भारत पर टैरिफ बढ़ाकर Trump ने कर दी ये बड़ी गलती! इस अखबार की रिपोर्ट ने बताया सच
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड Trump ने भारत पर 50% तक का आयात शुल्क (टैरिफ) लगाने की घोषणा की है, जिससे अंतरराष्ट्रीय मंच पर काफी हलचल मच गई है। वाशिंगटन से लेकर नई दिल्ली और लंदन तक इस पर गहन चर्चा हो रही है। ब्रिटिश अखबार द टेलीग्राफ के अनुसार, ट्रंप का यह कदम उनके लिए उल्टा साबित हो सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस उद्देश्य से यह फैसला लिया गया है, वह शायद ही पूरा हो पाए।
टैरिफ लगाने की वजह क्या है?
Trump प्रशासन का कहना है कि भारत रूस से भारी मात्रा में कच्चा तेल खरीदता है। अमेरिका का आरोप है कि रूस इस तेल के जरिए आर्थिक लाभ अर्जित कर हथियार खरीद रहा है, जिससे यूक्रेन में युद्ध और भीषण हो रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, 2024 में भारत ने रूस से लगभग 42 अरब पाउंड का कच्चा तेल आयात किया। ट्रंप के अनुसार, भारत इस तेल को रिफाइन कर वैश्विक बाजार में बेचता है, जिससे रूस को अप्रत्यक्ष रूप से फायदा हो रहा है।
Trump का यह फैसला पड़ सकता है उलटा?
1. टैरिफ से नहीं रुकेगा रूस का तेल व्यापार
रिपोर्ट के अनुसार, भारत के अलावा रूस से तुर्की, ब्राजील, चीन, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और कुछ यूरोपीय देशों द्वारा भी तेल खरीदा जा रहा है। इनमें से कई देश अमेरिका के रणनीतिक साझेदार हैं। अगर ट्रंप केवल भारत पर ही टैरिफ लगाते हैं और बाकी देशों पर नहीं, तो रूस को खास नुकसान नहीं होगा, और उनका उद्देश्य अधूरा रह जाएगा।
2. भारत से दूरी, चीन को फायदा
भारत एशिया में चीन के प्रभाव के खिलाफ सबसे मजबूत आवाज है। ट्रंप पहले भारत के प्रधानमंत्री को ‘मित्र’ बताते रहे हैं, लेकिन इस तरह के फैसलों से भारत और अमेरिका के बीच दरार आ सकती है। यदि भारत अमेरिका से दूर होता है, तो एशिया में अमेरिका को चीन के खिलाफ बड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है।
3. रूस, भारत और चीन की नजदीकी बढ़ने की आशंका
रिपोर्ट में यह भी आशंका जताई गई है कि Trump के इस फैसले से रूस, भारत और चीन के बीच नजदीकी बढ़ सकती है। पहले से ही रूस इन दोनों देशों के साथ अपने संबंधों को मजबूत कर रहा है। यदि ऐसा होता है, तो ब्रिक्स जैसे संगठन वैश्विक स्तर पर और प्रभावशाली हो सकते हैं, जिससे अमेरिका की वैश्विक स्थिति कमजोर हो सकती है।
4. भारत सरकार पर दबाव का असर नहीं होगा
भारत की आंतरिक राजनीतिक स्थिरता और विदेश नीति को देखते हुए ऐसा नहीं लगता कि वह अमेरिकी दबाव में झुकेगा। इससे संभव है कि अमेरिका को खुद ही टैरिफ नीति पर पुनर्विचार करना पड़े।