भारत पर Tariff लगाकर चौतरफा घिरे ट्रंप! अमेरिका की विदेश नीति पर खड़ी हुई मुसीबत
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जिन आयात शुल्कों (Tariff) को विदेश नीति का हथियार बनाकर इस्तेमाल कर रहे हैं, अब वही कदम अमेरिका के लिए नई मुसीबत बनते दिख रहे हैं। ट्रंप का मकसद था कि इन भारी शुल्कों के जरिए रूस पर दबाव बने, भारत जैसे देशों से अपने पक्ष में रियायतें ली जाएं, और चीन की उत्पादन क्षमता को कमजोर किया जाए। लेकिन अब इसका असर उल्टा पड़ता दिखाई दे रहा है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डी सिल्वा से बातचीत की। दोनों नेता उन देशों में शामिल हैं जिन पर अमेरिका ने 50% तक Tariff लगाए हैं। इस बातचीत में व्यापार, तकनीक, ऊर्जा, रक्षा, कृषि और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर सहमति बनी। ब्राजील ने अमेरिका की टैरिफ नीति की कड़ी आलोचना भी की है।
चीन भी हुआ मुखर
अमेरिका की Tariff नीति पर चीन भी खुलकर विरोध जता रहा है। भारत में चीन के राजदूत ने कहा कि टैरिफ का इस तरह से इस्तेमाल करना अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन है। चीन ने इशारा दिया कि वो भारत और ब्राजील जैसे देशों के साथ खड़ा रहेगा। खास बात ये भी है कि प्रधानमंत्री मोदी जल्द ही चीन जाने वाले हैं, जहां वे SCO सम्मेलन में हिस्सा लेंगे।
BRICS फिर से एकजुट
ट्रंप की Tariff नीति के चलते BRICS समूह (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) की अहमियत फिर से बढ़ती दिख रही है। अब इसमें ईरान, मिस्र, यूएई, इथियोपिया और इंडोनेशिया जैसे देश भी जुड़ चुके हैं। इन देशों के बीच व्यापार, निवेश और अपनी खुद की मुद्रा में लेन-देन की चर्चा तेज हो रही है। ये अमेरिका के लिए झटका हो सकता है क्योंकि ट्रंप इस समूह को हमेशा कमजोर करना चाहते थे।
भारत-रूस की नजदीकी
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने हाल ही में रूस के राष्ट्रपति पुतिन से मुलाकात की है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर भी इस महीने रूस जाने वाले हैं। ये दौरे ब्रिक्स और अन्य वैकल्पिक साझेदारियों को मजबूत करने की दिशा में माने जा रहे हैं।
यूरोप से भी विरोध के स्वर
ट्रंप की Tariff नीति का असर यूरोपीय देशों पर भी दिख रहा है। स्विट्जरलैंड में कुछ नेताओं ने अमेरिका से लड़ाकू विमान खरीदने के सौदे को रद्द करने की मांग की है क्योंकि अमेरिका ने उस पर 39% टैरिफ लगाया है।
नई साझेदारियों की ओर बढ़ते देश
अब कई देश अमेरिकी दबाव से बचने के नए रास्ते तलाश रहे हैं। जैसे, स्थानीय मुद्राओं में व्यापार, संयुक्त विकास योजनाएं और वैकल्पिक वित्तीय संस्थाओं को मज़बूत करना। अगर यह चलन तेज हुआ, तो वैश्विक व्यापार के समीकरण पूरी तरह बदल सकते हैं।