भरोसे लायक नहीं ट्रम्प
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का भारत के प्रति रवैया नकारात्मक हो चुका है। एक तरफ वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपना दोस्त बताते हैं और भारत के महत्व को स्वीकार करते हैं तो दूसरे ही पल वह भारत के विरुद्ध जहर उगलते हैं। एक तरफ केन्द्रीय मंत्री पीयूष गोयल के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल अमेरिका में व्यापार वार्ता कर रहा है तो दूसरी तरफ ट्रम्प भारत और चीन पर यूक्रेन युद्ध के लिए रूस को फंडिंग करने का आरोप लगा रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि ट्रम्प टैरिफ मामले में चीन के प्रति नरम रुख अपना रहे हैं और भारत पर 100 प्रतिशत टैरिफ थोपते हैं। ट्रम्प लगातार भारत के हितों पर चोट कर रहे हैं। ट्रम्प आखिर चाहते क्या हैं? इस बात को लेकर खुद अमेरिकी परेशान हैं। नोबल पुरस्कार की महत्वकांक्षा में वे लगातार दुनिया में अपना दबदबा कायम करने के लिए ब्लैकमेल की राजनीति करने पर उतर आए हैं। उनके कदमों से भारत को लगातार झटके लग रहे हैं। अमेरिका ने ईरान की चाबहार बंदरगाह को प्रतिबंधों से दी गई छूट वापिस ले ली।
ट्रम्प ने दूसरी बार सत्ता संभालने के साथ ही चाबहार को मिली छूट खत्म करने के एग्जिक्यूटिव ऑर्डर पर साइन कर दिए थे। अब इसे 29 सितंबर से लागू करने का आदेश जारी हुआ है। इसके बाद अगर कोई कंपनी या संस्था चाबहार के संचालन में शामिल होती है तो उस पर भी अमेरिकी प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। भारत इस पोर्ट पर अरबों रुपये का निवेश कर चुका है और यहां एक टर्मिनल बना रहा है। अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से उसके लिए यहां काम करना मुश्किल हो सकता है। यद्यपि ट्रम्प का यह कदम ईरान लक्षित है लेकिन भारत पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ना तय है। भारत चाबहार बंदरगाह का विकास इसलिए कर रहा है जिससे उसे अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच बनाने में मदद मिले। चाबहार ईरान के सिस्तान-ब्लूचिस्तान प्रांत में स्थित गहरे पानी की बंदरगाह है। यह भारत की सबसे नजदीकी ईरानी बंदरगाह है और खुले समुद्र में स्थित है जिससे बड़े मालवाहक जहाजों के लिए आसान और सुरक्षित पहुंच होती है। मई 2016 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यात्रा के दौरान भारत, ईरान और अफगानिस्तान द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय परिवहन और पारगमन गलियारा स्थापित करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।
एच-1बी वीजा पर ट्रम्प का फैसला यह दर्शाता है कि वह अधिक अतिवादी सोच के साथ आगे बढ़ रहे हैं। राष्ट्रपति के रूप में अपने पहले कार्यकाल में उनके अटॉर्नी जनरल ने एच-1बी वीजा कार्यक्रम सीमित करने एवं उसमें सुधार का प्रयास किया था मगर उनकी यह योजना आगे नहीं बढ़ पाई। दूसरे कार्यकाल के लिए ट्रम्प के शपथ ग्रहण से ठीक पहले बड़ी तकनीकी कंपनियों के प्रमुख लोगों और 'अमेरिका फर्स्ट' गुट के लोगों के बीच चर्चा में एच-1 बी वीजा का मुद्दा फिर उठा। उस समय निर्वाचित राष्ट्रपति ट्रम्प ने एलन मस्क के प्रतिनिधित्व वाले गुट की बात मान ली थी। मगर अब मस्क राष्ट्रपति ट्रम्प से दूर जा चुके हैं और अमेरिकी कंपनियों ने व्हाइट हाउस की इच्छाओं के आगे झुकने की अपनी रजामंदी भी दे दी है। इस गठबंधन के कारोबारी पक्ष पर 'अमेरिका फर्स्ट' समर्थक हावी हो गए हैं। अमेरिका जितने एच-1 बी वीजा जारी करता है उनमेंं लगभग 70 फीसदी भारतीयों को मिलते हैं और कुछ खबरों के अनुसार एच-1बी लॉटरी में लगभग आधे स्लॉट आउटसोर्सिंग या स्टाफिंग कंपनियों द्वारा झटक लिए जाते हैं।
उनके लिए स्वाभाविक रूप से यह एक बड़ा झटका होगा। इन कंपनियों ने जिन लोगों को एच-1बी वीजा पर बहाल किया उन्हें उनके काम के लिए औसत वेतन से भी कम रकम दी गई। उनके वेतन अल्फाबेट या मेटा द्वारा जा रही रकम से काफी होते हैं। इस तरह, स्पष्ट रूप से एक पुराना कारोबारी ढर्रा काम कर रहा था जिसमें ट्रम्प की नई नीति के साथ खलल पड़ गई है। आईटी कम्पनियों के लिए अब किसी भी कर्मचारी के लिए 1 करोड़ रुपए खर्चना आसान नहीं होगा। भारतीय पेशेवर अब सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया का रुख करने को लालयित हैं। 20 साल तक अफगानिस्तान में करारी हार झेलने के बाद ट्रम्प एक बार फिर पंगा ले रहे हैं। ट्रम्प ने एक बार फिर अफगानिस्तान के बगराम एयरबेस पर दावा ठोक दिया है और धमकी दी है कि अगर अफगानिस्तान एयरबेस अमेरिका को वापिस नहीं देता तो खराब चीजें होने वाली हैं। ट्रम्प की धमकी का जवाब देते हुए तालिबान ने भी दो टूक कह दिया है कि अफगानिस्तान अब पूरी तरह स्वतंत्र है और अब हम एक इंच भी जमीन किसी को नहीं देंगे।
ट्रम्प बगराम एयरबेस की वापसी इसलिए चाहते हैं क्योंकि यह चीन के परमाणु हथियार बनाने वाले स्थल से केवल एक घंटे की दूरी पर है। यह अमेरिका को मध्य एशिया में चीन की बढ़ती सैन्य क्षमता पर नजर रखने की क्षमता प्रदान करेगा। अमेरिकी अधिकारी ट्रम्प को चेतावनी दे रहे हैं कि बगराम एयरबेस वापिस लेना पुनः आक्रमण जैसा होगा। अमेरिका तालिबान से दोबारा टक्कर नहीं ले सकता। अब यह साफ है कि ट्रम्प पर बहुत ज्यादा भरोसा नहीं किया जा सकता। भारत को अब फूंक-फूंक कर कदम रखना होगा। भारतीय अर्थव्यवस्था को डेड कहने वाले ट्रम्प को जीएसटी उत्सव देखकर अहसास हो गया होगा कि भारतीय अर्थव्यवस्था कितनी गतिशील है। भारत अमेरिकी टैरिफ को लेकर ज्यादा चिंतित नहीं है। भारतीयों को जवाब देना आता है। भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का 16 फीसदी हिस्सा है और आजादी के इतने साल बाद भी कृषि से ही सबसे बड़ी आबादी को रोजगार मिलता है। ट्रम्प अपना सिर्फ डंका बजा रहे हैं। अभी तक उनके हाथ कोई जबरदस्त सफलता नहीं लगी, बल्कि विश्व में तनाव बढ़ गया है। वक्त की मांग को देखते हुए मोदी सरकार ने जीएसटी रिफार्म लागू किए हैं और इसके परिणाम सकारात्मक नजर आ रहे हैं।