे लगातार अपनी बयानबाजी बदलते रहे हैं। अब ट्रम्प ने एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तारीफ करते हुए उन्हें एक महान व्यक्ति बताया है और कहा है कि वे दोनों देशों में व्यापार संबंधों को मजबूत करने के लिए अगले साल भारत का दौरा कर सकते हैं। ट्रम्प ने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ उनकी चर्चा बहुत अच्छी चल रही है और वह मेरे दोस्त हैं और हमारी बात चलती रहती है।
ट्रम्प ने भारत के संबंध में बयानबाजी की है। उसके तुरन्त बाद ही उन्होंने कोई न कोई भारत विरोधी बम फोड़ा है। पहले उन्होंने रूस से कच्चा तेल खीदने के पैनल्टी के रूप में भारत पर भारी-भरकम टैरिफ लगाया, इसका सीधा असर भारत के कारोबार पर पड़ रहा है। ट्रम्प ने फिर दावा किया है कि भारत ने रूस से तेल की खरीदारी कम कर दी है। ट्रम्प के भारत दौरा करने का बयान काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसी वर्ष एक रिपोर्ट में यह कहा गया था कि भारत पर टैरिफ लगाए जाने के फैसले के बाद ट्रम्प क्वॉड शिखर सम्मेलन के लिए भारत नहीं जाएंगे। अब सवाल उठने लगे हैं कि ट्रम्प भारत क्यों आ रहे हैं। इसका बड़ा कारण यह भी है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनकी शर्तों के आगे झुकने से साफ इंकार कर दिया और व्यापार वार्ता की मेज पर भारत कठिन वार्ताकार साबित हुआ है।
भारत एक निष्पक्ष और संतुलित समझौते के लिए बातचीत कर रहा है। भारत का स्टैंड स्पष्ट है कि वह कोई ऐसा व्यापार समझौता नहीं करेंगे जिससे भारतीयों के हित प्रभावित होते हैं। ट्रम्प द्वारा मोदी की व्यक्तिगत तारीफ यह बताती है कि अमेरिका भारत की अहमियत को समझने लगा है। ट्रम्प को अपने ही देश में अनेक मोर्चों पर झटके लग रहे हैं। ट्रम्प ने जिस अंदाज में ताबड़तोड़ फैसले लिए हैं उन्हें लेकर उन्हें विरोध का सामना करना पड़ रहा है। सबसे पहले बात राजनीतिक की करते हैं जो सबसे ताजा मामला है। न्यूयॉर्क में हुए मेयर पद के चुनाव में जोहरान ममदानी ने जीत हासिल की है। ममदानी की जीत इसलिए भी अहम हो जाती है क्योंकि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने खुद विरोध करते हुए ममदानी के पक्ष में लोगों से वोट ना करने की अपील की थी। ट्रम्प ने तो यहां तक कहा था कि अगर ममदानी जीत गए तो वो फेडरेल फंडिंग रोक देंगे। अब जब ममदानी ने मेयर पद का चुनाव जीत लिया है तो यह सियासी रूप में ट्रम्प के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं है। वोटरों ने बता दिया है कि अमेरिका में भविष्य की राजनीति किस ओर करवट ले रही है।
न्यूयॉर्क में मिली सियासी हार से इतर बात करें तो अमेरिका इस वक्त बड़े संकट में घिरा नजर आ रहा है जिसका असर सबसे अधिक आम लोगों पर पड़ रहा है। अमेरिका में पिछले एक महीने से शटडाउन जारी है और राष्ट्रपति ट्रम्प इससे पूरी तरह बेपरवाह नजर आ रहे हैं। अमेरिका में जारी शटडाउन के बीच राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने बड़ा बयान दिया है। ट्रम्प ने कहा है कि वो सरकारी विभागों में कामकाज को दोबारा चालू करने के लिए डेमोक्रेट्स के दबाव में नहीं आएंगे। ट्रम्प ने साफ कर दिया है कि सरकारी 'शटडाउन' (सरकारी कामकाज के लिए वित्तपोषण की कमी) के जल्द ही छठा सप्ताह शुरू होने के बावजूद उनकी वार्ता करने की कोई योजना नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि डेमोक्रेट नेता रिपब्लिकन नेताओं के सामने अंत में झुक जाएंगे। साफ है कि ट्रम्प ने इसे नाक की लड़ाई बना ली है और भुगतना लोगों को पड़ा रहा है।
रूस-यूक्रेन युद्ध खत्म कराने में भी उन्हें विफलता ही हाथ लगी है। ट्रम्प द्वारा दूसरे देशों पर टैरिफ लगाने को भी अदालतों में चुनौती दी जाने लगी है। अमेरिकी महसूस करते हैं कि सत्ता का संचालन अधिक केन्द्रीकृत हो चुका है और एजैंसियों को कमजोर किया जा रहा है। ट्रम्प मनमाने फैसले ले रहे हैं। लोकप्रियता का ग्राफ गिरने के बाद ट्रम्प ने अपनी नीतियों में जल्दी-जल्दी बदलाव किया है। पहले उन्होंने चीन के प्रति नरम रुख अपनाते हुए समझौते कर लिए। इसका बड़ा कारण यह भी था कि चीन से रेयर अर्थ नहीं मिलने के कारण अमेरिका खुद प्रभावित हो रहा था। ट्रम्प को भी इस बात का एहसास हो चुका है कि उनकी एक तरफ मनमानी को दुनिया स्वीकार करने को तैयार नहीं है। टैरिफ वॉर से पैदा हुई व्यापार अस्थिरता से अंततः अमेरिका को ही नुक्सान हो रहा है।
भारत को यह बात भी नपसंद है कि एक तरफ ट्रम्प दोनों विशाल लोकतंत्रों के बीच व्यापार वार्ता के सुखद परिणामों की उम्मीद जताते हैं और वहीं पाकिस्तान और भारत को एक ही पाले में रखते हैं। ट्रम्प भारत-पाकिस्तान में युद्ध रुकवाने और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और पाकिस्तानी सेना प्रमुख मुनीर की तारीफ करते नहीं थकते। उनके रोज-रोज के बयानों से दुनिया के नेताओं ने उन्हें गम्भीरता से लेना बंद कर दिया है। कूटनीति में बयानों में लचीलापन अच्छा होता है लेकिन ट्रम्प अस्थिर मानसिकता वाले नेता के
रूप में अपनी छवि बना चुके हैं। खुद को भारत का अच्छा दोस्त बताने वाले ट्रम्प भारत आए तो हम उनका स्वागत करेंगे। वह यह भी जानते हैं कि चीन के प्रति नरम रुख अपनाकर भारत को नजरंदाज करना उनके लिए मुश्किल होगा। बेहतर है कि अमेरिका-भारत व्यापार समझौता संतुलित तरीके से सम्पन्न हो और टैरिफ का तनाव खत्म हो।

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